प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेपाल के अपने दो दिनों के दौरे की शुरुआत जनकपुर से की. सीता की धरती पर मोदी ने मंदिर में उन्हें नमन भी किया, पूजा-अर्चना भी की और जनकपुर से अयोध्या तक चलने वाली बस को हरी झंडी दिखाकर रवाना भी कर दिया.
जनकपुर धाम में विजिटर डायरी में मोदी ने लिखा, ‘जनकपुर धाम करने की मेरी बहुत पुरानी इच्छा आज पूरी हुई. भारत और नेपाल के लोगों के दिल में विशेष महत्व रखने वाले इस तीर्थस्थल की यात्रा मेरे लिए एक यादगार अनुभव है. आज यहां मेरे गर्मजोशी भरे स्वागत के लिए मैं नेपाल सरकार और जनकपुर के लोगों का आभारी हूं. जनकपुर वासियों और नेपाल के सभी लोगों के जीवन में शांति, प्रगति और समृद्धि के लिए मैं भारत के लोगों की ओर से हार्दिक शुभकामनाएं प्रकट करता हूं.’
जनकपुर में अपने भव्य स्वागत से भावविभोर हो चुके मोदी जब जनकपुर के लोगों को संबोधित करने के लिए मंच पर खड़े हुए तो वहां के लोगों ने भी उसी भाव से उनका तालियों की गड़गड़ाहट से स्वागत किया. तनिक भी नहीं लग रहा था कि मोदी भारत से बाहर किसी दूसरे देश में हैं. मंच पर उनका स्वागत भी परंपरागत मैथिली गीत से किया गया.
मिथिलांचल की संस्कृति में अपने घर आए मेहमान का स्वागत कुछ इसी अंदाज में किया जाता है. मिथिला की पावन भूमि पर मोदी जब संबोधन के लिए खड़े हुए तो उन्होंने भी लोगों को निराश नहीं किया. मैथिली में ही अपने भाषण की शुरुआत कर उन्होंने लोगों को जोड़ने की पूरी कोशिश की.
जनकपुर से पूरे मिथिलांचल पर नजर
दरअसल, मोदी के इस दौरे की खासियत भी यही है. नेपाल के मिथिलांचल इलाके में जनकपुर की धरती से मोदी का मैथिल प्रेम का संदेश जनकपुर से सटे बिहार के मिथिलांचल इलाके के लिए भी था. मोदी ने इस मौके पर मिथिला के कवि विद्यापति से लेकर मिथिला की संस्कृति का गुण-गान कर जनकपुर से लेकर बिहार के मैथिली समुदाय को साधने की पूरी कोशिश की.
लगभग एक घंटे के अपने भाषण के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनकपुर से लेकर अयोध्या के बीच संबंधों का जिक्र कर दोनों ही देशों के रिश्तों की मजबूत डोर को अटूट बताया. मोदी ने कहा सीता के बिना राम अधूरे हैं. जनकपुर के बिना अयोध्या अधूरी है. इस बयान से उन्होंने दोनों ही देशों के बीच अटूट और आत्मीय संबंधों की याद फिर से दिला दी.
नेपाल और बिहार के मिथिलांचल इलाके में बेटी-रोटी का संबंध रहा है. बिहार के पूर्वांचल इलाके के लोग भी सीता को अपनी बेटी-बहन मानते हैं. मोदी ने मां सीता की जन्मस्थली पहुंचकर सीधे इस पूरे इलाके को अपना बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी.
दरअसल, सरकार रामायण सर्किट के तहत भगवान राम से जुड़े हुए सभी तीर्थस्थलों को जोड़ रही है. अब जनकपुर से सीतामढ़ी होते हुए यह बस अयोध्या तक जाएगी. बिहार औऱ यूपी के इस पूरे इलाके के लोगों के लिए जनकपुर धाम से लेकर अयोध्या तक की यात्रा काफी आसान हो जाएगी.
जनकपुर से मोदी का अयोध्या कार्ड
दरअसल, अयोध्या को लेकर जब भी कोई चर्चा होती है, भगवान राम और राम मंदिर के मुद्दे पर बहस जोर पकड़ने लगती है. अयोध्या में राम मंदिर को लेकर चले आंदोलन के बाद से ही बीजेपी ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया है. लेकिन, अब मामला सुप्रीम कोर्ट में है लिहाजा राम मंदिर के निर्माण को लेकर सरकार कोर्ट के फैसले का इंतजार करने की बात कह रही है. जनकपुर धाम से अयोध्या का जिक्र कर मोदी ने एक बार फिर से भगवान राम के प्रति अपनी आस्था के जरिए एक बड़े तबके को बड़ा संदेश दिया.
भारत-नेपाल के बीच अटूट संबंध
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत और नेपाल के बीच संबंधों को अनादि काल से आ रहा संबंध बताकर दोनों को एक-दूसरे का पूरक बताया. हालांकि अबतक दोनों देशों के रिश्तों में भारत को बड़े भाई के तौर पर ही देखा जाता रहा है. हकीकत में ऐसा है भी, लेकिन, जनकपुर के लोगों को संबोधित करते वक्त मोदी ने बड़ा भाई के बजाए बराबरी के भाव से भारत-नेपाल के बीच संबंधों का जिक्र किया.
मोदी ने कहा हमारे संबंध त्रेता युग से हैं. अयोध्या के राजा दशरथ और जनकपुर के राजा जनक का जिक्र कर सीता-राम के विवाह की चर्चा कर मोदी ने दोनों देशों को सांस्कृतिक तौर भी एक-दूसरे करीब बताने की पूरी कोशिश की. इसके अलावा भगवान बुद्ध और महावीर का नाम लेकर भी दोनों देशों के सदियों पुराने संबंध का जिक्र मोदी ने किया.
दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्ता भी काफी पुराना रहा है. लेकिन, चीन के नेपाल के भीतर बढ़ते दखल को कम करने के लिहाज से भारत ने दोनों देशों के बीच रेल सेवा, सड़क मार्ग और जल मार्ग को और बेहतर करने पर काम शुरू कर दिया है. जल्द ही जयनगर-जनकपुर रेल लाइन बनकर तैयार हो जाएगी. इसके अलावा रक्सौल से काठमांडु को जोड़ने वाली रेल लाइन पर काम हो रहा है. इसके अलावा नेपाल को बिजली सप्लाई से लेकर हर तरह से मदद देने की कोशिश भारत कर रहा है. भारत नहीं चाहता कि किसी भी सूरत में नेपाल के भीतर उसके दबदबे को चीन की तरफ से चुनौती मिले. लेकिन, ऐसा करते वक्त मोदी की कोशिश नेपाल की भावना का ख्याल भी रखना है. मोदी के संबोधन के दौरान दोनों देशों के रिश्तों का जिक्र करते हुए नेपाल को बराबरी का दर्जा देकर एक सच्चे दोस्त के तौर पर पेश करना यही दिखाता है.
रामचरितमानस की चौपाई के माध्यम से मोदी को नेपाल को दिया गया दोस्ती का मूल मंत्र भी यही बता रहा है. मोदी ने कहा
जे न मित्र दुख, होई दुखारी, तिनहीं बिलोकत पातक भारी
निज दुख घिरी सम रजकरी जाना, मित्रक दुख रज मेरू समाना.
मतलब, जो मित्र के दुख से दुखी नहीं होते, उन्हें देखने मात्र से ही पाप लगता है. अपना पहाड़ जैसा दुख भी धूल जैसा मानकर चलना चाहिए. लेकिन, मित्र का दुख धूल जैसा भी हो तो उसे पहाड़ जैसा मानकर काम करना चाहिए.
नेपाल पर आई विपदा के समय भारत ने मदद तो काफी की थी. अब इस चौपाई के माध्यम से मोदी नेपाल को भी मित्र धर्म निभाने की इशारों-इशारों में नसीहत दे गए.
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