बुधवार को समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने एसपी के 325 उम्मीदवारों की सूची जारी की. इस अवसर पर शिवपाल यादव भी मौजूद थे.
इस सूची को देखकर यह कहा जा सकता है कि अखिलेश भले ही चुनाव में एसपी का चेहरा हो लेकिन मुलायम को आज भी चुनावी जीत के लिए शिवपाल पर अधिक भरोसा है.
आम तौर पर किसी भी पार्टी में टिकट पाए उम्मीदवारों की घोषणा या तो प्रदेश अध्यक्ष करते हैं या पार्टी का संसदीय बोर्ड. यूपी में एसपी के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव अभी तक 175 नामों की घोषणा कर चुके थे. इस लिस्ट में शिवपाल खेमे के साथ-साथ अखिलेश खेमे के भी कुछ लोगों के नाम शामिल थे. 26 दिसंबर को अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह यादव को 403 नामों की एक लिस्ट सौंपी थी.
मुलायम सिंह यादव ने शिवपाल और अखिलेश दोनों के लिस्टों को देखकर ही 325 नामों की इस फाइनल लिस्ट को जारी किया है. हालांकि लिस्ट देखकर यह कहा जा सकता है कि टिकट बंटवारे में शिवपाल का पलड़ा भारी रहा.
अखिलेश को सख्त नापसंद, फिर भी मिला टिकट
इस लिस्ट में वैसे कई नाम हैं जिनके नामों पर अखिलेश को घोर आपत्ति रही है. इस लिस्ट में वे आठ नाम भी शामिल हैं, जिन्हें अखिलेश ने अपने कैबिनेट से हटाया था. इसमें ओमप्रकाश सिंह, अम्बिका चौधरी, नारद राय और शादाब फातिमा का नाम लिया जा सकता है. ये सभी शिवपाल खेमे के माने जाते हैं.
समाजवादी पार्टी की अपराधिक छवि को बदलने के लिए अखिलेश यादव का ऐसे लोगों को टिकट दिए जाने पर सख्त विरोध था. अखिलेश ऐसे लोगों को नापसंद करते थे. इसमें पहला नाम अतीक अहमद का लिया जा सकता है. इन्हें कानपुर कैंट से टिकट दिया गया है.
इससे पहले टिकट बंटवारे में अतीक अहमद के नाम आने पर अखिलेश के करीबी लोगों ने कहा था कि अतीक अहमद को टिकट नहीं मिलेगा. इस पर अतीक अहमद ने कहा था कि उन्हें हर हाल में टिकट मिलेगा.
अखिलेश की नापसंदी में दूसरा नाम मुख़्तार अंसारी का है. उनके तीसरे भाई मोहम्मदाबाद से चुनाव लड़ेंगे. इसमें तीसरा नाम रामपाल यादव का है. जिन्हें बिसवां से टिकट दिया गया है.
रामपाल यादव ने लखनऊ में एक गैर-कानूनी इमारत बनाई थी. जिसे अखिलेश सरकार के इशारे पर लखनऊ विकास प्राधिकरण ने गिरा दिया था. बाद में रामपल यादव को अखिलेश ने पार्टी से निकाल दिया था. ऐसे व्यक्ति की पार्टी में वापसी और टिकट दिया जाना अखिलेश खेमे के लिए झटका है.
अखिलेश की मुश्किल
चुनाव आयोग ने संकेत दिया है कि वह जल्दी ही चुनावों के तारीख की घोषणा कर सकता है. ऐसी स्थिति में एक हफ्ते के भीतर चुनाव प्रचार शुरू हो जाएंगे. यहां सवाल यह खड़ा होता है कि क्या अखिलेश उन लोगों का प्रचार करेंगे जिनका वे अब तक विरोध करते आये हैं.
भले मुलायम सिंह यादव ने मुख्यमंत्री पद के चेहरे की घोषणा नहीं की है. लेकिन फिर भी अखिलेश चुनाव प्रचार में पार्टी का मुख्य चेहरा होंगे. ऐसी स्थिति में जिन नामों पर अखिलेश को आपत्ति थी, उनका प्रचार करना उनके लिए मुश्किल होगा. क्या अखिलेश प्रचार के दौरान ऐसे लोगों के क्षेत्र में जाने से बचेंगे.
अखिलेश के कई करीबी लोगों के टिकट भी मुलायम सिंह यादव ने काट दिए हैं या उनके नामों पर संशय अभी बना हुआ है. यह कहा जा सकता है कि भले चुनाव में जीत के बाद अखिलेश मुख्यमंत्री बने. लेकिन चुनावी जीत के लिए मुलायम को आज भी शिवपाल पर ही अधिक भरोसा है.
अखिलेश यादव के तमाम प्रयासों के बावजूद मुलायम को यह नहीं लगता कि अखिलेश का चेहरा चुनाव जीतने के लिए पर्याप्त है.
परंपरागत आधार पर मुलायम को भरोसा
लिस्ट को देखकर यह कहा जा सकता है एसपी मुखिया को आज भी चुनाव जीतने के लिए परंपरागत आधार पर ही भरोसा है. अखिलेश के बदलाव की बातें इस लिस्ट से नहीं दिखती है.
एसपी नेतृत्व आज भी अपनी पुरानी स्थापित विचारधारा पर चल रहा है. टिकट बंटवारे से यह साफ़ है. टिकट बंटवारे में मुलायम ने जातिगत एवं अन्य समीकरणों को ध्यान में रखा है.
कई अपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों के साथ-साथ बड़ी संख्या में मुस्लिमों, पिछड़ों और अतिपिछड़ों को टिकट दिए गए हैं. ये समाजवादी पार्टी के परंपरागत वोटबैंक रहे हैं.
अखिलेश यादव अन्य वर्गों को भी साथ लेकर चलने की बात कई दिनों से कर रहे थे. लेकिन इस लिस्ट को देखकर ऐसा नहीं लगता है.
इस लिस्ट को देखकर यह कहा जा सकता है एसपी फिलहाल किसी नए बदलाव के लिए तैयार नहीं है.
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