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मोदी विरोध को सबसे बड़ा झटका है नीतीश का बीजेपी के साथ जाना

बीजेपी की 2019 की राह के कांटे साफ होकर विपक्ष के पांवों तले बिछ रहे हैं

Updated On: Jul 27, 2017 12:33 PM IST

Naveen Joshi

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मोदी विरोध को सबसे बड़ा झटका है नीतीश का बीजेपी के साथ जाना

बहुत दिन नहीं हुए जब नीतीश कुमार को 2019 के लोक सभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के मुकाबिल भाजपा-विरोधी खेमे का नायक माना जा रहा था. बिहार विधान सभा चुनाव में भाजपा का विजय-रथ रोक कर महागठबंधन को निर्णायक जीत दिलाने के नाते नीतीश कुमार को यह महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय दर्जा मिला था.

अभी हाल तक राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए प्रत्याशी के मुकाबले संयुक्त विपक्ष का उम्मीदवार उतारने के लिए नीतीश कुमार पहल कर रहे थे. इसके लिए 18 दलों का जो मोर्चा बन रहा था, नीतीश कुमार को उसका संयोजक बनाया गया था.

बीजेपी ने राष्ट्रपति प्रत्याशी का दांव कुछ ऐसा चला कि नीतीश कुमार को विपक्षी खेमा छोड़ कर भाजपा प्र्त्याशी के पक्ष में वोट डालना पड़ा. इसके बाद भी वे उप-राष्ट्रपति के चुनाव में विपक्ष के संयुक्त प्रत्याशी के पक्ष में खड़े थे.

अब यह परिदृश्य पूरा उलट गया है. बुधवार की शाम पटना में जो कुछ घटा उसने भाजपा-विरोधी राजनीति को सबसे बड़ा झटका दिया है. बीजेपी-विरोधी खेमे के सबसे बड़े और विश्वसनीय नेता के रूप में नीतीश कुमार की हैसियत खत्म हो गयी. अब वे नरेंद्र मोदी के प्रबल प्रतिद्वंद्वी नहीं हैं. बल्कि, नरेंद्र मोदी और अमित शाह अब उनके नेता हैं.

लालू के कुनबे के भ्रष्टाचार के दाग से अपने को बचाने के लिए नीतीश कुमार ने जो दांव चला उसने ईमानदार नेता की उनकी छवि तो बनाये रखी लेकिन उनका नेता का दर्जा घटा दिया. इसी के साथ बीजेपी को बड़ा लाभ भी हो गया. जिस बिहार को बीजेपी चुनावी मैदान में हार गयी थी, वह उसकी झोली में आ गया.

मौका देखकर पलटी मारने में उस्ताद हैं नीतीश कुमार

बिहार की जनता का स्पष्ट जनादेश महागठबंधन के पक्ष में था. नीतीश ने महागठबंधन ही नहीं तोड़ा, जनादेश को भी पलट दिया. चुनाव में पराजित बीजेपी बिहार की सत्ता में भागीदार बन रही है.

Patna: Bihar Chief Minister Nitish Kumar speaks to the media after meeting Governor KN Tripathi, in Patna on Wednesday. Kumar says he has resigned as Bihar Chief Minister and the governor has accepted his resignation letter. PTI Photo (PTI7_26_2017_000228B)

यह भारतीय राजनीति का विद्रूप है. करीब दो साल पहले ‘साम्प्रदायिक शत्रु’ बीजेपी और ‘हिटलर नरेंद्र मोदी’ को हराने के लिए नीतीश कुमार ने अपने धुर विरोधी और भ्रष्टाचार में गले-गले तक डूबे लालू यादव को गले लगाया था. वह गलबहियां अब सीबीआई के छापों और एफआईआर के बाद असह्य रूप से कलंकित हो गयीं. वह ‘केर-बेर का संग’ साबित हुआ.

लालू-कुनबा मस्ती में डोल रहा था और नीतीश कुमार की साफ-सुथरी छवि के चीथड़े उड़ रहे थे. ‘भई गति सांप-छछूंदर केरी’. न उगलते बने, न निगलते. इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए कुछ तो करना था. और करना इस तरह था कि बिहार अपने हाथ में रहे और छवि पर भ्रष्टाचार का दाग न लगे. तभी राजनीति में जगह बची रहेगी.

बीजेपी ने पूरी तैयारी कर ही रखी थी. नीतीश ने वही रास्ता चुना जिस पर पहले चल चुके थे. बीजेपी के साथ 2008 से 2013 तक वे सरकार चला चुके हैं. ‘सुशासन बाबू’ की छवि तभी बनी थी. यह अवसर-देखी राजनीति ही है. लालू का साथ भी एक अवसर ही था.

नीतीश कुमार के इस कदम से ढेर हुआ 2019 का मोदी विरोधी मोर्चा

सबसे बड़ा नुकसान लेकिन 2019 के लिए बीजेपी-विरोधी संयुक्त मोर्चा बनाने की पहल का हुआ है. नीतीश ने जो रास्ता चुना, या उन्हें चुनना पड़ा, उससे बीजेपी की एक बड़ी चुनौती खत्म हो गयी है. एक बड़ा विरोधी ढेर हुआ है, बल्कि शरणागत है. नरेंद्र मोदी और अमित शाह का ‘कांग्रेस-मुक्त भारत’ अभियान ‘विपक्ष-हीन भारत’ की तरफ और आगे बढ़ा है.

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बीजेपी के खिलाफ आज कौन ताकतवर नेता मैदान में बचा है? बीजेपी की ‘साम्प्रदायिक राजनीति’ से लोहा लेते-लेते ‘मौलाना’ बन गये मुलायम सिंह आज बीजेपी के प्रति परम नरम हैं. अपनी ही पार्टी में बेटे के हाथों हाशिये पर धकेल दिये गये मुलायम सिंह को आज बीजेपी का डर सबसे ज्यादा सता रहा है.

आय से अधिक सम्पत्ति के जिन मामलों में लालू-परिवार बुरी तरह फंस गया है, उनका भूत मुलायम को दिन-दहाड़े न दिखता होगा तो भाजपाई इशारे से जता देते होंगे. उनके खिलाफ ऐसे ही जो मामले किसी तरह दफन हैं, वे कभी भी खोले जा सकते हैं.

बेटे से सत्ता-संघर्ष के दिनों में मुलायम कबूल कर चुके हैं कि अमर सिंह ने मुझे जेल जाने से बचाया था. आज अमर सिंह भी साथ नहीं हैं. होते भी तो वह तेज अब अमर सिंह में कहां रहा! लिहाजा मुलायम कभी नरेंद्र मोदी के कान में कुछ फुसफुसाते हैं, कभी राष्ट्रपति प्रत्याशी को वोट देने के बहाने नजदीकी बढ़ाते हैं.

बीजेपी-विरोधी मोर्चे के अगुवा लालू यादव कम न थे मगर कभी आडवाणी का राम-रथ रोकने वाले लालू का खुद का पांव आज कीचड़ में इस तरह धंसा हुआ है (या धंसा दिया गया है) कि वे शत्रु की तनी प्रत्यंचा के सामने निहत्थे और आसान निशाना बने खड़े हैं. सत्ता-च्युत होने के बाद लालू-परिवार की मुसीबतें और बढ़ेंगी.

अब कहां रह गया है मोदी विरोधी मोर्चा?

वाम दल लगातार पस्त होते आए हैं. उनका संख्या-बल ही नहीं छीजा, नेताओं का प्रभाव-बल भी पराभूत है. वाम नेता आज इतने सामर्थ्यवान भी नहीं कि बचे-खुचे क्षेत्रीय क्षत्रपों को भाजपा के खिलाफ एकजुट कर सकें.

ममता बनर्जी जरूर भाजपा-भगाओ का नारा बुलंद कर रही हैं. ऐसा करना उनकी मजबूरी है क्योंकि बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में भी दंगे-फसाद के बहाने ध्रुवीकरण की राजनीति को अच्छी-खासी हवा दे रखी है. बंगाल को बचाने के लिए ममता को आज वामपंथियों से लड़ने से कहीं ज्यादा ताकत भाजपा को दूर रखने के लिए करनी होगी. इसलिए ममता बनर्जी का भाजपा-विरोध बंगाल तक सीमित रह जाएगा.

West Bengal Chief Minister Mamata Banerjee along with Sharad Yadav Janata Dal (United) leader protest against the Narendra Modi government's decision to scrap Rs 500 and Rs 1000 cxurrency, in New Delhi, India on November 23, 2016. (Jyoti Kapoor/ SOLARIS IMAGES)

प्रमुख विपक्षी दल कहलाने वाली कांग्रेस अपना बचा-खुचा शिविर ही नहीं सम्भाल पा रही. गुजरात में शंकर सिंह वाघेला ने बड़े नाजुक मौके पर अपना तम्बू अलग कर लिया है. राहुल बाबा लाख कोशिश कर लें, चुटकुलों से आगे उनका योगदान बन नहीं पा रहा. सोनिया बीमार हैं और लाचार भी. परिवार से बाहर किसी सामर्थ्यवान को वे पार्टी की बागडोर थमा नहीं सकतीं. न ही कांग्रेसी ऐसा स्वीकार कर पाएंगे.

अपने दलित आधार के अपहरण से बेचैन मायावती ने इस बीच जरूर बीजेपी-विरोधी तेवर तीखे किये हैं. उन्होंने कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के साथ मोर्चा बनाने के संकेत भी दिये हैं लेकिन इसे बिहार के महागठबंधन ही का विस्तार होना था. वह सम्भावना अब बहुत कमजोर हुई है.

मायावती का दामन भी भ्रष्टाचार के आरोपों से साफ नहीं. बीजेपी-विरोधी ज्यादातर क्षेत्रीय नेता इस मामले में दागी हैं. बीजेपी ने इसे उनके खिलाफ प्रमुख हथियार बना लिया है. इसीलिए नरेंद्र मोदी समेत सभी भाजपाइयों ने भ्रष्टाचार के मामले में समझौता न करने के लिए नीतीश की बढ़-चढ़ कर प्रशंसा की है. बीजेपी की 2019 की राह के कांटे क्रमश: साफ होकर विपक्ष के पांवों तले बिछ रहे हैं.

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