आतंकी अचानक गुलाम नबी पटेल की स्कॉर्पियो के सामने आए. फायरिंग की. दो गोली उनके चेहरे पर लगी. पूर्व कांग्रेसी और पीडीपी नेता गुलाम नबी को दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले में अस्पताल ले जाया गया. रास्ते में ही उनका इंतकाल हो गया. बुधवार दोपहर हुए इस हमले में उनके बेटे और दो सुरक्षा गार्ड्स को भी चोट आई.
67 साल के पटेल डांगेरपोरा शादीमार्ग के रहने वाले थे, जो दक्षिण कश्मीर में पुलवामा-शोपियां की सीमा पर है. उन्होंने मुख्य धारा में शामिल कई पार्टियों के लिए काम किया. इस वजह से सामाजिक बहिष्कार का शिकार हुए. लेकिन अजीब बात है कि मौत के बाद उन्हीं राजनीतिक पार्टियों ने उन्हें अपना मानने से इनकार कर दिया.
पीडीपी ने कहा, कोई लेना-देना नहीं
पिछले साल जून में पीडीपी ने उनसे दूरी बना ली थी. एक बयान जारी करके कहा था कि पटेल का उनकी पार्टी से कोई लेना-देना नहीं है. हालांकि इस बयान की वजह साफ नहीं है. पीडीपी के प्रवक्ता रफी मीर ने फ़र्स्टपोस्ट से कहा, ‘हमने पिछले सला ही अपने बयान में कहा था कि वो पीडीपी का हिस्सा नहीं हैं.’
जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने उनके निधन पर शोक जताया. उन्होंने कहा कि इस तरह की घटनाओं से कुछ हासिल नहीं होगा, सिर्फ परिवार ही शोक में डूबेंगे, ‘सीनियर कांग्रेस लीडर जी.एन. पटेल के निधन पर उनके परिवार के लिए हार्दिक संवेदनाएं. उन्हें मिलिटैंट ने मार दिया. इस तरह की कायराना हरकत से कुछ हासिल नहीं होने वाला है. बस, एक और परिवार बिखर गया.’
यह पहली बार नहीं कि किसी मुख्य राजनीतिक पार्टी का कोई कार्यकर्ता मारा गया हो. ऐसी सैकड़ों घटनाएं हैं, जहां कार्यकर्ताओं ने ‘ग्रासरूट लेवल पर प्रजातंत्र लाने’ के लिए अपनी जान दे दी. ये कार्यकर्ता भारतीय नजरिए से सरकार की आंख-कान जैसे रहे हैं. लेकिन पिछले कुछ समय में इनकी जिंदगी में जबरदस्त उतार-चढ़ाव आया है. खासतौर पर बुरहान वानी को मारे जाने के बाद. हालिया सालों में जमीन पर काम करने वाले ये कार्यकर्ता आतंकियों के निशाने पर आसानी से आने वाले लोगों में रहने हैं.
जब पीडीपी और कांग्रेस ने मारे गए नेता के साथ अपनी दूरी बना ली, उस वक्त नेशनल कॉन्फ्रेंस के कार्यकारी अध्यक्ष उमर अब्दुल्ला अलग विचार के साथ सामने आए. उन्होंने अपने ट्वीट में कहा, ‘कितना दुखद है कि एक राजनीतिक कार्यकर्ता पटेल साहब को कश्मीर में आतंकियों ने मार दिया. इसके बाद पीडीपी और कांग्रेस दोनों ने उनसे अपनी दूरी बना ली. अगर दोनों पार्टियां उन्हें अपना नहीं मानतीं, तो उन्हें नेशनल कॉन्फ्रेंस का कार्यकर्ता मान लीजिए, ताकि उनकी मौत बेकार न जाए.’
For long time we as reporters knew Ghulam Nabi Patel as a Congress leader. Didn't know he had joined PDP. But it is sad that parties are disowning him. You need foot soldiers to carry your flag and when he is dead you disown him.
— Shujaat Bukhari (@bukharishujaat) April 25, 2018
पटेल को दोपहर करीब तीन बजे गोली मारी गई. कश्मीर पुलिस के मुताबिक आतंकियों को ढूंढने के लिए पूरी कोशिश की जा रही है. गवाहों के मुताबिक उन पर हमला करने के बाद आतंकी एक छोटी गली से भागे और वे स्थानीय आतंकी लग रहे थे.
पुलवामा हॉस्पिटल के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट डॉ. अब्दुल रशीद पारा ने कहा कि उन्हें अस्पताल नहीं लाया गया. उनकी रास्ते में ही मौत हो गई. कांग्रेस के राज्य प्रमुख गुलाम अहमद मीर ने कहा कि पटेल काफी समय पहले कांग्रेस के साथ थे. लेकिन बाद में उन्होंने पीडीपी जॉइन कर ली थी. मीर ने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि वो पिछले काफी सालों से कांग्रेस के कार्यकर्ता थे. कहा जा रहा है कि राजनीतिक कार्यकर्ता होने की कीमत उन्हें चुकानी पड़ी.’
जब से घाटी में आतंकवाद फैला है, तमाम राजनीतिक कार्यकर्ता मारे गए हैं. इसमें सबसे बड़ी तादाद नेशनल कॉन्फ्रेंस के कार्यकर्ताओं की है. दरअसल, अलग-अलग पार्टी से जुड़े ऐसे नेताओं पर सबसे ज्यादा खतरा रहा है, जो जमीनी तौर पर काम करते हैं. तमाम सरपंच और स्थानीय कार्यकर्ताओं पर हमले हुए हैं. 2011 से 2015 के बीच कम से कम दस सरपंच मारे गए हैं. ऐसे ज्यादातर कार्यकर्ता दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग, पुलवामा, कुलगाम और शोपियां के हैं.
पिछले साल एक घटना में पूर्व सरपंज मोहम्मद रमजान शेख को मार दिया गया था. तीन आतंकी उनका अपहरण करने के लिए घर में घुसे थे. जब परिवार ने विरोध किया, तो उन्होंने फायरिंग शुरू कर दी. शेख की मौके पर ही मौत हो गई थी. एक आतंकी भी मारा गया था. पिछले कुछ समय में मेनस्ट्रीम राजनीति के लिए कश्मीर में जगह सिकुड़ती नजर आई है. ऐसे में तमाम राजनीति कार्यकर्ता अपने घर छोड़ गए हैं. उन्होंने श्रीनगर के सुरक्षा व्यवस्था वाले होटलों में शरण ली है.
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