कल राष्ट्रीय उलेमा कौंसिल के सदर मौलाना आमिर रशादी ने लखनऊ के महंगे क्लार्क्स अवध होटल में बहुजन समाज पार्टी के समर्थन का एलान किया. उसके अगले दिन दिल्ली की शाही मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुख़ारी ने मायावाती के लिए फतवा दिया.
पर सवाल यह उठता है कि मायावती के समर्थन में आने वाले इन उलेमाओं का समर्थन मुसलमानों के बीच कितना है.
अब मौलाना आमिर रशादी से ही शुरू करें. रशादी ने होटल क्लार्क्स अवध में मौजूद बीएसपी के राष्ट्रीय महासचिव नसीमुद्दीन सिद्दीकी का हाथ उठा कर एलान कर दिया कि उनके समर्थन के बाद अब मुसलमान बीएसपी को वोट करेगा.
रशादी ने ये भी कह दिया कि उनकी पार्टी कोई उम्मीदवार नहीं खड़ा करेगी. पहले उनकी 85 सीटों पर लड़ने का प्लान था. अब वो बीएसपी का समर्थन करेंगे.
उलेमा कौंसिल है क्या चीज?
उलेमा कौंसिल का प्रभाव क्षेत्र आजमगढ़ और उसका आसपास का एरिया है. साल 2008 में बटला हाउस एनकाउंटर के बाद इसका गठन हुआ था. इस एनकाउंटर में आजमगढ़ के दो लड़के मारे गए थे और दो गिरफ्तार हुए थे. पुलिस का आरोप था कि ये आतंकवादी हैं. इस घटना में एक पुलिस इन्स्पेक्टर की मौत भी हो गई थी.
इसके बाद आजमगढ़ और आसपास के मुसलमानों में इन लड़कों को बेगुनाह माना गया और उलेमा कौंसिल ने इस गुस्से को आंदोलन का रूप दे दिया. मुसलमानों में गुस्सा इतना था कि कांग्रेस को इसका बहुत राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ा था.
लेकिन उलेमा कौंसिल को मुसलमानों का समर्थन कभी वोट में नहीं बदला. रशादी ने खुद 2014 में मुलायम सिंह यादव के खिलाफ चुनाव लड़ा लेकिन 5000 वोट नहीं मिले.
ऐसे में रशादी के समर्थन का अंदाजा लगाया जा सकता हैं. 2012 में विधान सभा चुनाव में उन्होंने 64 उम्मीदवार खड़े किए सब के सब हारे और 63 की जमानत जब्त हो गई.
इस बार उन्होंने काफी पहले तैयारी शुरू की थी. हेलीकाप्टर से प्रचार शुरू किया लेकिन अंत में समर्थन पर मान गए. रशादी की अपील कितनी प्रभावी होगी, ये तो रिजल्ट बताएंगे, लेकिन एक बात जाहिर हैं की अभी कौंसिल आजमगढ़ में पूरी तरह पैर नहीं जमा पाई है.
दिल्ली के शाही इमाम का जलवा कितना है ?
शाही इमाम सैयद अहमद बुख़ारी ने भी होटल क्लार्क्स अवध में उन्होंने समर्थन का एलान कर दिया. कारण उनका भी वही- एसपी सरकार मुसलमानों से किए हुए वादे पूरी नहीं कर पाई हैं, मुज़फ्फरनगर, दादरी कांड अखिलेश यादव के कार्यकाल में हुआ.
बुखारी ने पिछले चुनाव में एसपी के लिए अपील जारी की थी. उनके दामाद उमर अली खान ने एसपी के टिकट से बेहट विधानसभा सहारनपुर जिले में चुनाव भी लड़ा लेकिन हार गए. लेकिन उनको एसपी ने एम एल सी बना दिया.
बुखारी के खास वसीम अहमद को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का चेयरमैन भी बनाया गया. लेकिन बीच बीच में बुखारी नाराज होते रहे और मुलायम को खत लिखते रहे.
आज़म खान मंच से जितना तीखा बोलते हैं मंच से नीचे उससे कहीं ज्यादा खुल कर अपने दुश्मनों के बारे में राय जाहिर करते हैं. लेकिन मुस्लिम बहुल रामपुर से बुख़ारी को खान हमेशा लताड़ते रहे और जीतते रहे.
शुरू में तो बुखारी ने काफी सुर्खियां बटोरी लेकिन धीरे धीरे वो पीछे हो गए. हालांकि अपने दामाद को एसपी से एम एल सी बनवा कर अब उनका नैतिक पक्ष कमजोर दिखने लगा.
लेकिन चुनाव आया और बुखारी फिर नई अपील के साथ आ गए. अपना समर्थन दे दिया. आम मुसलमान अब इस तरह के समर्थन के एलान से दूर ही दिखता हैं.
इससे पहले भी बुखारी दूसरी पार्टियों को समर्थन का एलान कर चुके हैं लेकिन असर कहीं नहीं दिखा. दिल्ली में बुखारी के घर में उनके कट्टर विरोधी और उन्हें खुलेआम बेहद बुरा भला कहने वाले शोएब इकबाल हमेशा जीतते रहे.
और किन किन उलेमाओं की चुनावों में दिलचस्पी है?
ऐसे बहुत से मौलाना, मुस्लिम संस्थाएं हैं जो चुनाव के वक्त अपना समर्थन जारी करते रहते हैं.
मौलाना कल्बे जव्वाद मशहूर शिया मौलाना हैं. इस बार उन्होंने एसपी-कांग्रेस गठबंधन के खिलाफ मोर्चा खोल लिया हैं. उन्होंने कहा की ये दोनों दादरी-बाबरी के गुनाहगार हैं. जव्वाद की भी मुलाकात नसीमुद्दीन सिद्दीकी से हो चुकी हैं. लेकिन जव्वाद की अपील का असर अभी पुराने लखनऊ में जहां वो रहते हैं, नहीं दिख रहा हैं और एसपी-कांग्रेस दमदारी से चुनाव लड़ रही हैं.
ऐसे ही मौलाना तौकीर रजा खान बरेली के हैं. ये बरेलवी सम्प्रदाय के मामने वालों के बड़े धर्म गुरु हैं. उन्होंने ने भी अपनी पार्टी बना ली इत्तहाद ए मिल्लत कौंसिल और पिछले चुनाव में एक विधायक भी जिता लिए लेकिन वो विधायक भी एसपी में चला गया.
मौलाना रजा ने भी बीच में एसपी सरकार में दर्जा राज्यमंत्री का पद ले लिया लेकिन फिलहाल अलग हैं और चुनाव लड़ रहे हैं. यहीं नहीं उन्होंने पिछले दिल्ली चुनाव में अरविंद केजरीवाल के समर्थन का भी एलान कर दिया. हालांकि बरेली में ही वो सीटें नहीं जीत पाते हैं.
लखनऊ में ही मौलाना सलमान हुसैनी नदवी भी अपने समर्थन का एलान कर चुके हैं. इस बार उनकी अपील बीएसपी की तरफ हैं. पिछली बार उन्होंने इत्तेहाद फ्रंट बना दिया था और दावा किया था सरकार बनाने का. उसमे छोटे-छोटे दल थे जिनके नाम भी अब ध्यान नहीं आ रहे.
वैसे हो सकता है कि मुसलमान बीएसपी को वोट दें पर अगर ऐसा हुआ तो इसकी वजह इन उलेमाओं की अपील तो शर्तिया नहीं होगी.
(लेखक उत्तर प्रदेश के राजनीतिक मामलों के जानकार और स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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