एक नवंबर को मध्यप्रदेश का स्थापना दिवस मनाया गया. तब शिवराज ने भाषण के दौरान पीएम मोदी के अंदाज में जनता से हाथ उठवाकर भोपाल एनकाउंटर की तस्दीक करवाई. अब 29 नवंबर को उनके राज्य के सीएम के तौर पर 11 साल पूरा करने से पहले जनता ने बैलेट के जरिए उनकी राजनीति पर मुहर लगा दी.
शहडोल लोकसभा और नेपानगर विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी को मिली जीत ने शिवराज को दोहरे जश्न का मौका दे दिया है. 29 नवंबर को मुख्यमंत्री के तौर पर 11 साल पूरा करने वाले शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री होंगे.
शिवराज दिवाली की अगली सुबह से ही जश्न के माहौल में हैं. भोपाल जेल से भागे सिमी के विचाराधीन कैदियों को मार गिराने का जश्न. इस सरकारी जश्न की शुरुआत 1 नवंबर को मध्यप्रदेश के स्थापना दिवस समारोह से शुरु हुई.
पॉलिटिकल डायवर्जन
स्थापना दिवस समारोह में 30 अक्टूबर को भोपाल में 8 सिमी कार्यकर्ताओं के एनकाउंटर पर जनता से मुहर लगवाई. मंच से शिवराज ने पीएम मोदी के अंदाज में पूछा ‘इन आतंकियों को मार कर मैंने सही किया या नहीं. इस फैसले में आप मेरे साथ हैं तो हाथ उठाइये.’ जनता ने हाथ उठाकर शिवराज सरकार के इस कदम की तस्दीक की.
आम सभा में इकट्ठी भीड़ को एंगेज करने का यह मोदी स्टाइल है. आप मोदी को अक्सर अपनी सभा में आई भीड़ से ताली बजवाकर या हाथ उठवाकर समर्थन लेते देखते हैं.
लेकिन शिवराज हमेशा से ऐसे नहीं थे. न ही वो मोदी को कॉपी करते थे न ही आतंकवादियों को मार गिराने पर ऐसी हुंकार भरते.
इसी तरह मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने कभी भी इफ्तार पार्टी का आयोजन नहीं किया जबकि शिवराज सिंह चौहान को इफ्तार से कभी परहेज नहीं रहा.
हालांकि रोजा इफ्तार में 2014 के बाद शिवराज का नया अवतार देखने को मिला है. पहले मुल्ला-टोपी पहनने वाले शिवराज अब टोपी नही पहनते. हां, कोई टोपी पहनाने की पहल करे भी तो बचाव के लिए शिवराज ने पगड़ी पहनना शुरु कर दिया.
पीएम बनने की हसरत
आपको याद होगा कि 2014 लोकसभा चुनाव से पहले मध्यप्रदेश चुनाव प्रचार अभियान से बीजेपी के पीएम उम्मीदवार मोदी का चेहरा गायब था. इसे लेकर मीडिया में बवाल खड़ा हो गया था. इसकी सफाई में कहा गया कि मध्यप्रदेश का चुनाव शिवराज सिंह चौहान के कामकाज पर लड़ा जा रहा है लिहाजा यहां नरेंद्र मोदी की जरुरत नहीं है.
इस चुनाव में मिली प्रचण्ड जीत के बाद शिवराज सिंह ने भी प्रधानमंत्री बनने की हसरतें पाल ली थी. बीजेपी का आडवाणी कैंप मोदी को पीएम प्रोजेक्ट किए जाने का विरोध कर रहा था. मोदी के विकल्प के तौर पर पार्टी के इस गुट ने शिवराज का नाम आगे बढ़ा दिया.
लेकिन मोदी ने पीएम बनने के बाद उन सभी पार्टी नेताओं को किनारे लगा दिया जिन्होंने किसी न किसी तरह उनकी मुखालफत की थी. शिवराज सिहं चौहान भी मोदी के प्रतिशोध का शिकार हुए. मध्यप्रदेश को दिए जाने वाले केंद्रीय मदद में भारी कटौती की गई.
मध्यप्रदेश को दिया जाने वाला केंद्रीय अनुदान अभी तक जारी नहीं किया गया है. अलग-अलग मद में राज्य को केंद्र से 1700 करोड़ रुपए मिलने हैं. जिसके लिए शिवराज सिंह चौहान सोमवार 21 नवंबर को वित्त मंत्री अरुण जेटली से गुहार लगा चुके हैं.
कमजोर नब्ज बना व्यापम
इसका नतीजा यह हुआ कि केंद्र की जिन योजनाओं पर अपनी तस्वीर चिपका कर शिवराज एमपी के मसीहा बने थे उनके बंद होने की नौबत गई. फंडिंग की कमी से जूझ रही एमपी सरकार के मुखिया इसी बीच व्यापम के भंवर में घिर गए.
जैसा कि हम सब जानते हैं. कांग्रेस के जमाने में सरकार का तोता मानी जाने वाली सीबीआई अब गिद्ध की नजर रखती है. इस नजर के निशाने से किसी का बचना नामुमकिन है. फिर चाहे वह भाजपाई हो या गैर-भाजपाई नेता.
कभी मोदी को चुनौती देने वाले शिवराज अब उनके सामने याचक की मुद्रा मे आ गए. इस बीच एमपी में शिवराज के धुर विरोधी और सीएम बनने के महत्वाकांक्षा रखने वाले कैलाश विजयवर्गीय को अमित शाह ने पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बना दिया. संगठन में हुए इस बदलाव के बाद शिवराज पार्टी में कमजोर माने जाने लगे.
संघ भी नाराज
इस बीच संघ के साथ भी शिवराज के रिश्तों में खटास की खबरें आने लगीं. पिछले साल नवंबर में झाबुआ लोकसभा उपचुनाव में हार के बाद से ही संघ और शिवराज आमने-सामने खड़े हो गए थे.
झाबुआ के पेटलावद में हुए धमाके का मुख्य आरोपी राजेंद्र कसावा संघ कार्यकर्ता था. खनन के कारोबार से जुड़े कसावा के तीन मंजिला इमारत में हुए विस्फोट में 89 लोगों की मौत हो गई थी और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए.
शिवराज कैंप ने इस हार के लिए संघ को दोषी ठहराया. बाद में संघ कार्यकर्ता और व्यापारी कसावा को गिरफ्तार कर लिया गया. लेकिन संघ और शिवराज सरकार के बीच खाई बढ़ती गई.
अब तक एक कुशल प्रशासक की छवि वाले शिवराज के खिलाफ धीरे-धीरे माहौल बिगड़ने लगा. संघ की प्रयोगशाला माने जाने वाले मध्यप्रदेश में संघ की अनदेखी शिवराज पर भारी पड़ने लगी.
अगस्त में भोपाल हुई आरएसएस बीजेपी समन्वय बैठक में भी संघ ने शिवराज से अपनी नाराजगी दर्ज कराई थी. इस बैठक में संघ प्रदेश सरकार के कामकाज से अंसतुष्ट था. मंत्रियों ने अपनी नाकामी झुपाने के लिए पल्ला झाड़ते हुए बेलगाम नौकरशाही को दोषी ठहराया.
नौकरशाही की मनमानी
आरएसएस के अनुषांगिक संगठनों, कर्मचारी संघ और किसान संघ ने भी बेलगाम शिवराज के प्रशासन पर ऊंगली उठाई. चौतरफा घिरे शिवराज सिंह चौहान के लिए मुसीबत कम होने का नाम नहीं ले रही थी. संघ की शिकायत पर बालाघाट की एक घटना ने मुहर लगा दी.
यहां संघ प्रचारक सुरेश यादव की पुलिस थाने में बेरहमी से पिटाई कर दी गई. यादव पर वाट्सऐप के जरिए आपत्तिजनक संदेश फैलाने का आरोप था. इस घटना की गाज बालाघाट के एसपी और आईजी पर गिरी. इसके कुछ ही दिनों के भीतर संघ की नजरों में चढ़े दो और जिला पुलिस अधीक्षकों के तबादले कर दिए गए.
पहले रायसेन एसपी दीपक वर्मा को संघ के दबाव में हटाया गया इसके बाद झाबुआ एसपी संजय तिवारी को संघ के पांच कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करने की सजा मिली.
केंद्र के पैसे से मीडिया के जरिए अपनी छवि चमका कर ब्रैंड बने शिवराज अब पूरी तरह से संघ और केंद्र के रहमोकरम पर निर्भर हैं.
अब शिवराज अपनी राजनीति छोड़ संघ और केंद्रीय नेतृत्व को खुश करने में लग गए हैं. पहले वे मध्यप्रदेश को शांति का टापू बताते थे. अब खुले आम विचाराधीन कैदियों को आतंकवादी घोषित कर रहे हैं.
(खबर कैसी लगी बताएं जरूर. आप हमें फेसबुक, ट्विटर और जी प्लस पर फॉलो भी कर सकते हैं.)
हंदवाड़ा में भी आतंकियों के साथ एक एनकाउंटर चल रहा है. बताया जा रहा है कि यहां के यारू इलाके में जवानों ने दो आतंकियों को घेर रखा है
कांग्रेस में शामिल हो कर अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत करने जा रहीं फिल्म अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर का कहना है कि वह ग्लैमर के कारण नहीं बल्कि विचारधारा के कारण कांग्रेस में आई हैं
पीएम के संबोधन पर राहुल गांधी ने उनपर कुछ इसतरह तंज कसा.
मलाइका अरोड़ा दूसरी बार शादी करने जा रही हैं
संयुक्त निदेशक स्तर के एक अधिकारी को जरूरी दस्तावेजों के साथ बुधवार लंदन रवाना होने का काम सौंपा गया है.