जो पिछले 70 साल में नहीं हुआ वो वाकई साढ़े चार साल में हो गया. केंद्र की मोदी सरकार ने सवर्णो से जुड़ा एक वो बड़ा फैसला लेने का दम दिखाया जो केवल बहस या फिर दलीलों की फाइलों में बंद था.
मोदी सरकार ने आर्थिक रूप से पिछड़े ऊंची जाति के लोगों को आरक्षण देने के फैसले पर मुहर लगा दी है. केंद्रीय कैबिनेट ने गरीब सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया है. इसके तहत गरीब सवर्णों को सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षा में आरक्षण मिलेगा. इस आरक्षण का फायदा उन लोगों को मिलेगा जिनकी सालाना आमदनी 8 लाख रुपए या जिनके पास 5 एकड़ से कम खेती की जमीन होगी. कुल मिलाकर मोदी सरकार ने सवर्णों के आरक्षण की क्रीमी लेयर तैयार कर दी. इस आरक्षण का फायदा ब्राह्मण, राजपूत और दूसरी सवर्ण जातियों को मिलेगा.
केंद्र सरकार ने लोकसभा चुनाव से ऐन पहले ये लोकलुभावन ब्रह्मास्त्र चलाया है. चुनाव से पहले सवर्णों की नाराजगी दूर करने के लिए आरक्षण का फैसला लेकर मोदी सरकार ने ये साबित कर दिया कि वो बड़े फैसलों का रिस्क उठाने की ताकत रखती है. इसी के साथ सरकार का ‘सबका साथ-सबका विकास’ का दावा भी मजबूत हो गया. तभी मोदी सरकार के इस फैसले को लोकसभा चुनाव के तहत ‘मास्टर-स्ट्रोक’ माना जा रहा है.
सवर्णों को आर्थिक रूप से आरक्षण की मांग पिछले 17 साल से सरकारों के पास लंबित थी. ये एक ऐसा मुद्दा था जिसे छू कर हाथ जलाने की हिम्मत भी किसी में नहीं थी. हालांकि, संविधान ने समाज में पिछड़े लोगों के लिए जातिगत आरक्षण की व्यवस्था की है. ये और बात है कि उस व्यवस्था का फायदा वो लोग भी उठा रहे हैं जो आर्थिक रूप से सशक्त और मजबूत हैं.
हाल ही में 3 राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार के पीछे किसानों और बेरोजगारों के असंतोष को वजह बताया जा रहा था. वहीं एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए लाए अध्यादेश की वजह से सवर्ण-वर्ग भी नाराज हो चला था. ऐसे में बीजेपी ने पहले पिछड़े तो अब सवर्णों को साधने का काम किया है. पहले एससी-एसटी एक्ट में अध्यादेश लाकर संशोधन किया तो अब सवर्णों को रिझाने के लिए 10 फीसदी आरक्षण लाने का दांव चल दिया.
लेकिन बड़ा सवाल ये है कि देश के संविधान ने मैरिट और समाजिक न्याय का ध्यान रखते हुए 50 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था को मंजूरी दी है. संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण की व्यवस्था नहीं है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए जातिगत आरक्षण का प्रावधान है. ऐसे में संविधान में संशोधन की जरूरत होगी और तब जरूर ये सवाल उठता है कि संसद में संविधान में संशोधन का बिल कैसे पास होगा? खासतौर से तब जबकि पहले से ही कई बिल अटके और लटके पड़े हैं.
हालांकि, मोदी सरकार के इस फैसले के पिछड़ी जातियों के तमाम नेताओं ने स्वागत किया है . राम विलास पासवान, रामदास अठावले, जीतन राम मंझी और बीएसपी सुप्रीमो मायावती तक गरीब सवर्णों को आरक्षण देने की मांग कर रहे थे.
ऐसे में सवाल उठता है कि गरीब सवर्णों को आरक्षण देने का विरोध करने की ताकत कौन सी सियासी पार्टी जुटा सकेगी? खासतौर से तब जबकि 49 प्रतिशत आरक्षण के मूल में कोई छेड़छाड़ या बदलाव नहीं किया गया है. ऐसे में सरकार की मंशा का विरोध करने वाले दल बैठे-बिठाए मोदी सरकार को ही चुनाव के लिए बड़ी तोप देने का काम करेंगे.
माना जा रहा है कि मंगलवार को शीतकालीन सत्र के आखिरी दिन केंद्र सरकार इसके लिए संसद में संविधान संशोधन बिल पेश कर सकती है. अगर बिल पास हो जाता है तो आरक्षण की सीमा 49 फीसदी से बढ़कर 59 फीसदी हो जाएगी. बहरहाल, ये भविष्य की बात है लेकिन अब बीजेपी ने ये दांव चल कर गरीब सवर्णों के प्रति अपनी चिंता का इजहार कर एक धारणा बनाने में कामयाबी जरूर हासिल कर ली है कि वो सवर्णों की हितैषी है.
इस आरक्षण का ग्रामीण क्षेत्र के गरीब और सवर्ण युवाओं पर गहरा असर पड़ेगा जो कि निम्न और मध्यमवर्गीय परिवार से होते हुए नौकरियों और शिक्षा की तलाश में शहरों का रुख करते हैं लेकिन कड़ी मेहनत और मेधावी होने के बावजूद दुर्भाग्य से उन्हें उच्च शिक्षा या फिर सरकारी नौकरी नहीं मिल पाती है. गरीब सवर्ण परिवारों से हर साल कई मेधावी छात्र सिर्फ फीस के पैसे न होने की वजह से देश के बड़े संस्थानों में दाखिला नहीं ले पाते हैं. ऐसे में गरीब सवर्णों को आरक्षण देने के फैसले को सिर्फ राजनीतिक चश्मे से देखने की जरूरत नहीं होनी चाहिए.
लेकिन चुनावी मौसम में जब हर रंग राजनीति की नजर से देखा और परखा जाता हो तब हर फैसले पर सियासी सवाल उठने लाजिमी हैं क्योंकि देश की राजनीति का चरित्र ही यही है. ऐसे में तमाम विरोधों और दावों के बीच एक बात साफ है कि चुनाव से पहले बीजेपी ने एक बड़ी सियासी जंग जीत ली है.
किसानों के लिए भी बीजेपी के बस्ते में एक महायोजना सांस ले रही है. माना जा रहा है कि बहुत जल्द ही पीएम मोदी किसानों के लिए राहत का सबसे बड़ा ऐलान कर सकते हैं जिसके तहत न सिर्फ किसानों को बिना ब्याज का लोन मिल सकता है बल्कि 4 हजार रुपए प्रतिमाह बैंक खाते में सैलरी भी जमा हो सकती है. इसके साथ ही मोदी सरकार की युनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम का भी कयास लगाया जा रहा है जिसके तहत युवाओं के खाते में दस हजार रुपये प्रतिमाह आ सकते हैं. ऐसे में ‘जुमलों की सरकार’ कह कर निशाना साधने वाले विपक्ष के लिए कहा जा सकता है कि चुनाव से पहले बड़े झटकों की शुरुआत हो चुकी है.
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