नजीब जंग के दिल्ली के उप-राज्यपाल पद से इस्तीफा देने से सब हैरान हैं. 2013 में तेजेन्दर खन्ना की जगह नजीब जंग उप-राज्यपाल बने थे. 2015 में जब से आम आदमी पार्टी (आप) दिल्ली में चुनकर आई थी. उनका मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से संवैधानिक अधिकारों को लेकर विवाद चला आ रहा था.
केजरीवाल और उनके लोग जिससे आंख से आंख मिलाकर बात नहीं करते थे, वो इस इस्तीफे से खुश हो सकते हैं.
कई सवाल उठ खड़े होंगे
उप-राज्यपाल बनने से पहले नजीब जंग जामिया मिलिया इस्लामिया के तेरहवें कुलपति थे. अपने एजुकेशनल बैकग्राउंड और शांत व्यवहार से अलग जंग, केजरीवाल के साथ काफी समय तक विवादों से जुड़े रहे.
अक्सर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी बताए जाने वाले नजीब जंग पर केजरीवाल हमेशा अपनी सरकार के काम में बाधा डालने का आरोप लगाते रहे हैं.
1992 में बने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र कानून, दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश का विशेष दर्जा देता है. लेकिन इससे जुड़ी जटिलताओं के चलते एलजी जबतक अपने पद पर रहे, वो और सीएम केजरीवाल एक दूसरे की बात काटते रहे.
— ANI (@ANI_news) December 22, 2016
चाहे जितनी भी दलील दें, ये कहा जाएगा कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार के साथ नजीब जंग के कटु रिश्ते रहे. जिसके लिए उनसे पूछा जाएगा.
शिक्षा के क्षेत्र में वापस लौटेंगे
शीला दीक्षित सरकार के समय एलजी बनाए गए नजीब जंग की स्वस्थ छवि एक शिक्षाविद की है. वो हमेशा से दावा करते रहे हैं कि ये उनका 'पहला प्यार' है. केंद्र को भेजे अपने इस्तीफे में उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में वापस लौटने का जिक्र किया.
ये जो कुछ भी अचानक से दिलचस्प हुआ है, उससे आम आदमी पार्टी के लिए 'कभी न खत्म होने वाली' जैसी स्थिति बनती दिख रही है.Najeeb Jung would be returning to his first love, which is, academics: Lt.Governor office #Delhi
— ANI (@ANI_news) December 22, 2016
अब जबकि, जंग ने इस्तीफा दे दिया है, इससे न सिर्फ एलजी की कुर्सी खाली हुई है. बल्कि आप के लिए जंग को अपनी नाकामियों के लिए जिम्मेदार ठहराने का बहाना भी चला गया है. जैसा कि अब तक वो हमेशा करते आए हैं. बेकार की बात को लेकर शोर मचाना एक बात है. और मुश्किल हालात में काम की शुरुआत कर उससे नतीजे लाना और बात है.
ये सोच लेना दिलचस्प होगा कि, जंग के इस्तीफा देने से जो दिन शायद केजरीवाल के लिए जीत का जश्न मनाने जैसा हो. वो उनके खिलाफ न हो जाए.
आने वाले पंजाब चुनाव को खास कर ध्यान में रखकर देखें तो एक गवर्नर का दबाव में आकर. या विरोध के चलते इस्तीफा दे देना, नए राज्यों में अपनी जड़ तलाश रहे आप को लेकर अच्छा संदेश नहीं देता.
इस्तीफे पर खामोश बने रहने की सलाह
49 दिन की अपनी पहली सरकार से शोर मचाकर इस्तीफा देने वाले केजरीवाल से अलग. नजीब जंग ने सबको हैरानी में डालते हुए और खामोशी से अपना इस्तीफा भेज दिया. ऐसा करने के दौरान उन्होंने अपने धुर विरोधी केजरीवाल को धन्यवाद दिया.
केजरीवाल इसपर अपनी क्या प्रतिक्रिया देते हैं, ये देखना अहम होगा. नजीब जंग ने जिस शालीन तरीके से ये कदम उठाया है, केजरीवाल के लिए शायद उन्हें वैसा ही सम्मान से भरा और धन्यवाद देना उचित रहेगा.
लेकिन इससे अलग, केजरीवाल एक दूसरा रास्ता भी अपना सकते हैं. जिसमें वो जंग के इस्तीफे को नोटबंदी को लेकर केंद्र पर पड़ते दबाव से ध्यान हटाने के लिए उठाया गया कदम ठहरा सकते हैं.
इसे एक लुभावना राजनीतिक कौशल माना जाएगा. लेकिन केजरीवाल को इसपर खामोश बने रहने की सलाह दी गई होगी. और इसे लेकर किसी तरह की सियासी लड़ाई में पड़ने के बजाए उनसे एकांत में चिंतन करने की सलाह दी गई होगी.
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