पूर्वांचल की मऊ सदर सीट से बीएसपी के बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी को बांदा जेल में दिल का दौरा पड़ने की खबर आने के बाद मंगलवार की दोपहर पूर्वांचल में हजारों फोन अचानक बजने लगे. जरायम पेशे और राजनीति से जुड़े हर खास-ओ-आम के लिए चर्चा का विषय बन चुके इस घटनाक्रम ने अप्रत्याशित रूप से तरह-तरह की अफवाहों को भी जन्म दिया और कुछ मिनटों में ही व्हाट्सएप ग्रुप और समाचार वेबसाइटों के माध्यम से नई-नई खबरें बाजार में तैरने लगीं. इस खबर के बाद पूर्वांचल के कई जिलों से मुख्तार के कई समर्थक लखनऊ की ओर निकल पड़े जिसके बाद अफवाहों का बाजार और गर्म हो गया.
हालांकि अब तक की स्पष्ट जानकारी के अनुसार मुखतार अंसारी की पत्नी अफशां अंसारी उनसे मिलने गई हुई थीं कि तभी बातचीत के क्रम में उनके सामने ही मुख्तार अंसारी को दिल का दौरा पड़ा. उन्हें दिल का दौरा पड़ते देख उनकी पत्नी भी वहीं बेहोश होकर गिर पड़ी. विधायक के करीबियों द्वारा दबाव बनाए जाने के बाद जेल अधिकारियों ने आनन-फानन में दोनों को ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया. लेकिन दोनों की हालत बिगड़ने के बाद उन्हें लखनऊ रेफर कर दिया गया.
पूर्वांचल के बाहुबली नेता और बीएसपी विधायक मुख्तार अंसारी को विधानसभा चुनाव के बाद बांदा जेल में भेजा गया था और वे लगभग आठ महीने से बांदा जेल में बंद हैं. विधानसभा सत्र के दौरान उन्हें उन्नाव जेल भी ले जाया गया था यहीं से उन्हें हर रोज विधानसभा पहुंचाया जाता था. सत्र के बाद उन्हें वापस बांदा जेल भेजा गया था, जहां मंगलवार की सुबह उन्हें दिल का दौरा पड़ा. पारिवारिक सूत्रों के अनुसार, मुख्तार शुगर और बीपी के भी मरीज हैं और वे कई दिनों से बीमार भी चल रहे थे.
समूचे घटनाक्रम पर शासन और सरकार की भी नजर बई हुईं हैं और इस मामले पर फौरी कार्यवाही करते हुए प्रमुख सचिव गृह अरविंद कुमार द्वारा डीएम-एसपी बांदा से संयुक्त रिपोर्ट तलब की गई है. इस बाबत उत्तर प्रदेश सरकार के एडीजी कानून-व्यवस्था आनंद कुमार ने भी लखनऊ में एक अनौपचारिक बातचीत के दौरान यह स्पष्ट किया है कि मुख्तार अंसारी की तबीयत बिगड़ने के बाद हो रहे घटनाक्रम और अन्य हालात पर पुलिस नजर बनाए हुए है. सुरक्षा में कोई कमी नहीं है. दूसरी तरफ अरविंद कुमार ने बांदा डीएम व एसएसपी से ज्वाइंट रिपोर्ट मांगी है. उनका कहना है कि विधायक को हर संभव इलाज और चिकित्सा सुविधाएं मुहैया करवाए जाने के आदेश दे दिए गए हैं.
क्या वाकई मुख्तार को बांदा जेल में रखना राजनीतिक दुश्मनी के तहत है ?
इस सवाल को अगर सत्तापक्ष से पूछें तो जवाब साफ तौर पर कानून व्यवस्था का हवाला देकर दिया जाता है और आला अधिकारी भी कोई रिस्क नहीं लेने के क्रम में एक एक कदम फूंक-फूंक कर रखने की बात को बार-बार तवज्जो देते हैं. लेकिन यही बात अगर अंसारी परिवार या बीएसपी से जुड़े व्यक्ति से पूछें तो जवाब साफ तौर पर हां में ही मिलता है. मुख्तार के करीबियों का कहना है कि उन्हें लखनऊ के आसपास की किसी जेल में रखा जाना मुनासिब था. ताकि वक्त बेवक्त की ऐसी जरूरतों पर उनका इलाज बेहतर सुविधाओं से युक्त अस्पतालों में हो सके. लेकिन शासन ने सत्रावसान के बाद उन्हें वापस बांदा जेल भेज दिया और वहां मुनासिब मेडिकल सुविधाओं के अभाव में उनकी हालत और खराब हो गई.
बहरहाल अगर राजनीति की बात करें तो उत्तर प्रदेश में 2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर समीकरण बनने और बिगड़ने लगे हैं. ऐसे में बीते नगर निकाय चुनाव में मुख्तार समर्थकों की अलग-अलग इलाकों में हुई जीत के बाद कुछ संसदीय सीटों के जोड़ घटाव की कवायद में मुख्तार फिलहाल एक मजबूत स्थिति में हैं. इन सीटों में गाजीपुर, मऊ और आजमगढ़ जनपद की एक-एक सीटें हैं, जहां बीजेपी का सीधा मुकाबला बीएसपी से ही होना है और इन सभी सीटों पर अंसारी परिवार की मजबूत दावेदारी होने के कारण बीएसपी के मूल वोट बैंक में सेंध लगा पाना भी बीजेपी समेत सपा के लिए मुश्किल साबित हो रहा है.
गति पर भारी है युक्ति
बहरहाल लखनऊ और पूर्वांचल में बैठे जानकारों की मानें तो कोई भी खुल कर कुछ भी बोल पाने की स्थिति में नहीं है. दबी जुबान में कुछ खास बातों की तरफ इशारा मिलता है. जिनमे अंसारी परिवार की पूर्वांचल की राजनीति में बढ़ रही 'गति' की चर्चा सब जगह है. एक तरफ मुख्तार के बेटे अब्बास अंसारी की गाजीपुर मऊ और आजमगढ़ के कुछ इलाकों में बढ़ती राजनैतिक गतिविधियों और उनके साथ जुड़ते भारी मात्रा में गैर मुस्लिम युवा वर्ग को देख कर बीजेपी समेत सपा के लोगों की चिंता भी बढ़ी है. दूसरी तरफ गाजीपुर के जमानिया और दिलदारनगर में मुख्तार के करीबी अतुल राय की गतिविधियों ने भी सपा और बीजेपी को खासा सिरदर्द दिया है.
गौरतलब है कि मुख्तार के बेटे अब्बास को विगत विधानसभा चुनावों में मऊ की घोसी सीट से सिर्फ आठ हजार वोटों से हार मिली थी. लेकिन मऊ लोकसभा की सभी विधानसभा सीटों में बीएसपी का वोट प्रतिशत एक सम्मानजनक स्थिति में था. कमोबेश यही स्थिति गाजीपुर में भी है, जहां मुख्तार समर्थित अतुल राय ने एक विधानसभा सीट दूसरे स्थान पर रहते हुए सपा के पूर्व कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश सिंह को तीसरे स्थान पर धकेल दिया था और बीजेपी को भी जीत के लिए खासी मशक्कत करनी पडी थी. गाजीपुर लोकसभा की सभी विधानसभा सीटों में भी बीएसपी का वोट प्रतिशत एक सम्मानजनक स्थिति में था .
बीएसपी को पूर्वांचल में अंसारी परिवार की वजह से एक संगठित जनाधार के अलावा जातीय आधार पर भी फायदा होता दिख रहा है और शायद इसी वजह से पार्टी में अब्बास की बढ़ती लोकप्रियता ने बीएसपी को पूर्वांचल की राजनीति में एक मजबूत अगली पीढ़ी होने का स्पष्टीकरण दिया है. जिसके बाद उनकी जिम्मेदारियों में और इजाफा किए जाने की बात अब आम हो चली है. इसके अलावा पूर्व सांसद अफजाल अंसारी द्वारा समय-समय पर छोटे समूहों में समीक्षा करवाए जाने के बाद बीएसपी को मऊ, गाजीपुर, बलिया समेत अन्य कुछ इलाकों में खोई जमीन वापस पाने के आसार दिख रहे हैं.
ऐसे में अंसारी परिवार सत्ता और शासन की आंख की किरकिरी बना हुआ है. बीते विधानसभा सत्र के दौरान मीडिया से कई बार मुखातिब होकर मुख्तार अंसारी ने सरकार पर राजनीति से प्रेरित होकर प्रताड़ित किए जाने के आरोप लगाए थे.
विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान मुख्तार अंसारी ने प्रदेश शासन और धुर विरोधी बृजेश सिंह पर संगीन आरोप लगते हुए कहा था कि जेल में उनकी हत्या की साजिश रची जा रही है जिसके तहत उन्हें बांदा भेजा गया है. जबकि उनके विरोधी और बीजेपी के एमएलसी बृजेश सिंह को शिफ्ट नहीं किया गया और वे वाराणसी जेल से अपना साम्राज्य चला रहे हैं. मुख्तार ने मुख्यमंत्री को प्रार्थनापत्र देते हुए यह भी कहा था कि यदि जेल में उनकी हत्या होती है तो इसके जिम्मेदार बृजेश सिंह के अलावा केन्द्रीय मंत्री मनोज सिन्हा होंगे. बीते साल सितम्बर के महीने में मुख्तार को फास्ट ट्रैक कोर्ट द्वारा दोहरे हत्याकांड में बरी किया गया है. ऐसे अन्य कई मुकदमों में मुख्तार एक-एक कर बरी हो चुके हैं और अब उनकी चिंता का सबब सिर्फ कृष्णानंद राय हत्याकांड रह गया है.
बीएसपी और बीजेपी की रार का कारण बना पूर्वांचल
2017 के विधानसभा चुनावों के मत प्रतिशत के अनुसार बीएसपी पूर्वांचल की अधिकांश सीटों पर सपा से आगे थी और बीजेपी को कई सीटों पर बहुत ही कम अंतर से जीत मिली थी, जहां बीएसपी का प्रत्याशी दूसरे नंबर पर था. ऐसे में नगर निकाय चुनावों में पहली बार सिम्बल पर चुनाव लड़ने के बाद बीएसपी को जो मत मिले उन मतों से न सिर्फ बीएसपी के आत्मविश्वास में वृद्धि हुई बल्कि कई लोकसभा सीटों को लेकर नए समीकरण बनने और बिगड़ने लगे. ऐसे में बलिया, आजमगढ़, गाजीपुर, मऊ और चंदौली जनपदों के अंतर्गत आने वाली लोकसभा सीटों में अंसारी परिवार के बहाने बीएसपी ने एक खिचड़ी समर्थन हासिल किया है जहां मूल वोट बैंक से इतर कुछ अन्य जातियों और उपजातियों के मतों का रुझान भरी मात्रा में बीएसपी की तरफ बढ़ा है. पूर्वांचल में कांग्रेस की अंतरकलह और अन्य कमजोरियों ने भी बीएसपी को आंशिक लाभ दिया है. जिस कारण पूर्वांचल में बीजेपी और संघ को रणनीति में परिवर्तन के लिए मजबूर होना पड़ा है.
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कड़कड़ाती ठंड में वाराणसी का दो दिवसीय दौरा जनवरी महीने के पहले हफ्ते में ही किया और और पूर्वांचल के अफसरों को आवश्यक दिशा निर्देश दिए. इसके अलावा आने वाले दो महीने में पूर्वांचल में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह समेत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पूर्वांचल दौरा प्रस्तावित है. अमित शाह इस दौरे में 2019 में पहली बार वोट डालने वाले युवा वोटरों से सीधा संवाद करेंगे और इसके साथ ही पूर्वांचल के सांसदों की भी खैर खबर लेंगे.
इसके अलावा पीएमओ समेत बीजेपी के काशी प्रान्त कार्यालय से भी इस बात के स्पष्ट संकेत हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपनी संसदीय सीट वाराणसी में दौरा करने के अलावा आसपास के इलाकों में कहीं भी केंद्र सरकार की योजनाओं के आकलन के लिए जा सकते हैं. पीएमओ के अफसरों की पूर्वांचल में आवाजाही बढ़ने के बाद सम्बंधित राज्य स्तरीय अधिकारियों में भी हड़कंप है और माना जा रहा है केंद्र सरकार की योजनाओं का आकलन होने के बाद काम न होने की स्थिति में सबंधित अफसरों पर गाज गिरने वाली है.
ऐसे में पार्टी में भी सरगर्मियां तेज हैं और माना जा रहा है कि पूर्वांचल की कुछ संसदीय सीटों की समीक्षा के बाद शायद कुछ बड़े नामों को भी फटकार लगनी तय है. इसके अलावा कुछ सीटों पर प्रत्याशी बदले जाने की चर्चा के बाद बीजेपी में दावेदारों के एक नई फौज भी अगले दो महीनों में अपने अपने खेमों के माध्यम से गोलबंदी के प्रयास में है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल उन सीटों का है जहां अंसारी परिवार की तरफ से कड़ी चुनौती मिलने के आसार हैं. उन सभी सीटों के लिए बीजेपी कोई भी रिस्क लेने की स्थिति में नही है और नए आवेदकों को भी स्पष्ट संकेत दिए गए हैं कि उन्हें अंसारी फैक्टर के बीच जीत का फार्मूला भी खुद ही बनाकर शीर्ष नेतृत्व के सामने रखना है. ऐसे में बड़े-बड़े धुरंधरों ने लखनऊ और दिल्ली के अपने आकाओं से संपर्क साध कर अपने अपने स्तर से जुगत लगानी शुरू कर दी है.
मुख्तार अंसारी के अस्वस्थ होने की खबर ने उनके विरोधी खेमों में हो रही सुगबुगाहट को खासा बढ़ा दिया है. ऐसे में उत्तर प्रदेश की राजनीति का केंद्र फिर से पूर्वांचल बन बैठा है. देखना होगा कि इस बार राजनीति का ऊंट किस करवट बैठता है. लेकिन एक बात साफ हो चली है कि 2019 चुनावों का बिगुल 2018 में पूर्वांचल से बज उठा है.
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