सिनेमाहॉल में एक तरफ आमिर खान की दंगल धूम मचा रही है तो दूसरी तरफ यूपी में बाप-बेटे की सियासी दंगल का धमाका है.
समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव और उनके बेटे अखिलेश यादव के बीच छिड़ी रियल दंगल सिनेमा से कहीं ज्यादा दिलचस्प है.
आमिर खान की फिल्म में दिखाया गया है कि एक पिता अपनी बच्चियों को कुश्ती में माहिर करने के लिए जबरदस्त अनुशासन में रखता है. तो साल के जाते-जाते कुश्ती में माहिर मुलायम सिंह ने भी अपने बेटे को अनुशासनहीनता की सजा सुना दी.
आनन-फानन में मुलायम सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर अपना फरमान सुनाया कि अखिलेश यादव और भाई रामगोपाल यादव को 6 साल के लिए पार्टी से निकाला जाता है.
रील लाइफ में भले ही पहलवान पिता की सख्ती काम आ गई हो लेकिन रियल लाइफ में पिता का दांव उलटा पड़ सकता है.
जनता चाहे नेता, बाप चाहे आज्ञाकारी बेटा
नेता जी ने जैसे ही बेटे को पार्टी से निकाला जनता सड़कों पर उतर आई. अखिलेश यादव के समर्थक उन्हें युवा नेता के तौर पर देख रहे हैं और पिता को वे अनुशासनहीन बेटे नजर आ रहे हैं.
मुलायम सिंह ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा है कि उन्होंने समाजवादी पार्टी को खून-पसीने से सींचा है. दूसरी तरफ बेटे को यह लगता है कि उसने 5 साल तक विकास के नाम पर काम किया है तो पार्टी पर उनका ज्यादा हक है.
बाप-बेटे की इस दंगल को खानदान के दो चाचा- शिवपाल और रामगोपाल संतुलित कर रहे हैं. शिवपाल की समाजवादी पार्टी और दबंगों के बीच अच्छी पकड़ है लेकिन आम जनता को अखिलेश की सौम्यता पसंद आ रही है. यही वजह है कि वे अपने युवा नेता को पार्टी से निकालने का विरोध कर रहे हैं.
उत्तर भारत की राजनीति के लिए नया है जनता का ऐसा प्यार
नेता के लिए जनता का ऐसा प्यार उत्तर भारत की राजनीति के लिए एकदम नई बात है. इस पर वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी का कहना है, 'उत्तर भारत में इस तरह का लगाव इससे पहले इंदिरा गांधी के लिए देखा गया था, लेकिन वह मामला अलग था. अखिलेश यादव को मिडिल क्लास शहरी वर्ग का समर्थन है.'
खबर यह भी आई कि अखिलेश के निष्कासन से नाराज समर्थकों में से एक ने आत्मदाह की कोशिश की. हालांकि, पुलिस ने तत्काल मौके पर पहुंच कर उसे हिरासत में ले लिया. अखिलेश के समर्थकों की फौज 'शिवपाल यादव चोर है' जैसे नारे भी लगा रही थी.
पहली बार किसी पार्टी ने अपने ही सीएम को निकाला
किसी उत्तर भारतीय नेता के लिए जनता का ऐसा जोश और जुनून शायद ही पहले कभी देखने को मिला हो. वैसे पहले कभी यह भी नहीं हुआ कि किसी पार्टी के मुख्यमंत्री को ही पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया गया हो.
अभी यह कहना मुश्किल है कि जनता का यह प्यार अखिलेश के लिए वोट में बदलेगा या नहीं. लेकिन इतना तो तय है कि अपने पिता से राजनीति सीखने वाले अखिलेश यूं ही हार नहीं मानेंगे.
अखिलेश के मन की बात
एनडीटीवी के लिए बरखा दत्त को दिए एक इंटरव्यू में अखिलेश से जब यह पूछा गया कि क्या आपको बुरा नहीं लगता जब आप मुख्यमंत्री की हैसियत से काम करना चाहते हैं या अपराधियों के खिलाफ काम करते हैं तो आपको रोका जाता है. क्या आपको इससे घुटन नहीं होती?
इस पर अखिलेश ने जवाब दिया था कि राजनीति में रफ्तार हर वक्त एक जैसी नहीं होती. कभी धीमी तो कभी तेज होती है.
मौजूदा हालात में अखिलेश अपनी रफ्तार कैसी रखते हैं यह तो आने वाला वक्त बताएगा. लेकिन इतना जरूर है कि अगर मुलायम सिंह मंझे हुए नेता हैं तो अखिलेश के राजनीति गुरू भी वही हैं.
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