दिसंबर, 2001 में भारतीय संसद पर हुए हमले के बाद भारत ने ऑपरेशन पराक्रम चलाया था. हमले के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सेना को सीमा की ओर बढ़ने को कह दिया.
दिसंबर, 2001 से जून, 2002 तक भारत और पाकिस्तान दोनों देशों की सेना एलओसी की ओर बढ़ती रही. एक स्थिति ऐसी आ गई कि दोनों तरफ से नियंत्रण रेखा पर करीब आठ लाख सैनिक तैनात हो गए और सीमा पर तनाव काफी बढ़ गया. कई मिसाइल परीक्षण भी हुए.
इसी दौरान पाकिस्तान ने अपनी परमाणु क्षमता की घोषणा की और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता को भी बढ़ाया. इस कार्रवाई को लेकर माना गया था कि यह भारत की ताकत दिखाने की कोशिश थी और इसके बाद पाकिस्तानी सेना ने आतंकवादी गुटों को समर्थन करना बंद कर दिया. यह कुछ ही समय तक रहा. इसका कोई दूरगामी असर नहीं हुआ.
छह महीने बाद प्रधानमंत्री वाजपेयी ने सेना वापस बुलाने का संकेत दिया और आॅपरेशन पराक्रम समाप्त हो गया.
विशेषज्ञों का दावा है कि ऑपरेशन पराक्रम में भारत पर करीब 3 बिलियन डॉलर का बोझ पड़ा. उधर पाकिस्तान को भी करीब 1.5 बिलियन डॉलर खर्च करना पड़ा था.
बिना युद्ध मारे गए 798 सैनिक
भारत सरकार ने संसद में बताया कि बिना युद्ध किए हमारे 798 सैनिक मारे गए, जबकि 1999 के कारगिल युद्ध में भारतीय सेना के 527 जवान शहीद हुए थे. यानी आॅपरेशन पराक्रम कारगिल युद्ध से ज्यादा घातक साबित हुआ.
कई विशेषज्ञों ने माना कि ऑपरेशन पराक्रम गलत तरीके से चलाया गया था और इस लामबंदी का कोई स्पष्ट उद्देश्य नहीं था.
कुछ समय पहले पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल सुशील कुमार ने भी कहा कि ऑपरेशन पराक्रम एक बड़ी गलती थी.
उन्होंने कहा, 'ऑपरेशन पराक्रम के लिए कोई उद्देश्य या सैन्य लक्ष्य नहीं था. मैं यह स्वीकार करने में कोई हिचक महसूस नहीं कर रहा कि यह भारतीय सुरक्षा बलों के लिए सबसे दंडनीय गलती थी.'
उड़ी हमले के बाद भारत सरकार और सेना आक्रामक दिख रही हैं. देश की जनता में भी गुस्सा है. मीडिया ने बिना किसी पुख्ता आधार के ऐसी सूचनाएं दीं जैसे कि युद्ध की तैयारियां चल रही हों.
कई चैनलों ने तो पाकिस्तान को खत्म करने का रोडमैप भी प्रसारित कर दिया. खबरें आईं कि उड़ी हमले के बाद 'एक्शन की तैयारी जोर शोर से चल रही है.'
20 सितंबर को हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों सेनाओं के प्रमुखों और एनएसए अजित डोभाल के साथ साउथ ब्लॉक में बने वॉर रूम में उच्च स्तरीय मीटिंग की.
दूसरी ओर, उड़ी हमले के बाद भारतीय सेना ने अबतक अलग-अलग कार्रवाई में कम से कम 35 आतंकवादियों को मार गिराया.
खबरों के मुताबिक उड़ी हमले के जवाब में भारतीय सेना ने जवाबी कार्रवाई करते हुए लाइन ऑफ कंट्रोल के उस पार जाकर 20 आतंकियों को मार गिराया है.
मारे गए पाकिस्तानी घुसपैठ
18 से 20 सैनिकों की 2 एलीट पैरा यूनिट्स ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में 3 आतंकी शिविरों पर हमला किया जिसमें करीब 20 आतंकी मारे गए हैं. इसमें करीब 200 आतंकियों के घायल होने का अनुमान है.
उड़ी हमले के अगले दिन भी सीमा पर घुसपैठ कर रहे दस आतंकियों को भारतीय सेना ने मुठभेड़ में मार गिराया. गुरुवार को बांदीपोरा में एक मुठभेड़ में एक आतंकी मारा गया. उड़ी में हमला करने वाले चारों आतंकी भी मारे गए थे.
मुंबई हमले से लेकर पठानकोट हमले तक भारत दोषियों को सजा दिलाने में सफल नहीं हो सका है. जनता के बीच इस बात की आशंका है कि हो सकता है कि इस बार भी वैसा ही हो.
मोदी सरकार इस अपयश से बचना चाहेगी. लेकिन उसे 'ऑपरेशन पराक्रम' जैसी कार्रवाइयों से सबक सीखते हुए ही आगे बढ़ना चाहिए.
भारतीय जनता पार्टी का कहना है कि 'सामरिक संयम की नीति का समय खत्म हो गया है और अब पाकिस्तान के खिलाफ कठोर नीति की जरूरत है.'
देश के पास सैनिक कार्रवाई का विकल्प हरदम खुला है लेकिन देश को युद्ध की मनोदशा में ले जाने के नुकसान का अंदाजा लगाना कठिन है.
सैनिक कार्रवाई तभी की जा सकती है जब उसके उद्देश्य स्पष्ट हों. वरना युद्ध से सिर्फ जन-धन का नुकसान ही हाथ आएगा.
इसलिए उड़ी हमले का जवाब देना तो जरूरी है लेकिन संयमित और सुलझी हुई नीतियों के सहारे आगे बढ़ने की जरूरत है.
सामरिक मामले में उत्तेजना में आकर युद्ध की तरफ बढ़ना सबसे खराब विकल्प हो सकता है.
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