लुशाई की हरी-भरी पहाड़ियों और इसके करीब तेजी से पांव पसारती मिजोरम की राजधानी आइजॉल में चर्च की बहुत अहमियत है. यहां चर्च सिर्फ रविवार की प्रार्थना सभा और परिवारों के मेल-मिलाप तक सीमित नहीं है. मिजोरम के समाज पर चर्च का शिकंजा इतना मजबूत और व्यापक है कि चर्च ही लोगों को बताता है कि मिजो लोग कैसे अपनी रोजमर्रा की जिंदगी जिएं और तमाम सामाजिक-आर्थिक मसलों पर उनका क्या रुख हो. ज्यादातर मिजोवासी प्रेस्बिटेरियन चर्च के अनुयायी हैं.
राज्य में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. इन चुनावों में चर्च केवल पादरियों के प्रवचन और पहाड़ियों पर परिचर्चा यानी त्लांगू (त्लांग मतलब पहाड़ी और मतलब चीखना) तक सीमित नहीं है. राज्य के चुनाव में सिविल सोसाइटी के नाम पर इसका जबरदस्त दखल है. चर्च और यंग मिजो एसोसिएशन (YMA) जैसे ताकतवर एनजीओ ने मिलकर मिजो पीपुल्स फोरम नाम से संगठन बना रखा है.
यूं तो इसका मकसद साफ-सुथरे चुनाव में सहयोग देना है. लेकिन, ये संगठन यहां की हर गली में मौजूद लाउडस्पीकर के जरिए ऐलान करता है. इसके अलावा चर्च की प्रार्थना सभाओं में पादरी अपने प्रवचनों में चुनाव और सियासत का जिक्र करते हैं.
हाल ही में राज्य के विवादित मुख्य चुनाव अधिकारी के पद पर बने रहने को लेकर काफी विवाद हुआ था. इसके अलावा एक मिज़ो आईएएस अधिकारी के तबादले को लेकर भी हंगामा हुआ. इस झगड़े और उसके नतीजों ने एक बार फिर साफ कर दिया कि ईसाई बहुल (राज्य की कुल आबादी का 87 फ़ीसद ईसाई हैं) मिज़ोरम में चर्च कितना ताक़तवर है.
आईजॉल के टैक्सी ड्राइवर, 37 बरस के रिंगा से जब ये पूछा गया कि क्या वो रविवार को चर्च जाते हैं, तो उन्होंने कहा कि, 'हां, मैं हर रविवार को चर्च जाता हूं. यहां हर कोई जाता है. सभी को चर्च की बातें माननी चाहिए. वो सब के भले की बात करते हैं.' लिंगपुई हवाई अड्डे से शहर की तरफ जाते हुए जब रास्ते में शराब की दुकान दिखती है, तो रिंगा उसकी तरफ हिकारत भरी निगाह से देखते हैं.
इस बार चुनाव प्रचार में शराबबंदी का मुद्दा जोर-शोर से उछल रहा है
रविवार को पूरा का पूरा मिजोरम मानो ठहर जाता है. राज्य के लोग उस दिन प्रार्थना करने चर्च जाते हैं. मिजोरम की मशहूर पोर्क डिश, 'बाई' जो पोर्क यानी सुअर के मांस में स्थानीय सब्जियां और जड़ी-बूटियां डाल कर तैयार की जाती हैं, वो आप को रविवार को नहीं मिलेगी. यहां का कोई रेस्टोरेंट उस दिन नहीं खुलता. पहाड़ी सूबे मिजोरम की राजधानी आईजॉल और ग्रामीण इलाकों में खास ठिकानों पर लाउडस्पीकर का जाल बिछा हुआ है. यहां से अक्सर जनता के लिए ऐलान होते रहते हैं.
राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री जोरमथंगा एक वक्त में यहां के छापामार विद्रोही हुआ करते थे. इस बार वो चुनाव में मिजो नेशनल फ्रंट की अगुवाई कर रहे हैं.
मिज़ोरम में राजधानी आइज़ॉल के अलावा 803 गांव हैं. इनमें कुल मिलाकर 4 हजार के आस-पास लाउडस्पीकर लगे हैं.
जोरमथंगा कहते हैं, 'लाउडस्पीकर से समुदाय के हर परिवार तक एक बार में पहुंचा जा सकता है. रोजमर्रा की जानकारियों के ऐलान इन लाउडस्पीकर के जरिए होते हैं. जैसे फलां शख्स की मौत हो गई. उनके अंतिम संस्कार में कब और कहां इकट्ठा होना है. कोई व्यक्ति लापता हो गया है, तो सभी युवा उसकी तलाश करें. कोई शख्स डूब गया है, तो सभी लोगों को जाना चाहिए. कोई खास सामान किसी दुकान में उपलब्ध है, जिसे जरूरत हो वो ले सकता है. शराब न पिएं. ड्रग्स न लें. ये सेना का बटालियन मुख्यालय जैसा है. सब की मदद हो जाती है.' जोरमथंगा इस बार शराबबंदी के हक में जोर-शोर से आवाज उठा रहे हैं.
पूर्वोत्तर के दूसरे राज्यों में भी चर्च के लोग ऐसी बातें कहते आए हैं. पर, आखिर क्या वजह है कि मिजो लोग चर्च के हर फरमान का सख्ती से पालन करते हैं?
इसकी पहली वजह तो ये है कि मिजोरम की ज्यादातर आबादी अलग-अलग कबीलों वाली नहीं है, बल्कि एक ही समुदाय के लोग यहां रहते हैं. पूर्वोत्तर के दूसरे राज्यों में ऐसा नहीं है. यानी यहां अपने समुदाय से ताल्लुक बेहद मजबूत है. मिजोरम में आप को भिखारी नहीं मिलेंगे. यहां अगर कोई गरीब है, तो समाज के दूसरे लोग उसकी मदद करते हैं.
मिजोरम यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र के प्रोफेसर हेनरी जोडिनलियाना बताते हैं, 'मिजोरम के लोग आस-पास के लोगों के साथ करीबी रिश्ता बना कर रखते हैं. इसमें चर्च का बहुत अहम रोल होता है. त्लांगू यानी लाउडस्पीकर से ऐलान का सिस्टम बहुत अच्छे से काम करता है. हालांकि ज्यादातर पुरानी परंपराएं खत्म हो चुकी हैं. पर, त्लांगू अभी भी कायम है. वक्त के थपेड़ों की मार से ये व्यवस्था बच गई है. ये कभी खत्म नहीं होगी. सभी चर्चों की नुमाइंदगी करने वाला मिजो पीपुल्स फोरम इस लाउडस्पीकर व्यवस्था का बखूबी इस्तेमाल कर रहा है.'
मिजोरम के हर इलाके के लोग सरकारी छुट्टियों पर इकट्ठे होते हैं और अपने इलाके की साफ-सफाई करते हैं. इससे संकरी से संकरी गलियां भी आप को साफ दिखती हैं. जिस परिवार का कोई भी सदस्य सफाई अभियान में हिस्सा नहीं ले पाता, वो एक छोटी सी रकम वाईएमए के खाते में जमा कराता है. जिससे फंड बनाकर समाज के दूसरे काम किए जाते हैं.
अब इसमें कोई अचरज की बात नहीं कि चुनाव के वक्त त्लांगू यानी ऐलानों का ये सिस्टम और भी सक्रिय हो जाता है. लोगों को पता होता है कि कुछ भी गलत करेंगे, तो लाउडस्पीकर से ऐलान करके उनकी करतूत सार्वजनिक कर दी जाएगी. शर्मिंदगी के इस डर से लोग गलत काम करने से बचते हैं.
कुदरती आपदा जैसे कि अक्सर होने वाल भूस्खलन के वक्त लाउडस्पीकर से होने वाले ऐलान काफी काम आते हैं. इस दौरान सिस्टम अच्छे से काम करे, इसके लिए लाउडस्पीकरों के लिए बैटरी और इनवर्टर की व्यवस्था की गई है. वाईएमए अब इस सिस्टम को बेहतर बनाने के लिए नई तकनीक में निवेश कर रहा है. नए तार और साउंड सिस्टम खरीदे जा रहे हैं.
भारत में सार्वजनिक योजनाओं को जनता तक पहुंचाने का सिस्टम अक्सर ठीक से काम नहीं करता. ऐसे में त्लांगू ने बड़ी कामयाबी हासिल की है. दूसरे समुदाय और राज्य भी इससे सबक ले सकते है. मिजोरम में चर्च का काम केवल आध्यात्मिक प्रचार नहीं है. यहां चर्च राजनीति और इससे संवाद में भी दखल देता है.
हालांकि रेवरेंड लालिबायक्माइवा वोटरों के बर्ताव से पूरी तरह से संतुष्ट नहीं हैं. फिर भी वो कहते हैं कि चर्च की कोशिशें रंग ला रही हैं. वो कहते हैं कि, 'अभी लोगों का बर्ताव हमारी उम्मीद से कम है. आखिर आध्यात्म और राजनीति के बीच सही संतुलन भी तो जरूरी है. तो हम लोगों को ये सिखाते हैं कि वो अच्छे लोगों को चुनें.'
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