अब भारत में, टेलीविजन ये तय करने लगा है कि उसके नेता क्या कहें, क्या करें, कब और कैसे व्यवहार करें. दर्शकों और नेताओं के बीच टीवी एक अलग दुनिया रचता है, जिसमें विज्ञापन होते हैं, ऐक्शन होता है और खूब सारी नाटकीयता होती है. लेकिन दर्शक भी होता है, जिसके लिए ये दुनिया बनाई तो जाती है, लेकिन उसे ही अनदेखा भी कर दिया जाता है.
यूपीए-2 और कांग्रेस ने इसकी महत्ता समझी और टेलीविज़न पर चलने वाले प्राइम टाइम ‘ एक्टिविज़म ’ शो के चलते बड़ी नेकनीयती से उन मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को कुर्सी से हटा दिया, जिनके खिलाफ कोई मामला बनता ही नहीं था. ये दिखाता है कि टीवी ने ये जो ‘दुनिया’ तैयार की है, उसको लेकर हमारी समझ कितनी कम है.
बीजेपी जानती थी कि इस ‘दुनिया’ के साथ खेल कैसे खेला जाए, क्योंकि उसको बनाने में उसका भी हाथ था. भ्रम फैलाकर राजनीति करना तो सुना था. लेकिन भ्रम फैला कर ‘गवर्नेंस’ करना थोड़ा नया शिगूफा है. विदेश नीति से लेकर आर्थिक मोर्चों पर लिए गए फैसलों तक, मोदी सरकार भ्रम फैलाने की ही कोशिश कर रही है.
पिछले हफ्ते पूरे देश ने लोकसभा में ऐक्शन से भरपूर ‘नो कॉन्फिडेंस मोशन’ देखा. राहुल गांधी पूरे वक्त हावी दिखे. उन्होंने मोदी जैसी शख्सियत को मजबूर कर दिया कि वे अपने अंदाज में बदलाव ले आएं. एक ओर जहां मोदी ने अपने पूरे भाषण में भ्रम का खूब इस्तेमाल किया, राहुल ने सिर्फ एक ‘झप्पी’ में लोगों को ये बता दिया कि उनकी और उनकी पार्टी की राजनीति की बनावट कैसी है. उस ‘झप्पी’ से ठीक पहले राहुल ने, जहर उगलने वाली सत्ताधारी पार्टी का जबरदस्त प्रतिरोध किया था.
राहुल का भाषण और फिर उनकी ‘झप्पी’, दरअसल ये दोनों ही उस गंभीर समझ का नतीजा हैं, जो बताता है कि हमारे मुल्क को गुंडों से कैसे निपटना चाहिए. मोदी अक्सर जताने की कोशिश करते हैं कि वे ‘पीड़ित पक्ष’ हैं. उनके सलाहकार उन्हें समझा नहीं पा रहे हैं कि जो शासन करते हैं, वे ‘पीड़ित’ होने का बहाना नहीं कर सकते. शायद नरेंद्र मोदी पहले ऐसे ‘पीड़ित’ हैं, जो अपनी उपलब्धियों को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाते हैं. पहले ऐसे पीड़ित हैं जो दावा करते हैं कि 19 राज्यों में उनकी सरकारें हैं और पिछले 30 साल में उनकी ही ऐसी अकेली सरकार है, जिसे पूर्ण बहुमत मिला है.
अगर आप खुद को ताकतवर बताते हैं, तो कुछ वैसा कर के दिखाइए. भारत की विदेश नीति इस वक्त अपने निम्नतम बिंदु पर है. नेपाल से श्रीलंका तक, मालदीव से पाकिस्तान, चीन हमारे हितों को नुकसान पहुंचा रहा है. पहली बार ऐसा हुआ है कि अब रूस पाकिस्तान को हथियार बेच रहा है और पहली बार रूस और पाकिस्तान ने संयुक्त सैन्य अभ्यास भी किया है. और सबसे शर्मनाक ये कि पहली बार ये भी होता दिख रहा है कि राजस्थान-गुजरात बॉर्डर पर चीन पाकिस्तान को 350 बंकर बना कर दे रहा है. विदेशों में प्रवासी भारतीयों के सामने बड़े शो कर ये दिखाना कि कैसे वे प्रवासियों के वोटों को प्रभावित कर सकते हैं, भी अब फीका पड़ चुका है. कम से कम मोदी के हाल की विदेश यात्राओं में इस तरह के शो देख कर तो ऐसा ही लगता है. कम शब्दों में नरेंद्र मोदी की विदेश नीति को कुछ यों समझ सकते हैं-‘ कैसे अपने दोस्तों को खोएं और लोगों को खुद से दूर करें. ’
मीडिया, एक्टिविस्ट्स और विपक्ष का हक ही नहीं, कर्तव्य भी है कि वे आपकी असफलताओं पर सवाल खड़े करें. हो सकता है कि इनमें से कुछ लोगों को आपने पालतू बना लिया हो और वो आपके सामने नतमस्तक हो गए हों. लेकिन जो नतमस्तक नहीं हुए, जो आप पर सवाल खड़े करते हैं और जो आपको आईना दिखाते हैं, उन्हें धता बताने के लिए आप ‘पीड़ित’ वाला कार्ड मत खेलिए. वे आपको ‘शिकार’ नहीं बना रहे, बल्कि आपकी गलत और बेजा नीतियों और राजनीति के शिकार लोगों को एक आवाज दे रहे हैं.
राहुल ने अविश्वास प्रस्ताव के भाषण से क्या पाया, ये उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना ये कि मोदी ने उस दिन क्या खो दिया. देश ने उस दिन मोदी के किले का नि:शब्द और डरावना पतन देखा. 90 मिनट के उनके भाषण में उस किले के मलबे के बस टुकड़े दिखते हैं. अपने भाषण में वे शिष्टता दिखा सकते थे. वे एकरस से हो चुके अपने भाषण का अंदाज उस दिन बदल सकते थे. लेकिन उन्होंने ऐसा न करके, घटिया मिमिक्री का अंदाज चुना. राहुल गांधी ने उन्हें मौका तो दिया ही था कि वे पुराने पड़ चुके, वायरस संक्रमित अपने सॉफ्टवेयर को थोड़ा ठीक कर लें. लेकिन नरेंद्र मोदी ने वो मौका नज़रंदाज़ कर दिया. और उन्होंने जो चुना, उसकी बड़ी कीमत उन्हें आने वाले महीनों में, 2019 के चुनावों में चुकानी पड़ सकती है.
लेकिन 20 जुलाई की तस्वीरें, राहुल गांधी के कुछ महत्वपूर्ण शब्दों पर भारी पड़ गईं, जिसमें उन्होंने बताया था कि मोदी और अमित शाह के लिए 2019 का चुनाव जीतना क्यों महत्वपूर्ण है. क्योंकि उन्हें शंका है कि अगर वे हारे, तो उनके खिलाफ कोई ‘कार्रवाई’ न हो जाए. मोदी की डर और गुस्से की राजनीति को जब राहुल ने ध्वस्त किया, नरेंद्र मोदी के चेहरे पर आते-जाते भावों ने दिखा दिया कि राहुल के आरोपों में कितनी सच्चाई है. आंख मार कर राहुल ने किसी नौजवान की सी स्वाभाविकता दिखाई. लोग अपने नेता के तौर पर ऐसा शख्स नहीं चाहते, जो शानदार कपड़े तो पहने लेकिन रोबोट की तरह अमानवीय हो.
जब राहुल मोदी से गले मिलने उनकी सीट तक गए, तो मोदी की शानदार बॉडी लैंग्वेज की लय-ताल साफ बिगड़ी हुई दिखी. हालांकि असल नुकसान ये है कि 20 जुलाई 2018 को मोदी ने अपनी साख खो दी. एक कमजोर ‘पीड़ितवाद’और इतिहास की विचित्र समझ पर खड़ी, मोदी की इस कहानी का एक दिन अंत तो ऐसा ही होना था. एक ‘झप्पी’ ने उसका अंत कर दिया.
( लेखक कांग्रेस के प्रवक्ता हैं. )
हंदवाड़ा में भी आतंकियों के साथ एक एनकाउंटर चल रहा है. बताया जा रहा है कि यहां के यारू इलाके में जवानों ने दो आतंकियों को घेर रखा है
कांग्रेस में शामिल हो कर अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत करने जा रहीं फिल्म अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर का कहना है कि वह ग्लैमर के कारण नहीं बल्कि विचारधारा के कारण कांग्रेस में आई हैं
पीएम के संबोधन पर राहुल गांधी ने उनपर कुछ इसतरह तंज कसा.
मलाइका अरोड़ा दूसरी बार शादी करने जा रही हैं
संयुक्त निदेशक स्तर के एक अधिकारी को जरूरी दस्तावेजों के साथ बुधवार लंदन रवाना होने का काम सौंपा गया है.