दलित राजनीति को लेकर इस वक्त सभी सियासी दल अपने-अपने तरीके से दांव चलने में लगे हैं. अभी हाल ही में महाराष्ट्र में दलितों के साथ झड़प और दलित आंदोलन ने पूरे देश में सियासी बवाल खड़ा कर दिया था.
दलित संगठनों के साथ-साथ विरोधियों ने भी लगातार इस मुद्दे को गरमाकर रख दिया था. कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने बीजेपी सरकार पर दलित विरोधी होने का आरोप लगा दिया था. लगातार उनकी तरफ से संघ परिवार को ही इस घटना के पीछे बताकर पूरे भगवा ब्रिगेड के दलित-प्रेम की हवा निकालने की कोशिश की गई थी.
लेकिन, अब मोदी सरकार की तरफ से डैमेज कंट्रोल की पूरी कोशिश हो रही है. बीजेपी ने पहले ही बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के विचारों को आगे बढ़ाने के लिए उनके जन्म के सवा सौ साल पूरा होने के वर्ष को धूम-धाम से मनाया. उसके बाद दिल्ली में अंबेडकर मेमोरियल बनाकर अपने अंबेडकर प्रेम को भी दिखाने की कोशिश की.
यहां तक कि बीजेपी सरकार की तरफ से बाबा साहब के जीवन से जुड़े हुए पांच महत्वपूर्ण जगहों को भी तीर्थस्थल के तौर पर विकसित करने का फैसला किया गया है.
तीर्थस्थल, मेमोरियल और स्कूलों के पाठ्यक्रमों में शामिल करने की योजना
अब सरकार की तरफ से भारत रत्न बाबा साहब की जिंदगी से जुड़े इन पांच तीर्थस्थलों और उनके जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी को स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल करने की तैयारी की जा रही है. इस बाबत केंद्रीय सामाजिक न्याय और आधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से मांग की है कि बाबा साहब के विचारों से स्कूली छात्रों को अवगत कराया जाए. इसके लिए सीबीएसई के पाठ्यक्रम में बाबा साहब के जीवन और संघर्ष से जुडी बातों को शामिल करने की मांग की गई है.
गौरतलब है कि बाबा साहब से जुड़े जिन पांच स्थलों को तीर्थ घोषित किया गया है उनमें सबसे पहला नाम मध्य प्रदेश का है जहां उनका जन्म हुआ था. मध्य प्रदेश सरकार ने बाबा साहब के जन्म स्थल मध्यप्रदेश के इंदौर जिले के महू में एक भव्य निर्माण कराया है.
लंदन में स्मारक और देश में पंचतीर्थ
इसके अलावा बाबा साहब की शिक्षा भूमि लंदन है जहां 10 किंग हेनरी रोड, जहां रहकर बाबा साहब में लंदन में अपनी उच्च शिक्षा के लिए अध्ययन किया था. उस जगह को महाराष्ट्र सरकार ने खरीदा है. 14 नवंबर 2015 को अपनी लंदन यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाबा साहब की शिक्षा भूमि का उद्घाटन एक स्मारक के तौर पर किया.
बाबा साहब की दीक्षा भूमि नागपुर को माना जाता है, जहां 14 अक्टूबर 1956 में उन्होंने आठ लाख से ज्यादा अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा ले ली थी. दीक्षा भूमि के जीर्णोधार के लिए महाराष्ट्र सरकार ने अपना काम शुरू कर दिया है.
बाबा साहब की महापरिनिर्वाण भूमि दिल्ली में 26 अलीपुर रोड है, जहां, बाबाव साहब ने अंतिम सांसें ली थीं. इस जगह पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 21 मार्च 2016 को लगभग 100 करोड़ रूपए की लागत से बनाए जा रहे डॉ. अंबेडकर राष्ट्रीय स्मारक का शिलान्यास किया था.
इसके अलावा बाबा साहब की जिंदगी से जुड़ी उस जगह को भी पंचतीर्थ में शामिल किया गया है जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया था. इसे चैत्य भूमि कहा जाता है. बाबा साहब का दिल्ली में निधन होने के बाद उनका पार्थिव शरीर मुंबई में दादर लाया गया था. 7 दिसंबर 1956 को बाबा साहब का जिस स्थान पर दाह संस्कार किया गया था उस जगह पर महाराष्ट्र सरकार की तरफ से भव्य निर्माण कराया जा रहा है.
बाबू जगजीवन राम के लिए भी हैं सरकार के पास योजनाएं
बाबा साहब के अलावा दलितों के दूसरे बड़े नेताओं की विरासत पर भी बीजेपी की नजर है. दलितों के नेता पूर्व उप प्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम की जिंदगी से जुड़े रोचक तथ्यों को भी ध्यान में रखकर सरकार उनके काम को जनता के सामने लाने की तैयारी हो रही है.
लोकसभा की पूर्व स्पीकर मीरा कुमार के पिता बाबू जगजीवन राम कांग्रेस के बड़े नेता थे. लेकिन, अब दलितों के इस बड़े नेता जगजीवन राम के विचारों को भी आगे कर सरकार की तरफ से दलितों को साधने की पूरी कोशिश हो रही है.
बाबू जगजीवन राम नेशनल फाउंडेशन की गवर्निंग बॉडी की मीटिंग में इस बाबत फैसला लिया गया है. गवर्निंग बॉडी के फैसले के मुताबिक,
- अब हर साल बाबू जगजीवन राम मेमोरियल लेक्चर का आयोजन होगा.
- इसके अलावा 6 कृष्ण मेनन मार्ग स्थित बाबू जगजीवन राम नेशनल फाउंडेशन में एक लाइब्रेरी भी बनाई जाएगी.
- बाबू जगजीवन राम के जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों को स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल कराने पर सहमति बनाने की कोशिश की जाएगी. इस बाबत राज्य सरकारों से भी बात की जाएगी.
- बाबूजी के जीवन पर एक फीचर फिल्म भी बनाई जाएगी.
दरअसल, गुजरात में ऊना की घटना के बाद महाराष्ट्र के पुणे के कोरेगांव में हुई हिंसा ने विरोधियों को सरकार पर हमला करने का मौका दे दिया है. कांग्रेस समेत सभी विरोधी इस मसले के सहारे सरकार को दलित विरोधी ठहराने में लगे हैं. लेकिन सरकार अब दलित आईकॉन को महिमामंडित कर विरोधियों की रणनीति को फेल करना चाहती है.
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