संसद के मॉनसून सत्र को पूरा होने में अब कुछ ही दिन बाकी रह गए है. 18 जुलाई से संसद का मॉनसून सत्र शुरू हुआ था. विपक्ष ने सरकार को आश्वासन दिया था कि वो संसद को सुचारू रूप से चलाने के लिये हर संभव सहयोग करेंगे. लेकिन विपक्ष ने सत्र का स्वागत अविश्वास प्रस्ताव से किया. तकरीबन 11 घंटों की बहस के बाद विपक्ष का लाया अविश्वास प्रस्ताव गिर गया जिसने मोदी सरकार के प्रति विश्वास और आत्मविश्वास को गहरा दिया.
केंद्र सरकार की कोशिश है कि मॉनसून सत्र में कई महत्वपूर्ण बिलों को जल्द से जल्द पास करा लिया जाए. सरकार के सामने लोकसभा में 28 और राज्यसभा में 30 विधेयक पारित कराने की चुनौती थी लेकिन अविश्वास प्रस्ताव में भारी जीत के बाद सरकार धीरे-धीरे विधेयकों को पारित कराने में गति लाती दिख रही रही है. हालांकि सबसे महत्वपूर्ण विधेयक इस मॉनसून सत्र में भी अटके हुए ही दिखाई देते हैं.
महिला आरक्षण विधेयक और तीन तलाक बिल पर कोई बात बनती नहीं दिखाई दे रही है. तीन तलाक पर कांग्रेस के विरोध के चलते ये मामला अटका हुआ है. हालांकि खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पीएम मोदी को चिट्ठी लिखकर महिला आरक्षण बिल पर समर्थन देने का एलान किया था. तीन तलाक के खिलाफ लाया गया ‘मुस्लिम महिला विवाह संरक्षण विधेयक’ लोकसभा में पारित हो चुका है लेकिन यह बिल फिलहाल राज्यसभा में लंबित है. एक तरफ कांग्रेस सहयोग की बात कर रही है तो दूसरी तरफ सहयोग के बदले शर्त भी रख दी है कि तीन तलाक विरोधी विधेयक में महिलाओं के लिए गुजारा भत्ते का प्रावधान हो.
12 साल से कम उम्र की बच्चियों की सुरक्षा से जुड़ा हुआ बिल लोकसभा में पारित हो गया. 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से रेप के दोषियों को मौत की सजा का प्रावधान देने वाला आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक 2018 लोकसभा में सभी दलों की सहमति से पारित हो गया. अब इस विधेयक को राज्यसभा में पेश किया जाएगा.
लेकिन सरकार ने सबसे बड़ा राजनीतिक फैसला एससी-एसटी एक्ट को लेकर लिया. केंद्रीय कैबिनेट ने एससी/एसटी एक्ट में संशोधन को मंजूरी दे दी. जिसके बाद केंद्र सरकार संशोधित बिल के मसौदे को मौजूदा सत्र में ही पेश करेगी. संशोधन के बाद कानून के प्रावधान वापस से कड़े हो जाएंगे और रिपोर्ट दर्ज कराने से पहले प्राथमिक जांच कराने की जरूरत नहीं होगी.
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट के कुछ अहम प्रावधानों को निरस्त कर दिया था. कोर्ट का मानना था कि इनके जरिए दुरुपयोग होता दिखा है. 20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद 2 अप्रैल को दलित संगठनों ने ‘भारत बंद’ का आह्वान किया था. विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार को दलित विरोधी प्रचारित किया था. कई राज्यों में दलित संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किए और उनके निशाने पर केंद्र सरकार थी. खुद एनडीए के भीतर ही इसे लेकर विवाद बढ़ रहा था. लोकजनशक्ति पार्टी के नेता राम विलास पासवान ने इस मामले में पीएम मोदी को पत्र भी लिखा था. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश को बदलने के लिए मोदी सरकार ने बिल में संशोधन को मंजूरी दी और मौजूदा सत्र में संशोधित बिल को संसद में पेश किया जाएगा. खास बात ये है कि इस मंजूरी के साथ ही केंद्र सरकार ने 9 अगस्त को होने वाले दलित आंदोलन की धार भी कुंद कर दी है.
जहां एक तरफ मॉनसून सत्र में सरकार की प्राथमिकता और कोशिश कई महत्वपूर्ण बिलों को पास कराने की रही तो वहीं विपक्षी विरोध के चलते संसद के दोनों सदनों में कार्यवाही बाधित होती रही. तीन तलाक बिल और महिला आरक्षण विधेयक जैसे बिल अटके ही पड़े रहे लेकिन सरकार राष्ट्रीय अन्य पिछड़ा आयोग को संवैधानिक दर्जा दिलाने में कामयाब रही. लोकसभा में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने संबंधी संविधान संशोधन विधेयक पास हो गया. इससे एनबीसीसी को पिछड़े वर्गों की शिकायतों का निवारण करने का अधिकार मिल जाएगा.
भ्रष्टाचार पर लगाम कसने के लिए रिश्वत देने के दोषियों को अधिकतम सात साल की सजा के प्रावधान वाले भ्रष्टाचार निवारण (संशोधन) विधेयक 2018 को भी संसद के मानसून सत्र में मंजूरी मिल गई. लोकसभा ने भ्रष्टाचार निवारण (संशोधन) विधेयक को ध्वनिमत से पारित किया जबकि राज्यसभा में यह पहले ही पारित हो चुका था.
इसी सत्र में लोकसभा में इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी विधेयक भी संसद में पेश किया गया. साथ ही राज्यसभा में DNA प्रोफाइलिंग से जुड़ा बिल पेश किया गया जिससे गुमशुदा व्यक्तियों की तलाश और अपराध के मामलों को सुलझाने में मदद मिलेगी. इसके अलावा राज्यसभा में शिक्षा के अधिकार से जुड़ा संशोधन विधेयक और राष्ट्रीय अध्यापक परिषद बिल भी रखा गया. साथ ही मानव तस्करी रोकथाम और पुनर्वास से जुड़ा बिल, आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक 2018 और राष्ट्रीय खेलकूद विश्वविद्यालय विधेयक पेश किया गया.
पिछले तमाम सत्रों की ही तरह संसद का मॉनसून सत्र भी हंगामेदार ही रहा. अविश्वास प्रस्ताव से आगाज के बाद असम के NRC ड्राफ्ट के मुद्दे पर देश की सियासत में घमासान छिड़ गया है. संसद में NRC ड्राफ्ट के मुद्दे पर हंगामा और वॉक-आउट जारी है. विपक्ष की तमाम चुनौतियों के बीच सरकार को उन विधेयकों की चिंता सता रही है जिन्हें मानसून सत्र में पेश करने या फिर पारित करने का लक्ष्य बनाया गया है.
होम्योपैथिक सेंट्रल काउंसिल (संशोधन) विधेयक 2018, सेंट्रल गुड्स एंड सर्विस टैक्स (संशोधन) विधेयक 2018, जीएसटी (राज्यों को मुआवजा) संशोधन विधेयक 2018, प्रोटेक्शन ऑफ ह्यूमन राइट्स (संशोधन) विधेयक 2018, बांध सुरक्षा विधेयक 2018 और राइट टू इन्फॉरमेशन (संशोधन) विधेयक 2018 पेश किया जाना बाकी है. इन तमाम बिलों के अलावा राज्यसभा का उपाध्यक्ष भी इसी सत्र में चुना जाना है. उच्च सदन के सभापति के तौर पर पीजे कुरियन का कार्यकाल इसी महीने पूरा हो रहा है.
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