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गुजरात-हिमाचल में नए सीएम की खोज मोदी-शाह के लिए चुनौती

बीजेपी गुजरात और हिमाचल प्रदेश में जीत तो गई है लेकिन मोदी और अमित शाह के लिए एक नई चुनौती है कि वो बारीकी से जनमत का विश्लेषण कर इन राज्यों में नेतृत्व के लिए काबिल शख्स का चुनाव करें

Updated On: Dec 21, 2017 11:54 AM IST

Sanjay Singh

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गुजरात-हिमाचल में नए सीएम की खोज मोदी-शाह के लिए चुनौती

जब तक गुजरात और हिमाचल प्रदेश में वोटों की गिनती चलती रही, बीजेपी के लिए बहुत सीधा-सपाट मामला लग रहा था- पार्टी दोनों राज्यों में जीत जाएगी और इसके मुख्यमंत्री पद के लिए घोषित प्रत्याशी विजय रूपाणी और प्रेम कुमार धूमल दो-तीन दिन बाद धूम धड़ाके के साथ गांधीनगर और शिमला में पद संभाल लेंगे.

बीजेपी गुजरात और हिमाचल प्रदेश में जीत भी गई लेकिन जनमत के स्वरूप, और अगुवाई करने वाले नेताओं के प्रति जनता के रवैये ने पार्टी नेतृत्व, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के लिए एक नई चुनौती पेश कर दी है कि वह बारीकी से जनमत का विश्लेषण करें और इन राज्यों में नेतृत्व के लिए काबिल शख्स का चुनाव करें.

बुधवार को जब नामांकित पार्टी पर्यवेक्षक गुजरात के लिए अरुण जेटली व सरोज पांडेय और हिमाचल प्रदेश के लिए निर्मला सीतारमण व नरेंद्र तोमर क्रमशः अहमदाबाद और शिमला पहुंचे तो पार्टी का स्थानीय से लेकर केंद्रीय कोई भी नेता निश्चित तौर पर नहीं कह सकता था कि दोनों राज्यों में कौन मुख्यमंत्री बनेगा. वो खुद भी संभावित नामों को लेकर अंदाजा लगाते रहे और अंत में इस नतीजे पर पहुंचे कि 'विधायकों से रायशुमारी की प्रक्रिया पूरी होने के बाद जिसे भी नेतृत्व के लिए चुना जाता है उसके बारे में सिर्फ दो सबसे वरिष्ठजनों (मोदी और शाह) को बता दिया जाएगा.'

सबसे पहले गुजरात का परिदृश्य देखें

निवर्तमान मुख्यमंत्री और बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी विजय रूपाणी खुद की सीट 55,000 के बहुत अच्छे मार्जिन से जीत गए हैं. बीजेपी ने राज्य भी जीत लिया है. ऐसे में स्वाभाविक रूप से पार्टी को वरिष्ठ नेताओं की उपलब्धता और अगर संबंधित नेता अगर खगोलीय दशाओं की लाभ-हानि पर यकीन रखते हों तो ‘ग्रह-दशा’ देख कर उनके शपथग्रहण की तारीख और समय का ऐलान कर देना चाहिए था. लेकिन पार्टी की निर्णय लेने की सर्वोच्च समिति बीजेपी संसदीय बोर्ड ने मोदी और शाह की अध्यक्षता में बैठक की मगर उनके नाम पर कोई फैसला नहीं लिया गया, कि उन्हें दूसरी बार पद और गोपनीयता की शपथ लेने का मौका मिलेगा या नहीं.

narendra modi

इससे गुजरात में मुख्यमंत्री पद की दौड़ शुरू हो गई है. रूपाणी गिनती में शामिल हैं, लेकिन इस घड़ी तो वह भी दावेदारों में से बस एक नाम भर हैं. उनके पक्ष में यही बात है कि जितने समय वह गद्दी पर रहे, सरकार आमतौर पर बिना झंझट के चलती रही. वह अविवादित रहे, जाति-निरपेक्ष रहे और पार्टी कार्यकर्ताओं व दूसरों के लिए सहज उपलब्ध रहे. वह ना सिर्फ अपनी सीट आराम से जीत गए बल्कि बीजेपी राजकोट शहरी क्षेत्र में सभी चार सीटें (तीन के आंकड़े को बढ़ाकर चार कर दिया) और जिले में आठ में से छह सीटें जीत गई.

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लेकिन बदले हुए हालात में जब गुजरात उस हाल में पहुंच गया है, जहां जातीय फैक्टर महत्वपूर्ण बन गया है, नए सामाजिक गठबंधन और अंतर्विरोध उभर आए हैं और यह नतीजों में भी परिलक्षित हुए हैं. हो सकता है कि मोदी और शाह की नजर में रूपाणी राज्य को चलाने के लिए सबसे बेहतर शख्स ना हों. बीजेपी चुनाव जीत गई है मगर इसके छह मंत्री और विधासभा के स्पीकर चुनाव हार गए हैं. मोदी और शाह को नतीजों का विश्लेषण करना होगा और अपने विकल्प परखने होंगे कि अगले पांच साल राज्य को चलाने के लिए सबसे अच्छा चुनाव क्या हो सकता है. पार्टी नेता मोदी की नई दिल्ली के बीजेपी मुख्यालय में धन्यवाद-ज्ञापन भाषण की याद दिला रहे हैं, जिसमें उन्होंने राज्य नेतृत्व के बारे में अपने इरादों की झलक दी थी.

Vijay Rupani

रूपाणी के विकल्प, या कह सकते हैं मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में दो नाम सामने आ रहे हैं- पुरुषोत्तम रूपाला और मनसुख एल मंदाविया. ये दोनों ही केंद्र सरकार में राज्यमंत्री हैं. दोनों राज्यसभा के सदस्य हैं और अगले साल जनवरी में इनका कार्यकाल खत्म होने वाला है. रूपाला कर्वा पटेल हैं और मंदाविया लेउवा पटेल. राज्य में पार्टी नेताओं का कहना है कि रूपाला में अच्छी संगठनात्मक और प्रशासनिक क्षमता है. मंदाविया भी नीचे भी नीचे से उठकर आए हैं. चुनाव के अंतिम दौर में पटेल या पाटीदार के महत्व पर विस्तार से चर्चा हुई थी.

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और कम से कम फिलहाल के लिए किन्हीं कारणों से निवर्तमान उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल की मुख्यमंत्री पद पर पदोन्नति के विचार को खारिज कर दिया गया है.

अब हिमाचल प्रदेश की तरफ रुख करते हैं

हिमाचल प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रह चुके प्रेम कुमार धूमल अब इतिहास से पन्नों में दफन हो जाएंगे, जिनका राजनीतिक करियर बड़े अटपटे तरीके से खत्म हो गया- उन्हें मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित कर पार्टी ने शानदार जीत हासिल कर ली है, लेकिन वह खुद चुनाव हार गए हैं. धूमल, उनके परिवार और करीबी भी निश्चय ही अब भाग्य और विधान पर पक्का यकीन करने लगे होंगे. वो शख्स जिसे अब तक मुख्यमंत्री बन जाना था, अब खात्मे के कगार पर है.

कुछ और वरिष्ठ नेता- सतपाल सत्ती, रविंदर रवि, गुलाब सिंह ठाकुर और महेश्वर सिंह- जो राज्य में दावेदारों की कतार में शुमार हो सकते थे, किस्मत की बात है कि वो भी चुनाव हार गए हैं.

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बदले हुए हालात में मंडी जिले के सेराज से पूर्व मुख्यमंत्री और पांच बार के विधायक जय राम ठाकुर इस पहाड़ी राज्य में मुख्यमंत्री पद के लिए दौड़ में सबसे आगे आ गए हैं. ठाकुर प्रभावशाली आरएसएस पृष्ठभूमि से आते हैं और उनका अतीत अविवादित रहा है. नतीजों के ऐलान के बाद नेतृत्व की तरफ से उन्हें दिल्ली बुलाया गया था, इस कदम से कइयों को लगा कि वह राज्य का नेतृत्व करने के लिए मोदी-शाह की पसंद हो सकते हैं.

nadda and jairam thakur

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा भी दमदार दावेदार हैं. राजनीतिक रूप से वह धूमल के कट्टर प्रतिद्व्ंद्वी रहे हैं. राज्य के पार्टी नेताओं का कहना है कि वो नड्डा ही थे जिन्होंने धूमल को उनकी पुरानी सीट हमीरपुर छोड़कर सुजानपुर से चुनाव लड़ने के लिए राजी करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. यह ऐसा कदम था जिसने 73 साल के धूमल के अन्यथा चमकदार करियर को धूल धूसरित कर दिया. सवाल यह भी है कि क्या मोदी-शाह नड्डा को केंद्र सरकार से छुट्टी देना पसंद करेंगे? नड्डा राज्यसभा सदस्य हैं और अगर उन्हें हिमाचल प्रदेश में सीएम बनाया जाता है, तो उनके विधानसभा का चुनाव लड़ने पर एक विधायक को अपनी सीट छोड़नी पड़ेगी.

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