चाहे असली हो या नकली, कहानियों में खलनायक का न होना दुर्लभ होता है. कृष्ण, अर्जुन, भीष्म और युधिष्ठिर जैसे नायकों के साथ दुर्योधन, कर्ण, शकुनि और दुशासन जैसे बुरे लोग भी दुनिया में मौजूद थे. हर हरक्यूलिस को हेडिस जैसे खलनायक से जूझना पड़ा है.
फिक्शन लेखक बुरे शख्स का चरित्र लिखने में काफी सावधानी बरतते हैं. इसकी वजह यह है कि विलेन से ही अक्सर कहानी का पूरा प्लॉट आगे बढ़ता है. अक्सर हीरो महज विलेन के कामों पर प्रतिक्रिया ही करता है.
ऐसे में मौजूदा राजनीतिक माहौल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विलेन कौन है? फिलहाल ऐसा कोई नहीं है जो कि उन्हें परेशान कर दे. ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्होंने इन सभी को तकरीबन 11 मार्च को हरा दिया है.
इस दिन यूपी समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे आए. यूपी चुनाव में बीजेपी ने बाकियों को इतनी बुरी तरह से पछाड़ा है कि इन्हें उबरने में लंबा वक्त लगेगा.
जिस तर्ज पर मोदी की कहानी एक नतीजे पर पहुंची है उसे फिक्शन एडिटर्स एचईए (हैप्पिली एवर आफ्टर) एंडिंग कहते हैं. अब जो आ रहा है वह सीक्वल है. लेकिन, सीक्वल अपने आप में एक स्टोरी होती है और ऐसे में मोदी सागा पार्ट-2 का विलेन कौन होगा?
लोगों को उम्मीद है यूपी के नए सीएम करेंगे कुछ नया
मोदी के विरोधी उम्मीद कर रहे होंगे कि यूपी के चीफ मिनिस्टर योगी आदित्यनाथ सत्ताधारी परिवार के भीतर के विलेन हैं. ये लोग सोच रहे होंगे कि योगी ही मोदी की आंधी पर लगाम लगाने वाले साबित होंगे.
कुछ लोगों को लगता है कि हालांकि मोदी विकास, काला धन और नौकरियों की बात करना जारी रखेंगे, लेकिन वह योगी जैसे लोगों को हिंदुत्व और अयोध्या में राम मंदिर बनाने की राजनीति करने की आजादी देते रहेंगे.
योगी आदित्यनाथ को कट्टर और उग्र हिंदू नेता के तौर पर जाना जाता है. एंटी-मोदी बुद्धिजीवियों को उम्मीद है कि यूपी के नए सीएम मुस्लिमों के खिलाफ सख्त रवैया अख्तियार करेंगे.
उन्हें लगता है कि योगी समुदायों के बीच विभाजन को और बढ़ाएंगे, देश को दो हिस्सों में बांट देंगे, बीजेपी का बढ़ता प्रभाव खत्म कर देंगे और आखिर में इस पर हिंसापूर्ण विराम लगा देंगे.
लेकिन, योगी ऐसी सोच रखने वालों को खुश होने का मौका शायद ही देंगे. और, अगर वह ऐसा करना भी चाहें तो मोदी उन्हें ऐसा करने नहीं देंगे.
सीएम बनने के बाद ती दिनों में योगी ने सही दिशा में कदम उठाए हैं और यह साफ कर दिया है कि उनकी प्राथमिकता की लिस्ट में यूपी का आर्थिक विकास, कानून और व्यवस्था की स्थिति में सुधार और राज्य में सांप्रदायिक सौहार्द कायम करना है.
अगर योगी की यूपी के मुख्यमंत्री पद पर नियुक्ति हिंदुओं के एक वर्ग में उम्मीदें पैदा करती है कि वह ऐसे कदम उठाएंगे जिनसे अयोध्या में राम मंदिर बनने का मार्ग प्रशस्त हो, तो उन्हें झटका लगा होगा, क्योंकि योगी आदित्यनाथ ने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है कि वह इस दिशा में हाल-फिलहाल कुछ करने जा रहे हैं.
योगी आदित्यनाथ के गुरु ने भी राम मंदिर के लिए किया है संघर्ष
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सलाह दी थी कि अयोध्या विवाद में जो भी पक्ष हैं उन्हें कोर्ट के बाहर इस मसले को बातचीत से सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए.
यह बीजेपी के लिए एक मुफीद बयान है जिसे लगता है कि उसे इस मसले पर कुछ और वक्त मिल जाएगा, साथ ही यह मसला जिंदा रहेगा और मंदिर के निर्माण के बगैर उसे इस मुद्दे के राजनीतिक फायदे मिलते रहेंगे.
योगी और गोरखनाथ मंदिर के उनके गुरु लंबे वक्त से राम मंदिर को लेकर मुखर रहे हैं. योगी गोरखनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी हैं. जून 2016 में उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा था, ‘क्या ऐसी कोई ताकत है जो मंदिर निर्माण को रोक सके? जब वे बाबरी मस्जिद का ध्वंस नहीं रोक सके तो वे मंदिर निर्माण को कैसे रोक पाएंगे?’
और इस महीने की शुरुआत में अपने कैंपेन के दौरान उन्होंने धमकाते हुए कहा था कि अगर मंदिर विवाद में सुप्रीम कोर्ट फैसला देने में देरी करता है तो वह मंदिर निर्माण के लिए अन्य विकल्पों पर विचार कर सकते हैं. उन्होंने कहा था कि ऐसा लोगों की बड़े स्तर पर भावनाओं को ध्यान में रखकर किया जाएगा.
चुनावी रैलियों में राम मंदिर मुद्दे का बखूबी इस्तेमाल किया गया. लेकिन मंदिर निर्माण में कानूनी अड़चनें हैं और इसके साथ शांति से जुड़े गंभीर खतरे भी मौजूद हैं.
न मोदी और न ही योगी से हाल-फिलहाल में मंदिर निर्माण को लेकर कोई कदम उठाए जाने की उम्मीद है.
एक तो मामला अदालात में है और अगर मंदिर बनाने के पक्षधर उम्मीद कर रहे थे कि केंद्र और राज्य दोनों जगहों पर बीजेपी की सरकार होने के कारण एक अध्यादेश के जरिए न्यायिक प्रक्रिया को दरकिनार कर यह काम किया जा सकता है, तो यह कहना ऐसा करने के मुकाबले आसान है.
एक ओर तो इस तरह के अध्यादेशों की कानूनी हैसियत पर सवाल उठाया जा सकता है, दूसरा- 'द एक्वीजिशन ऑफ सर्टेन एरिया एट अयोध्या एक्ट 1993' इस तरह के गैरजरूरी कारनामे के आड़े आ सकता है.
इस एक्ट के सेक्शन-9 में कहा गया है, 'एक्ट सभी अन्य चीजों पर प्रभावी रहेगा. इस एक्ट के प्रावधान किसी अन्य कानून में मौजूद असंगत प्रावधानों पर असर डालेगा. किसी डिक्री या किसी कोर्ट, ट्राइब्यूनल या अन्य प्राधिकरण के आदेश में इस एक्ट के प्रावधान प्रभावी होंगे.'
इसके अलावा, मोदी अयोध्या विवाद में कोई गैरजरूरी कदम उठाने से बचेंगे. वह लोगों के एक ऐसे बड़े वर्ग का समर्थन खोने से बचेंगे जिसने हिंदुत्व की बजाय उनके विकास के एजेंडे को वोट दिया है.
हिंदुत्व के एजेंडे के साथ विकास भी एक मुद्दा है
कांग्रेस और लेफ्ट के समर्थकों का यह सोचना गलत और सामान्यीकरण करना है कि वोटरों ने पूरे देश में केवल हिंदुत्व के नाम पर वोट दिया है. हाल के यूपी चुनावों में राम मंदिर पार्टी के घोषणापत्र का एक छोटा सा हिस्सा मात्र था.
कांग्रेस और लेफ्ट के दौर में हुए घोटालों, बेरोजगारी, सुस्त आर्थिक ग्रोथ और अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण की सेक्युलरिज्म की उलटी सोच और समाज को तोड़ने की कोशिश को देखते हुए जनता ने मोदी में उम्मीद देखी.
लोगों ने उनकी साधारण जीवन शैली, घोटालों से मुक्त छवि, नौकरियां पैदा करने के उनके वादे और देश को बेहतर बनाने के वादे पर भरोसा किया है. हिंदुत्व शायद उनका मुख्य विषय नहीं रहा है. विकास के साथ हिंदुत्व उनका एजेंडा है, न कि हिंदुत्व के साथ विकास.
फिलहाल मोदी के सामने किसी विलेन का खतरा मौजूद नहीं है. और वह अयोध्या में कुछ ऊटपटांग करने के जरिए योगी को भी विलेन बनने की इजाजत नहीं देंगे. मंदिर से देश में नौकरियां नहीं आने वालीं.
दूसरी ओर, क्या कांग्रेसी और लेफ्ट के इंटलेक्चुअल्स योगी के कुछ भी बोलने या कुछ करने से पहले ही रोने का नाटक शुरू करना बंद करेंगे और उन्हें राज्य के हित में काम करने देंगे?
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