सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस अब्दुल नजीर ने गुरुवार को कहा कि 1994 के इस्माइल फारूकी मामले में यह टिप्पणी विस्तृत जांच किए बिना की गई है कि ‘मस्जिद इस्लाम का अभिन्न भाग नहीं है और मुस्लिमों द्वारा नमाज खुले में सहित किसी भी स्थान पर पढी जा सकती है.’
पीठ के अन्य सदस्यों के बहुमत वाले फैसले में अयोध्या भूमि विवाद की सुनवाई के दौरान 1994 के शीर्ष अदालत के फैसले में की गईं टिप्पणियों पर फिर से विचार करने के मुद्दे को पांच जजों की संविधान पीठ के पास भेजने से इनकार कर दिया. इस पीठ में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस अशोक भूषण भी शामिल थे.
बहुमत के फैसले से अलग फैसला देने वाले जस्टिस नजीर ने कहा कि संवैधानिक महत्व पर विचार करते हुए इस मामले को बड़ी पीठ के पास भेजा जाना चाहिए.
उन्होंने कहा कि इस्माइल फारूकी मामले के निष्कर्ष में यह टिप्पणी कि ‘मस्जिद इस्लाम धर्म की परंपराओं का अभिन्न हिस्सा नहीं है और मुस्लिमों द्वारा नमाज कहीं भी, ‘जहां तक कि खुले में, पढी जा सकती है’ विस्तृत रूप से जांच किए बिना की गई है.
जस्टिस ने 42 पेज के अपने फैसले में कहा कि शीर्ष अदालत के पिछले आदेशों से यह स्पष्ट है कि इस प्रश्न कि कोई विशेष धार्मिक परंपरा किसी धर्म का अनिवार्य या अभिन्न हिस्सा है या नहीं, पर धर्म के सिद्धांतों, नियमों और विश्वास के आधार पर विचार किया जाना चाहिए.
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