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बिहार: 2015 के राजनीतिक फैसले को अपनी ‘गलती’ क्यों नहीं मानते नीतीश कुमार

क्या 2015 में आरजेडी के साथ जाना उनकी एक भूल थी? अपने तथाकथित स्वाभाविक सहयोगी बीजेपी के साथ दोबारा जाने के बाद नीतीश कुमार से ये सवाल कई बार पूछा गया..

Updated On: Jan 17, 2019 05:54 PM IST

Vivek Anand Vivek Anand
सीनियर न्यूज एडिटर, फ़र्स्टपोस्ट हिंदी

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बिहार: 2015 के राजनीतिक फैसले को अपनी ‘गलती’ क्यों नहीं मानते नीतीश कुमार

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के राजनीतिक जीवन में 2013 से लेकर 2017 का समय वो अहम दौर है, कि उससे संबंधित सवाल हमेशा पूछे जाते रहेंगे. पिछले दो वर्षों में न जाने कितने मौकों पर उनसे पूछा गया होगा या फिर पूछे जाने की मंशा भांपते हुए खुद नीतीश कुमार ने जवाब दिया होगा कि वो 2013 में किन परिस्थितियों में बीजेपी से अलग हुए और फिर महागठबंधन से उनका क्यों मोहभंग हुआ. इसी दौर में लिए राजनीतिक फैसलों से नीतीश कुमार की विश्वसनीयता की भी परख होती है और उनके लिए पैदा हुए अविश्वास की भी.

क्या 2015 में आरजेडी के साथ जाना उनकी एक भूल थी? अपने तथाकथित स्वाभाविक सहयोगी बीजेपी के साथ दोबारा जाने के बाद नीतीश कुमार से ये सवाल कई बार पूछा गया. वो कई बार इस सवाल का जवाब देते वक्त दार्शनिक सरीखे हो जाते हैं. ‘क्या कहें वो गलती थी कि क्या था... ये एक तथ्य है... वो न गलती थी और न कुछ और... इसे तथ्य की तरह ही लिया जाना चाहिए’ मंगलवार को पटना में एबीपी न्यूज़ के कॉनक्लेव में उन्होंने कुछ इसी तरह का जवाब दिया.

एनडीए में वापसी के बाद बिहार में वो सरकार भले ही आराम से चला रहे हों. लेकिन उनकी जिस विश्वसनीयता का डंका उनके विरोधी भी मानते थे, उसे चोट पहुंचाने वाले कठिन सवालों ने उन्हें चैन से कभी नहीं बैठने दिया. कई बार ऐसा लगता है कि नीतीश कुमार अपने फैसलों के बचाव में सकारात्मकता का आवरण ओढ़ लेते हैं.

वो बार-बार कहते हैं कि मजबूरी में भी उन्होंने हर वक्त दो विकल्प में से हमेशा एक अच्छे का चुनाव किया. जब ‘अच्छा’ एक वक्त के बाद ‘अच्छा’ नहीं रहा तो उन्होंने दूसरे ‘अच्छे’ को अपना लिया. लेकिन जिस वक्त उन्होंने दोनों का चुनाव किया था, वो दोनों ही ‘अच्छे’ थे. जब लालू के साथ गए तो आरजेडी अच्छी थी... बीजेपी तो पहले से ही अच्छी थी... जब आरजेडी उतनी अच्छी नहीं रही तो उन्होंने पहले से ही अच्छी वाली बीजेपी को फिर से गले लगा लिया.

नीतीश कुमार को बार-बार देनी होगी सफाई

2017 में महागठबंधन से रिश्ता तोड़ने पर मंगलवार को भी सफाई में उन्हें अपनी कंडीशंड अप्लाइड वाली ‘अच्छाई’ सामने रखनी पड़ी. एक न्यूज चैनल से बात करते हुए वो बोले कि ‘हमारा जिसके साथ भी अलायंस रहा हो, हमने तीन चीजों के साथ कभी भी समझौता नहीं किया- क्राइम करप्शन और कम्युनलिज्म.’ फिर तेजस्वी पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की बात करते हुए, वो वही बातें दोहराने लगे जो पहले भी कहते रहे हैं. उन्होंने कहा कि ‘जब सीबीआई ने चार्जशीट लगा दिया तो हमने कहा कि आप पर जो आरोप लगे हैं उसे एक्सप्लेन कर दीजिए. उन्होंने एक्सप्लेन नहीं किया. तो फिर हमारे पास क्या उपाय था?’

Nitish Kumar

नीतीश कुमार ने राहुल गांधी पर भी निशाना साधा. नीतीश कुमार को लगता है कि राहुल गांधी की अक्षमता की वजह से भी उन्हें महागठबंधन से अलग होने का फैसला लेना पड़ा. उन्होंने कहा कि पूर्व उपमुख्यमंत्री और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों पर राहुल ने कोई स्टैंड नहीं लिया था. इस बारे में रूख साफ नहीं करने की वजह से भी उन्होंने महागठबंधन से अलग होने का कदम उठाया.

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नीतीश कुमार बोले- ‘हमने तो राहुल गांधी से भी बात की. वो तो आर्डिनेंस फाड़े थे. उन्होंने भी कुछ नहीं किया. हम इंटरनल मीटिंग्स में भी कह दिए थे कि इस स्थिति में साल डेढ़ साल से ज्यादा सरकार नहीं चला पाएंगे.’ 2013 में राहुल गांधी ने मनमोहन सिंह सरकार के उस ऑर्डिनेंस की कॉपी को मीडिया के सामने फाड़ दिया था, जिसमें घोटाले के आरोपी नेताओं को बचाने की कोशिश की जा रही थी.

राहुल और कांग्रेस को लेकर निशाना

राहुल गांधी पर नीतीश कुमार का निशाना दिलचस्प है. वो बिना वजह कोई बात नहीं कहते. अपनी सफाई में कांग्रेस के अध्यक्ष और 2019 में पीएम पद के दावेदार पर हमला करने के पीछे कुछ वजह हो सकती है. ये बात गौर करने वाली है कि 2013 से लेकर 2017 तक जिस वक्त नीतीश कुमार बीजेपी के विरोध में थे, उस दौर में भी वो विरोध के सबसे विश्वसनीय आवाज थे. खासकर 2015 के बिहार विधानसभा चुनावों के बाद मोदी विरोध का वो सबसे मजबूत चेहरा बनकर उभरे थे.

एक चर्चा निकल पड़ी थी कि पीएम मोदी को नीतीश कुमार ही परास्त कर सकते हैं. उस दौर के बाद आज की आवाज को सुनने से लगता है कि हो सकता है कि इस हमले के जरिए नीतीश कुमार ये कहना चाह रहे हों कि एनडीए के साथ उनके आगे के साथ को संदिग्ध नजरों ने न देखा जाए. या फिर 2019 में मोदी बनाम राहुल की बहस में बीजेपी के साथ अपना पक्ष ज्यादा मजबूत दिखाने के लिए वो राहुल पर प्रहार कर रहे हों.

mamata-nitish

एक बात ये भी हो सकती है कि राफेल डील को लेकर राहुल गांधी ने जिस मुखर आवाज में सरकार का विरोध किया है और जिस तरह से वो कथित भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम के नायक बनने की कोशिश कर रहे हैं, नीतीश कुमार ने उस ‘नायकत्व’ के भ्रम को तोड़ने के लिए ऐसा बयान दिया हो. नीतीश कुमार भी करप्शन पर जीरो टॉलरेंस की नीति की बात कहते रहे हैं. वो कहते रहे हैं कि करप्शन पर इसी नीति का सम्मान रखने के लिए उन्होंने महागठबंधन की बलि दे दी.

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सीट को लेकर भी नीतीश कुमार ने कांग्रेस को आड़े हाथों लिया. 2015 के विधानसभा चुनाव पर बात करते हुए वो बोले कि उस वक्त गठबंधन में रहते हुए भी आरजेडी कांग्रेस को ज्यादा सीटें देने के मूड में नहीं थी. जेडीयू की वजह से उन्हें 40 सीटें मिली और 28 पर वो जीतकर आए. इस बयान से उन्होंने कांग्रेस के साथ-साथ आरजेडी पर भी प्रहार किया है. महागठबंधन में सीटों को लेकर पहले से ही अड़चन है. एनडीए में सीटों का बंटवारा सुलझ चुका है लेकिन महागठबंधन में जितनी ज्यादा पार्टिय़ां हैं उतने ज्यादा विवाद भी हैं. इस परिस्थिति में पुरानी बात याद दिलाकर नीतीश कुमार ने आरजेडी और कांग्रेस दोनों की दुखती रग छेड़ दी है.

नीतीश कुमार बिहार के सर्वमान्य और निर्विवाद रूप से सबसे लोकप्रिय नेता हैं. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह बिहार के राजनीतिक हालात बने, उन परिस्थितियों में लिए फैसलों की वजह से नीतीश कुमार को मुश्किल सवालों का सामना करना पड़ेगा. कभी कांग्रेस और कभी राहुल का नाम लेकर ही वो इससे बचना चाहेंगे. तेजस्वी का नाम न लेकर वो अलग राजनीतिक संदेश देने की कोशिश करते हैं. किसी को ज्यादा फुटेज देकर उसे क्यों बड़ा बनाएं.

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