पूर्वोत्तर के राज्यों के नतीजों मे बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया है. कांग्रेस को मेघालय में किला बचाने के लिए जद्दोजहद करना पड़ रहा है. कांग्रेस को सिर्फ 21 सीट मिली है. बहुमत के लिए 10 और विधायकों की जरूरत है. इस मौजूदा राजनीतिक हालात में निर्दलीय और यूडीपी की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है.
जिनकी तादाद 17 विधायकों की है. कांग्रेस इस बार मेघालय मे किसी भी हाल में सरकार बनाने की कोशिश कर रही है. कांग्रेस ने हालात की नजाकत को समझा और पार्टी के सीनियर नेताओं को मेघालय रवाना कर दिया. कांग्रेस के लिए राजनीतिक प्रबंधन का काम करने वाले नेता अहमद पटेल जोड़-तोड़ की राजनीति में माहिर हैं. इसके अलावा कांग्रेस के महासचिव कमलनाथ को भी उनके साथ भेजा गया है.
राहुल गांधी विदेश दौरे पर हैं इसलिए सारा दारोमदार अहमद पटेल के ऊपर है कि वो कैसे कांग्रेस के इस राज्य को बचाते हैं. कांग्रेस के पास पंजाब, पुडुचेरी, मिजोरम और कर्नाटक में ही सरकार है. मेघालय में कांग्रेस को बहुमत जुटाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ेगी. कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने गोवा और मणिपुर से सबक लिया है. दोनों ही राज्यों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी. लेकिन सरकार बीजेपी ने बनाई इसलिए मेघालय में कांग्रेस कोई कोर कसर नहीं छोडना चाहती है. मेघालय में कांग्रेस की निर्वतमान सरकार थी. लेकिन वहां पर कनरॉड संगमा की पार्टी एनपीपी बीजेपी के साथ मिलकर कांग्रेस को मात दे सकती है. इससे बचने के लिए अहमद पटेल के राजनीतिक कुशलता का फायदा उठाने की फिराक में कांग्रेस के नेता हैं.
अहमद पटेल सेंटर स्टेज पर
गुजरात में राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस में तमाम फूट के बाद अहमद पटेल ने अमित शाह का चक्रव्यूह भेद दिया था. कांग्रेस अहमद का मनोवैज्ञानिक फायदा भी उठाना चाहती है. इससे ये मैसेज जाएगा कि अगर बीजेपी के पास अमित शाह है तो कांग्रेस ने भी अपने कद्दावर नेता को सरकार बनवाने के लिए भेजा है. अहमद पटेल का नार्थ ईस्ट के नेताओं के साथ काफी अच्छे संबध है. मुकुल संगमा को मेघालय का सीएम अहमद पटेल ने ही बनवाया था. उस वक्त भी पार्टी टूट के कगार पर खड़ी थी. इसके अलावा नार्थ ईस्ट के बागी नेताओं के साथ भी अहमद के रिश्ते ठीक है. एनपीपी की अगाथा संगमा के साथ भी अहमद की बातचीत है. वरिष्ठ पत्रकार अजित द्विवेदी का कहना है कि कांग्रेस के पास पॉलिटिकल मैनेजमेंट के लिए अहमद पटेल से बेहतर आदमी नहीं है. यूपीए की सरकार चलाने में अहमद पटेल की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है. खासकर सहयोगी दलों को मैनेज करने में, जिस तरह अहमद पटेल ने सबको एकजुट रखा ये काबिले तारीफ हैं.
अहमद पटेल के लिए करो या मरो की स्थिति
राहुल गांधी के सिस्टम में अहमद पटेल की अहमियत घटी है. इससे पहले सोनिया गांधी के दौर में अहमद पटेल ही सर्वेसर्वा थे. लेकिन गुजरात चुनाव में राहुल गांधी के साथ अहमद पटेल कम ही दिखाई पड़े. कहा जा रहा है कि ध्रुवीकरण को रोकने के लिए ऐसा फैसला किया गया था. लेकिन जिस काम के लिए अहमद मशहूर है वो काम भी राहुल गांधी ने उन्हें नहीं सौंपा. यानी पॉलिटिकल मैनेजमेंट का काम. राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद ये बड़ा काम अहमद पटेल को मिला है. इसमें हर हाल में कामयाब होना अहमद पटेल के राजनीतिक करियर के लिए जरूरी है.
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वरिष्ठ पत्रकार संजीव आचार्य का कहना है कि इस काम के दो पहलू है, अहमद पटेल के लिए ये बड़ा इम्तहान भी है. सोनिया गांधी के वक्त अहमद पटेल दिल्ली में बैठकर ही सब मैनेज करते थे. ये शायद पहली बार है कि मैदान में लड़ने के लिए भेजा गया है. जाहिर है कि अहमद पटेल के स्तर का काम नहीं है. अहमद पटेल इस काम में सफल नहीं हुए तो उनके राजनीतिक करियर पर दाग लग सकता है. पार्टी में उनके विरोधी सक्रिय हो जाएंगे क्योंकि गोवा में सरकार ना बनने का ठीकरा दिग्विजय सिंह पर फूटा था.
कमलनाथ जुटाएंगे समर्थन
2008 में यूपीए सरकार को बचाने के लिए अहमद पटेल और उनकी टीम ने सक्रिय काम किया था. जिसमें कमलनाथ का योगदान कम नहीं था. कमलनाथ ने सरकार बचाने की जोड़-तोड़ में अहम भूमिका निभाई थी. मध्य प्रदेश के चुनाव से पहले कमलनाथ के लिए ये कड़ा इम्तहान है. हालांकि हाल में हुए उपचुनाव में कमलनाथ दूर ही थे लेकिन मध्य प्रदेश की कमान संभालने के लिए काफी कोशिश कर रहे हैं.
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कमलनाथ चाहते हैं कि मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री का उम्मीदवार उन्हें घोषित किया जाए. अगर मेघालय वाले इम्तहान में सफल हुए तो दावा मजबूत होगा. हालांकि राहुल गांधी किसी को मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट करने के मूड में नहीं हैं.
राहुल के पास राजनीतिक मैनेजमेंट के लिए ओल्ड गार्ड
कांग्रेस के अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी को राजनीतिक मैनेजमेंट के लिए लोगों की जरूरत है. इस लिहाज से राहुल गांधी के पास अहमद पटेल और टीम है. सोनिया की इस टीम पर भरोसा करने के अलावा राहुल गांधी के पास और कोई उपाय नहीं है. 2019 का अहम चुनाव पास आ रहा है. बीजेपी के पास रणनीतिकार के तौर पर अमित शाह खुद है. कांग्रेस के पास सिर्फ अहमद पटेल है. जो कांग्रेस के लिए मॉस लीडर तो नहीं है लेकिन राजनीतिक जोड़-तोड़ में माहिर है. यूपीए के दस साल के शासन में बीजेपी के सांसदों को भी कांग्रेस ने 2008 में तोड़ लिया था. बीजेपी की सबसे मजबूत सहयोगी शिवसेना ने राष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी का साथ नहीं दिया था. कांग्रेस के एक नेता का कहना है कि सत्ता हो तो राजनीतिक प्रबंधन करना मुश्किल नहीं है लेकिन अगर हाथ में सत्ता ना हो तो काफी मुश्किल काम है. इस लिहाज से अहमद पटेल सत्ता आने तक कांग्रेस के मैन फ्राइडे बने रहेंगे.
गोवा-मणिपुर में क्या हुआ था
गोवा में कांग्रेस के पास सरकार बनाने का पर्याप्त मौका था लेकिन आखिरी वक्त में बीजेपी ने तत्कालीन रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर को गोवा भेजकर कांग्रेस की बाजी उलट दी जो पार्टियां कांग्रेस के समर्थन में दिखाई दे रही थीं वो अचानक बीजेपी के साथ हो गईं. इल्जाम लगा तब के गोवा के प्रभारी दिग्विजय सिंह पर कि सही वक्त पर फैसला करने में नाकामयाब रहे हैं.
हालांकि असली वजह कुछ और है सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस के नेता राहुल गांधी दिगंबर कामत को सीएम बनाने के पक्ष में नहीं थे. कांग्रेस चाह रही थी कि लिजयॉनो फिलरियो को सीएम बनाया जाए. जिसके लिए सहयोगी दल तैयार नहीं थे. इस कशमकश में पार्टी की तरफ से देरी हुई. मणिपुर में कांग्रेस की सरकार थी. ओकरॉम ओबीबी सिंह राज्य के मौजूदा मुख्यमंत्री थे. लेकिन सरकार बनाने के लिए बीजेपी ने कोई कसर नहीं छोड़ी. मणिपुर में भी कांग्रेस को लग रहा था कि बीजेपी समर्थन नहीं जुटा पाएगी लेकिन जब तक कांग्रेस जागती बीजेपी ने सरकार बनाने के लिए बहुमत जुटा लिया.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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