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संयुक्त निदेशक स्तर के एक अधिकारी को जरूरी दस्तावेजों के साथ बुधवार लंदन रवाना होने का काम सौंपा गया है.
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने देश में आबादी का संतुलन कायम रखने के लिए एक नीति बनाने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि इसके दायरे में समाज के सभी वर्ग होने चाहिए. उन्होंने कहा कि शुरुआत उन लोगों से की जानी चाहिए जिनके अधिक बच्चे हैं और उनके पालन-पोषण के लिए सीमित साधन हैं.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तीन दिवसीय सम्मेलन के आखिरी दिन बुधवार को उन्होंने विभिन्न विवादास्पद विषयों पर लिखित प्रश्नों के उत्तर दिए. इनमें अंतरजातीय विवाह, शिक्षा नीति, महिलाओं के खिलाफ अपराध, गौरक्षा जैसे मुद्दे भी शामिल थे.
भागवत ने विभिन्न समुदायों के लिए आरक्षण की वर्तमान व्यवस्था का पुरजोर समर्थन किया. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि इस मुद्दे पर राजनीति नहीं होनी चाहिए. उन्होंने दावा किया कि विश्व भर में हिन्दुत्व की स्वीकार्यता बढ़ रही है जो उनके संगठन की आधारभूत विचारधारा है. उन्होंने कहा कि इसके विरूद्ध भारत में उन विभिन्न गलत चलनों के कारण क्रोध है जो पिछले कई सालों में इसमें आ गए हैं. उन्होंने यह भी कहा कि संघ उन्हें समाप्त करने के लिए काम कर रहा है.
भारत के विभिन्न भागों में बदल रहे आबादी के संतुलन और घटती हिन्दू आबादी के बारे में एक प्रश्न पर आरएसएस प्रमुख ने कहा कि विश्व भर में आबादी संतुलन को महत्वपूर्ण माना जाता है और इसे यहां भी कायम रखा जाना चाहिए.
जनसंख्या पर तैयार हो एक नीति, किसी को भी नहीं बख्शा जाना चाहिए
उन्होंने कहा, 'इसे ध्यान में रखते हुए जनसंख्या पर एक नीति तैयार की जानी चाहिए.' अगले 50 सालों में देश की संभावित आबादी और इस संख्या बल के अनुरूप संसाधनों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए.
उन्होंने कहा कि एक बार जब नीति पर निर्णय हो जाए तो यह सभी पर लागू होना चाहिए और किसी को बख्शा नहीं जाना चाहिए. उनकी इस बात का सभागार में आए लोगों ने ताली बजाकर समर्थन किया.
उन्होंने कहा कि इस प्रकार की नीति को वहां पहले लागू करना चाहिए जहां आबादी की समस्या है. उन्होंने कहा, 'जहां अधिक बच्चे हैं लेकिन उनका पालन करने के साधन सीमित हैं...यदि उनका पालन पोषण अच्छा नहीं हुआ तो वे अच्छे नागरिक नहीं बन पाएंगे.'
भागवत ने कहा कि इस प्रकार की नीति को वहां बाद में लागू किया जा सकता है जहां इस प्रकार की समस्या नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि महज कानून ही किसी मुद्दे का समाधान नहीं है.
गोरक्षा के नाम पर कानून के खिलाफ जाना गलत
कई बीजेपी नेता और हिंदू संगठन इस मुद्दे को उठाते रहे हैं. उनका कहना है कि मुस्लिम आबादी की तुलना में हिंदुओं की जनसंख्या घट रही है. धर्मान्तरण के विरूद्ध भागवत ने कहा कि यह सदैव दुर्भावनाओं के साथ करवाया जाता है और इससे आबादी का असंतुलन भी होता है.
उन्होंने गायों की रक्षा का समर्थन करने के बावजूद यह नसीहत भी दी कि गौरक्षा के नाम पर कानून के विरूद्ध नहीं जाया जा सकता. आरएसएस प्रमुख ने कहा कि कानून को अपने हाथ में ले लेना एक अपराध है और ऐसे मामलों में कठोर दंड होना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा, 'हमें दोमुंही बातों को भी नकारना चाहिए क्योंकि गौ तस्करों द्वारा की जाने वाली हिंसा पर कोई नहीं बोलता.' उनसे देश में भीड़ द्वारा पीट पीटकर हत्या करने और गौरक्षा के नाम पर हिंसा की बढ़ती घटनाओं के बारे में पूछा गया था.
संघ के इस तीन दिवसीय सम्मेलन में सत्तारूढ़ बीजेपी के विभिन्न नेताओं, बॉलीवुड अभिनेताओं, कलाकारों और शिक्षाविदों की उपस्थिति देखी गई. बहरहाल, 'भविष्य का भारत..आरएसएस का दृष्टिकोण' शीर्षक वाले इस सम्मेलन में लगभग सभी प्रमुख विपक्षी दलों की उपस्थिति नगण्य रही हालांकि संघ ने कहा कि उसने इन दलों को आमंत्रित किया था.
अंतरजातीय विवाह के बारे में पूछे जाने पर भागवत ने कहा कि संघ इस तरह के विवाह का समर्थन करता है और अगर अंतरजातीय विवाहों के बारे में गणना कराई जाए तो सबसे अधिक संख्या में संघ से जुड़े लोगों को पाया जाएगा.
समलिंगी समुदाय को समाज से अलग न करें, भेदभाव करना गलत
महिलाओं के विरूद्ध अपराध के बारे में अपनी उद्धिग्नता को व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसा माहौल तैयार किया जाना चाहिए जहां वे सुरक्षित महसूस कर सकें. एक अन्य प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि लोगों को किसी भी तरह के भेदभाव से बचाने की जिम्मेदारी शासन एवं प्रशासन की है.
उन्होंने यह भी कहा कि एलजीबीटीक्यू को अलग थलग नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि वे भी समाज का अंग हैं. भागवत ने कहा कि संघ अंग्रेजी सहित किसी भी भाषा का विरोधी नहीं है लेकिन उसे उसका उचित स्थान मिलना चाहिए. उनका संकेत था कि अंग्रेजी किसी भारतीय भाषा का स्थान नहीं ले सकती.
संघ प्रमुख ने कहा, 'आपको अंग्रेजी सहित किसी भी भाषा का विरोध नहीं करना चाहिए और इसे हटाया नहीं जाना चाहिए. हमारी अंग्रेजी से कोई शत्रुता नहीं है. हमें योग्य अंग्रेजी वक्ताओं की आवश्यकता है.'
अन्य मुद्दों पर पूछे गए सवालों के उत्तर में उन्होंने जम्मू कश्मीर का भी उल्लेख किया. उन्होंने कहा कि आरएसएस संविधान के अनुच्छेद 370 और 35 ए स्वीकार नहीं करता.
संविधान का अनुच्छेद 370 राज्य की स्वायत्तता के बारे में है जबकि अनुच्छेद 35 ए राज्य विधानसभा को यह अनुमति देता है कि वह राज्य के स्थायी निवासियों को परिभाषित करे.