दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की तारीफ करते हुए कहा कि ‘लगता ही नहीं कि गडकरी विरोधी दल के नेता हैं. उन्होंने जो मुझपर स्नेह दिखाया है उससे लगता ही नहीं है कि किसी बीजेपी के नेता को भी यह हासिल हुआ हो.’ यमुना की सफाई के लिए भी 9 प्रोजेक्ट लॉंच होने के मौके पर केजरीवाल ने कहा कि ‘यह संघीय प्रणाली का सबसे बेहतर उदाहरण है.’
गडकरी-केजरीवाल की जुगलबंदी!
केजरीवाल ने यह बयान स्वच्छ गंगा राष्ट्रीय परियोजना और दिल्ली जल बोर्ड की तरफ से आयोजित कार्यक्रम के दौरान कही. दिल्ली में इस कार्यक्रम के दौरान जब मुख्यमंत्री केजरीवाल बोलने के लिए खड़े हुए तो कुछ लोगों ने खांसने की आवाज निकालकर उनके कार्यक्रम के दौरान हंगामा करने की कोशिश की जिसपर गडकरी ने हंगामा कर रहे लोगों से शांत हो जाने की अपील की.
गडकरी की तरफ से केजरीवाल के लिए दिखाया गया ‘सॉफ्ट कॉर्नर’ और केजरीवाल की तरफ से गडकरी की शान में कसीदे पढ़ने के मायने समझने से पहले हमें दोनों नेताओं के पहले के रिश्तों को समझना होगा.
गडकरी को केजरीवाल ने पहले बताया था ‘भ्रष्ट’!
आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल पहले लगातार नितिन गडकरी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते रहे थे. केजरीवाल ने भारत के सबसे भ्रष्ट लोगों की एक सूची जारी की थी जिसमें गडकरी का नाम भी शामिल किया था. इसके बाद ही गडकरी ने अरविंद केजरीवाल के खिलाफ मानहानि का केस दर्ज किया था. 31 जनवरी 2014 को गडकरी पर केजरीवाल की तरफ से लगाए गए आरोपों से आहत गडकरी ने मानहानि का केस दर्ज कर दिया था. उसके बाद दोनों नेताओं के बीच की तल्खी बरकरार रही.
यह वो दौर था जब 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले केजरीवाल के निशाने पर कांग्रेस और बीजेपी के अलावा और दूसरे नेता भी रहे थे. भ्रष्टाचार के खिलाफ लडाई का ‘ऑइकान’ बनने की कोशिश में केजरीवाल ने दूसरे दलों के नेताओं पर गंभीर आरोप लगाया था.
केजरीवाल के ‘माफीनामे’ से सुधरे संबंध
लेकिन, 2014 में लोकसभा चुनाव में केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद गडकरी उसमें भूतल परिवहन मंत्री बनाए गए और बाद में गंगा सफाई अभियान का जिम्मा भी उमा भारती से लेकर उनको ही दे दिया गया. भूतल परिवहन मंत्री रहते गडकरी से अरविंद केजरीवाल के रिश्तों में थोड़ी गरमाहट आने लगी. लेकिन, बाद में जब कोर्ट-कचहरी का चक्कर लगाने के बाद केजरीवाल ने नितिन गडकरी से माफी मांगना ही मुनासिब समझा.
2014 के लोकसभा चुनाव में करारी हार और दिल्ली से भी सफाए के बाद अरविंद केजरीवाल ने अपना ध्यान दिल्ली विधानसभा चुनाव पर केंद्रित कर दिया. लोकसभा चुनाव की हार से उबरकर केजरीवाल ने दिल्ली में बड़ी जीत दर्ज की और 2015 की शुरुआत में वो दोबारा दिल्ली के मुख्यमंत्री बने लेकिन, इस बार अपने दम पर.
लेकिन, अब तीन सालों में मुख्यमंत्री रहते केजरीवाल को भी समझ में आ गया कि कोर्ट-कचहरी के चक्कर में पड़ने और बिना किसी ठोस सबूत के आरोप लगाने से बेहतर है कि गडकरी से माफी मांग ली जाए. नितिन गडकरी को इसी साल मार्च में चिट्ठी लिखकर केजरीवाल ने माफी मांगते हुए कहा, ‘मैं अपने शब्दों के लिए खेद जताता हूं. मेरी आपसे कोई निजी दुश्मनी नहीं है. मैंने जो भी कहा है उसके लिए माफी मांगता हूं. इस घटना को मेरे और आपके बीच ही रहने दिया जाए और कोर्ट में चल रही कार्रवाई को बंद कर दिया जाए.’
हालाकि इस तरह की माफी केजरीवाल की तरफ से वित्त मंत्री अरुण जेटली समेत कई दूसरे नेताओं से भी मांगी गई. जिसके बाद उनके खिलाफ चला आ रहा मानहान का मुकदमा वापस ले लिया गया.
गडकरी ने केजरीवाल को माफ क्या किया कि अब दोनों की जुगलबंदी सामने आ गई. अब अरविंद केजरीवाल की तरफ से यह कहना कि गडकरी ने जो स्नेह मुझे दिया वो किसी बीजेपी के नेता को भी नहीं मिला होगा. दोनों के रिश्तों में आई नई गर्मजोशी क्या नए समीकरण का संकेत तो नहीं दे रहा है.
गौरतलब है कि अपने मुख्यमंत्रित्व काल के शुरुआती दिनों से ही केजरीवाल सरकार और उनकी पार्टी की तरफ से लगातार मोदी सरकार पर काम नहीं करने देने का आरोप लगाया जाता रहा है. ऐसे में मोदी सरकार के ही दूसरे मंत्री नितिन गडकरी को लेकर दिल्ली में यमुना की सफाई के मुद्दे को लेकर केजरीवाल की तरफ से तारीफ करना दोनों नेताओं में नजदीकी को दिखाने वाला है.
गडकरी के बयानों के क्या हैं मायने?
सियासत में हर बयान के मतलब होते हैं और हर समीकरण के कुछ मायने होते हैं. लिहाजा, गडकरी और केजरीवाल में चार साल तक चले तकरार के बाद अब स्नेह-प्यार सियासी गलियारों में चर्चा का विषय जरूर है.
ऐसा इसलिए भी हो रहा है, क्योंकि नितिन गडकरी के अभी हाल के कुछ बयान भी ऐसे रहे हैं, जो पार्टी के भीतर की खींचतान को सामने ला रहे हैं. नितिन गडकरी ने अभी पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मिली हार के बाद एक बयान दिया था जिसमें कहा था कि 'नेतृत्व' को 'हार और विफलताओं' की भी जिम्मेदारी लेनी चाहिए. गडकरी साफ-साफ बात करने के लिए जाने जाते हैं.
उन्होंने इस मौके पर कहा कि ‘सफलता की तरह कोई विफलता की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता.’ गडकरी ने कहा, 'सफलता के कई दावेदार होते हैं, लेकिन विफलता में कोई साथ नहीं होता. सफलता का श्रेय लेने के लिये लोगों में होड़ रहती है, लेकिन विफलता को कोई स्वीकार नहीं करना चाहता, सभी लोग दूसरे लोगों की तरफ उंगली दिखाते हैं.'
गडकरी ने पुणे जिला शहरी सहकारी बैंक असोसिएशन लिमिटेड द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में यह बात कही थी. उन्होंने कहा था कि 'नेतृत्व में अपयश की जिम्मेदारी लेने की क्षमता भी होनी चाहिए, क्योंकि इससे संस्था के साथ उनके रिश्ते मजबूत होते हैं.'
लेकिन, इस बयान पर गडकरी की तरफ से सफाई भी आई, उन्होंने कहा था कि उनके बयान का मतलब पार्टी नेतृत्व के लिए नहीं था, बल्कि यह बैंक के संदर्भ में था. लेकिन, इसके दो ही दिन बाद उन्होने कहा कि ‘अगर सांसद विधायक बेहतर काम नहीं कर रहे हैं तो यह जिम्मेदारी पार्टी प्रमुख की होती है.’
केंद्रीय मंत्री ने की नेहरू की तारीफ
हालाकि गडकरी पहले भी अपने बड़बोले बयान को लेकर चर्चा में रहते हैं. अभी मंगलवार को ही उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की तारीफ की थी. एक कार्यक्रम के दौरान गडकरी ने कहा था, ‘नेहरू जी अक्सर कहते थे, भारत राष्ट्र नहीं, एक जनसंख्या है. वे कहते थे कि हर व्यक्ति देश के लिए प्रश्न है, समस्या है. मुझे ये भाषण अच्छा लगता है, मैं भी इतना कह सकता हूं कि देश के लिए कभी समस्या नहीं बनूंगा.’
बीजेपी अक्सर नेहरु-गांधी परिवार और उनकी विरासत को लेकर कटाक्ष करती है, आलोचना करती है. पार्टी के निशाने पर हमेशा पंडित नेहरू रहते हैं, लेकिन, अब उनकी पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री की तरफ से तारीफ के शब्द कहा जा रहा है.
मराठी शो के कार्यक्रम में भी दिया था बयान
हालांकि यह पहला मौका नहीं है, इसके पहले भी कई ऐसे मौके हैं जब नितिन गडकरी ने अपनी साफगोई से बीजेपी आलाकमान और सरकार को सकते में डाल दिया है. गडकरी ने एक मराठी कॉमेडी शो के दौरान भी बीजेपी के वादों के बारे में सवाल के जवाब में जो कहा वो सरकार को परेशान करने वाला था. गडकरी ने कहा था, ‘हमें भरोसा था कि हम सत्ता में नहीं आएंगे. इसलिए हम बड़े वादे करते गए.’
गडकरी के इस बयान को कांग्रेस समेत विपक्षी पार्टियों ने मुद्दा बना लिया जिसके बाद सफाई में गडकरी ने कहा था कि ‘उन्होंने मोदी सरकार के बारे में या फिर 15 लाख रुपए का जिक्र नहीं किया था.’ उन्होंने अपने बयान को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के संदर्भ में दिया गया बयान बताया था.
गडकरी ने नाना पाटेकर के साथ बातचीत के दौरान कहा था, ‘हम सभी को विश्वास और आत्मविश्वास था कि हम जीवन में कभी सत्ता में आएंगे ही नहीं. इसलिए हमारे आसपास के लोग कहते थे कि आप तो बोलिए, वादे कीजिए, क्या बिगड़ेगा? आप पर कौन-सी जवाबदारी आने वाली है? लेकिन अब जवाबदारी आ गई.’
गडकरी की तरफ से आ रहे पिछले कुछ महीनों के बयान को लेकर कहा जा रहा है सरकार के कार्यकाल के पांचवें साल में आते-आते क्या गडकरी पार्टी के भीतर भी ज्यादा सक्रिय हो गए हैं. क्या गडकरी आगे के लिए अपनी ‘पोजिशनिंग’ तो नहीं कर रहे हैं जिससे लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद उनकी भूमिका और जिम्मेदारी सरकार और पार्टी में बढ़ सके ? वजह जो भी हो लेकिन, गडकरी का बयान पार्टी आलाकमान को असहज करने वाला जरूर है.
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