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फौजी छावनियों में बंद रास्ते- ‘वीवीआईपी’ के ‘ठेंगे पर कानून’

वीवीआईपी लोगों की सुरक्षा के नाम पर टूट रहे नियमों का जब कोई हिसाब नहीं है, तो फिर सैनिकों के परिवार जनों की सुरक्षा पर समझौता क्यों ?

Updated On: Jun 06, 2018 05:07 PM IST

Virag Gupta Virag Gupta

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फौजी छावनियों में बंद रास्ते- ‘वीवीआईपी’ के ‘ठेंगे पर कानून’

सैनिकों के आवासीय इलाके कैंट यानी छावनी की सड़कों पर नागरिकों की आवाजाही पर प्रतिबंध हटाने की बहस में यह फिर जाहिर हुआ कि देश में जिसकी लाठी उसकी भैंस है. अंग्रेजों के जमाने में फौज में गोरों का वर्चस्व था और उस दौर में कैंट इलाकों के आस-पास ‘इंडियन्स’ फटक भी नहीं सकते थे. आजादी के बाद सुरक्षा के लिहाज से सैनिक क्षेत्रों में नागरिकों की आवाजाही पर प्रतिबंध बरकरार रहे परन्तु अब छावनियों में कैद सड़कों के बहाने कानून के राज पर बहस होने लगी है.

कैंट इलाकों में सड़कों को खोलने पर महिलाओं की अनैतिक मोर्चाबंदी

रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने जनप्रतिनिधियों और सेना प्रमुख से बातचीत के बाद मंत्रालय ने कैंट की सड़कों को नागरिक इस्तेमाल के लिए 20 मई को खोलने का आदेश जारी कर दिया. आदेश के अनुसार 62 शहरों की छावनियों में 52 सड़कें पूरी तरीके से और 47 सड़कें आंशिक तरीके से अब नागरिकों के इस्तेमाल के लिए खोल दी जायेंगी.

nirmala sitaramn

सैन्य अधिकारी अनुशासन के दायरे में बंधे हैं और यूनियनबाजी नहीं कर सकते, इसलिए इस मामले पर महिलाओं के माध्यम से अनैतिक तरीके से संगठित विरोध दर्ज कराया गया. इसके बाद सरकार ने फैसला किया कि स्थानीय सैन्य अधिकारियों की रिपोर्ट पर सड़कों को खोलने के निर्णय पर एक महीने बाद पुनर्विचार किया जा सकता है.

चुनावी राजनीति से खुल रही हैं छावनियों की बंद सड़कें

कैंट इलाके और आस-पास रहने वाले नागरिकों की सहूलियत के लिए स्थानीय सांसद, विधायक और कैंटोनमेंट बोर्ड के सदस्य कई सालों से फौजी सड़कों को खोलने की मांग कर रहे थे. इस बारे में पिछले कई सालों में संसद में भी अनेक बार सवाल जवाब हुए. अंग्रेजों के राज में कैंट क्षेत्र के लिए 1924 का कानून था जिसमें आजादी के बाद 2006 में संसद ने बदलाव करके नागरिक बस्तियों को और अधिकारों की मान्यता प्रदान की गयी. नये कानून की धारा 358 के तहत कैंट क्षेत्र की सड़कों को आंशिक या पूरी तरह से बन्द करने की प्रक्रिया है जिनका पालन नहीं किये जाने पर फौजी व्यवस्था विवादों के घेरे में आ गई.

फौजी इलाके में नागरिक आवाजाही के खतरे

बढ़ती आबादी और कस्बों के विस्तार से फौजी इलाके अब शहरों के करीब आ गये. कैंट क्षेत्रों के भीतर अब बड़े पैमाने पर नागरिक आबादी रहती है, जिसे 2006 के कानून से अनेक अधिकार भी मिल गये. यातायात के दबाव को कम करने के लिए कैंट क्षेत्रों की सड़कों को खोलने की मांग के जोर पकड़ने पर यह पता चला कि नियमों का पालन किये बगैर फौज ने सड़कों को बंद कर दिया था. सीमा पर तैनात फौजियों के परिवारजन कैंट क्षेत्रों में रहते हैं, जिनकी सुरक्षा के लिए नागरिकों की आवाजाही पर प्रतिबंध लगाया गया.

सैन्य अधिकारियों की पत्नियों ने 2002 के कालूचक और 2018 में सुजवान आर्मी बेस में हुए आतंकी हमलों जैसे मामलों का जिक्र करते हुए छावनी क्षेत्र की सड़कों को बंद जारी रखने की मांग का समर्थन किया. जवाब में सरकार ने कहा है कि कैंट इलाके में सेना का क्षेत्र अलग से सुरक्षा व्यवस्था को चौकस किया जा सकता है. सेना की चिंता को ‘दिल्ली मेट्रो’ ने बेहतर तरीके से समझा और नये मेट्रो स्टेशन शंकर विहार से आईडी और यात्रा के प्रयोजन की जांच के बाद ही यात्रियों को सैन्य क्षेत्र में जाने की अनुमति दी जा रही है.

सेना की जमीन पर गैर-कानूनी अतिक्रमण पर कठोर कारवाई क्यों नहीं

मार्च 2018 में संसद में दी गई जानकारी के अनुसार देशभर में सेना की 9980 एकड़ जमीन पर अवैध कब्जे हैं. केन्द्र सरकार द्वारा पीओके के कश्मीर पर दावा किया जाता है पर उन्हीं के गठबंधन वाली मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के अनुसार सेना ने जम्मू-कश्मीर की 21,400 हेक्टेयर जमीन पर गैर-कानूनी कब्जा किया है.

Nitin Gadkari

महाराष्ट्र के सांसद और केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने नौसेना अधिकारियों को मुम्बई में जमीन देने से मना करते हुए उन्हें सीमावर्ती इलाकों में रहने की अजब सलाह दी. जम्मू-कश्मीर विधानसभा के अध्यक्ष निर्मल सिंह और उपमुख्यमंत्री कविन्द्र गुप्ता द्वारा नागरौटा आर्मी बेस के नजदीक गैर-कानूनी निर्माण कार्य से यह जाहिर है कि बीजेपी नेताओं के लिए भी राष्ट्रवाद एक राजनीतिक एजेंडा ही है.

सैन्य छावनियों के नियम शहरी वीवीआईपी पर भी लागू हों

दिल्ली जैसे महानगरों में नेताओं और अफसरों की बड़ी कॉलोनियों में सड़कों को बाहरी लोगों के लिए बन्द करने पर भी कानून के तहत कारवाई क्यों नहीं होती? मद्रास हाईकोर्ट में सड़कों पर अराजक तरीके से बैरिकेटिंग लगाने को गैर-कानूनी बताया, फिर भी सुरक्षा के नाम पर पुलिस की यह व्यवस्था बदस्तूर जारी है. दिल्ली हाईकोर्ट में दाखिल रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में सिर्फ 589 स्पीड ब्रेकर को ही अनुमति मिली है, उसके बावजूद हजारों गैरकानूनी स्पीड ब्रेकर नहीं तोड़े जा रहे हैं. वीवीआईपी लोगों की सुरक्षा के नाम पर टूट रहे नियमों का जब कोई हिसाब नहीं है, तो फिर सैनिकों के परिवार जनों की सुरक्षा पर समझौता क्यों ?

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