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मेघालय के राज्यपाल पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोपों की हो जांच

राज्यपाल वी. संगमुंगनाथन पर नौकरी मांगने गई महिला से छेड़छाड़ का गंभीर आरोप लगा है

Updated On: Jan 26, 2017 08:31 PM IST

FP Politics

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मेघालय के राज्यपाल पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोपों की हो जांच

मेघालय के राज्यपाल वी. संगमुंगनाथन पर छेड़छाड़ का गंभीर आरोप लगा है. उनसे नौकरी मांगने गई एक महिला ने उनपर यह आरोप लगाया है.

मेघालय के राज्यपाल भले ही इस आरोप से इंकार करें, लेकिन जिस तरह से महिला ने इस मामले को सार्वजनिक किया है, उससे इस मामले की जांच होनी जरूरी है. यह मामला राज्यपाल की व्यक्तिगत और पद की गरिमा से जुड़ा हुआ है.

इस मामले को बगैर किसी जांच के रफादफा नहीं किया जा सकता. यह मामला राज्यपाल के लिए इस वजह से भी और अधिक गंभीर है क्योंकि शिलांग राजभवन के कर्मचारियों ने भी उनकी गतिविधियों पर सवाल उठाया है. इन कर्मचारियों का कहना है कि राज्यपाल की गतिविधियां उनके घर और ऑफिस के अनुकूल नहीं हैं.

राजभवन के कर्मचारी भी राज्यपाल के खिलाफ

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक शिलांग राजभवन के 80 कर्मचारियों ने राज्यपाल संगमुंगनाथन को हटाने के लिए पीएमओ और राष्ट्रपति भवन को चिट्ठी लिखी है.

चिट्ठी में कहा गया है कि राज्यपाल संगमुंगनाथन के आचरण और गतिविधियों ने राजभवन की मर्यादा भंग की है. उसकी गरिमा को कम किया है. उन्होंने राजभवन को ‘युवा महिलाओं का क्लब’ बनाकर रख दिया है.

कर्मचारियों ने लिखा कि राज्यपाल की वजह से वो मानसिक पीड़ा और तनाव झेल रहे हैं.

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पीड़ित महिला ने यह आरोप पिछले साल दिसंबर में लगाया था. यह खबर एक स्थानीय अखबार ‘द हाइलैंड पोस्ट’ में छपी थी. महिला का आरोप था कि राज्यपाल ने उसे ‘अनुचित तरीके से छूने’ की कोशिश की.

राज्यपाल ने इस घटना से इंकार करते हुआ कहा कि महिला को नौकरी के लिए चुना नहीं गया इस वजह से गुस्से में वह ऐसे आरोप लगा रही है. उनके सेक्रेटरी ने मीडिया से कहा कि इस केस में कोई एफआईआर नहीं दर्ज हुआ है.

मामले को रफादफा करना उचित नहीं 

एफआईआर दर्ज नहीं होने से यह मामला खत्म नहीं माना जा सकता है. ऊंचे पदों पर बैठे लोगों के खिलाफ आम लोग बहुत कम ही मामलों में पुलिस के पास जाने की हिम्मत जुटा पाते हैं. अनुभव बताता है कि यह बहुत ही जोखिम भरा कदम होता है. इसकी वजह यह है कि मामला दर्ज हो जाने के बाद आरोपी पीड़ित को और भी प्रताड़ित करता है.

राजभवन के कर्मचारियों के आरोपों से भी पहली नजर में यह लगता है कि उस महिला के आरोपों में दम है. इस वजह से इस केस की सही तरीके से जांच होनी चाहिए.

राजभवन पर पहले भी लगे हैं आरोप 

इससे पहले राजभवन से जुड़ा इस तरह का विवाद तब सामने आया था, जब नारायण दत्त तिवारी आंध्र प्रदेश के राज्यपाल थे. उनका तीन महिलाओं के साथ आपतिजनक हालत में एक वीडियो सामने आया था. इसके बाद उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था.

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नारायण दत्त तिवारी पर भी राज्यपाल रहते हुए राजभवन की गरिमा को गिराने के आरोप लग चुके हैं (फोटो: रायटर)

नारायण दत्त तिवारी को इस बात का श्रेय दिया जाना चाहिए कि उन्होंने अपने किए गए करतूत पर माफी मांगी थी. हालांकि यह ऐसा मामला नहीं था जिस पर पहले से हो-हल्ला मचा था या तिवारी ने यह कहा हो कि उन्हें ‘फंसाया’ जा रहा है. फिर भी उनके मामले ने राजभवन की छवि को नुकसान पहुंचाया.

अगर संगमुंगनाथन नारायण दत्त तिवारी की तरह बेइज्जत होने से बचना चाहते हैं तो उन्हें नैतिक आधार पर इस्तीफा दे देना चाहिए. साथ ही उन्हें मामले की जांच में बेदाग निकलना होगा.

राज्यपाल पद की छवि पर सवालिया निशान

केंद्र को भी इस मसले को गंभीरता से लेना चाहिए और उचित करवाई शुरू करनी चाहिए. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह किसी प्रभावशाली संगठन से जुड़े हुए हैं. उनके बारे में यह कहा जाता है कि वे आरएसएस से जुड़े रहे हैं.

अगर वह इस नैतिक पतन के दोषी हैं तो उन्हें किसी भी तरह से बचाना सही नहीं है.

कई लोगों के लिए राज्यपाल और राजभवन अतीत की चीजें हैं और सरकारी खजाने पर एक गैरजरूरी भारी बोझ है.

इस पद पर कमोवेश बेकार हो चुके बड़े नेताओं और एक समय में शासन के लिए उपयोगी रहे नौकरशाहों को नियुक्त किया जाता रहा है. ऐसा करके इन्हें सम्मानजनक विदाई दी जाती है. राज्यपाल पद का प्रयोग कई बार विरोधी दल की राज्य सरकारों को अस्थिर करने के लिए भी होता है.

यह एक ऐसा पद है, जिसकी जनता के बीच में पहले से ही नकारात्मक छवि है. ऐसी स्थिति में यौन उत्पीड़न का आरोप इस पद की छवि को और अधिक नुकसान पहुंचाएगा.

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