'सोचो तुमने और मैंने क्या पाया इंसान होके.' जावेद अख्तर के ये अल्फाज सिर्फ उन इंसानों की जिंदगियों का हाल नहीं सुनाते हैं जो अपने घर से निकाल दीं जाती हैं. कुछ जिंदगियां ऐसी भी हैं जो अपने ही घर में धीरे-धीरे मिटा दी जाती हैं.
दक्षिणी दिल्ली नगर निगम के कुछ सफाई कर्मचारी कहते हैं कि वो ऐसी जिंदगी जी रहें हैं, जिसमें मरने का कोई डर नहीं है. दोपहर कि जलती धूप में दिल्ली के दक्षिणी बॉर्डर कि महरौली-बदरपुर रोड के अंदर स्थित जनता जीवन कैंप, टिगरी में आपको यह लोग आसमानी रंग की यूनिफार्म में घूमते दिख जाएंगे.
इस इलाके में लगभग 70,000 लोग रहते हैं जो बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान से अच्छे वक़्तों की तलाश में कभी दिल्ली आए होंगे. चाइल्ड रिलीफ और यू से जुडी हुई एक संस्था में स्वाति नाम की महिला अपना एक स्वास्थ्य और शिक्षा का सेंटर चलाती है. कुपोषित बच्चों के विकास से लेकर टीका करन तक, हर बच्चें का ख़याल रखने की कोशिश यहां होती है.
नालियों को ढक कर बनाई बैठने की जगह
'पिछले साल, हमारे सर्वे में यह सामने आया था कि जे-जे कैंप टिगरी में 70 प्रतिशत लोगों को चिकनगुनिया था.' प्रोग्राम की ऑर्डिनेटर लक्ष्मी के अनुसार एक और सर्वे यह भी दर्शाता है कि 15 से 18 साल के 1000 बच्चों 46 स्कूल छोड़ चुके थे.
इस इलाके की गलियां इतनी छोटी हैं कि लोगों ने बड़े-बड़े पत्थर लगाकर घरों के सामने बहती नालियों को ढक कर अपने खुद के बैठने कि जगह बना ली है. कूड़ा कभी थैलियों में भरकर दीवारों पर बांध दिया जाता है या फिर खिड़कियों से बाहर फेंक दिया जाता है.
नगर निगम के कर्मचारी का कहना है कि वह हथकड़ियों में कचरा डालकर उसे काले सूअरों और कीचड़ से भरी गलियों के बीच में से निकालने कि कोशिश करते हैं. तो वह रास्ते में गिर जाता है और फिर बाहर तक हाथों से पहुंचाया जाता है.
'दूर से अंजादा लगाना आसान है कि एमसीडी कोई काम नहीं करती होगी, जिसके कारण यहां गंदगी है पर सच तो यह है कि लोगों ने सफाई करने के सारे रास्ते बंद कर रखे हैं.'
स्वच्छ भारत अभियान का कोई असर नहीं
अंदर एक बड़ा पार्क है, जिसमें कचरे के छोटे-बड़े पहाड़ हैं. उनके आस-पास लोग ताश खेलते दिख जाते हैं. पार्क के ठीक बगल में एक आंगनबाड़ी है.
इस आंगनवाड़ी कि एक टीचर उषा मल्होत्रा का कहना है 'यहां कचरे की तेज बदबू से गर्भवती महिलाओं को सांस लेने में दिक्कत होती है और शिशु भी इंफेक्शन के साथ पैदा होते हैं'. नशे और बेरोजगारी में डूबे लोग इस पार्क में रात भर शराब पीते हैं.
आम आदमी पार्टी ने अपने घोषणापत्र में दिल्ली को गार्बेज फ्री यानी गंदगी और कूड़े से मुक्त बनाने का दावा किया है. इस इलाके पर 2014 में मोदी जी द्वारा चलाए गए स्वच्छ भारत अभियान का भी कोई असर नहीं हुआ है.
टिगरी की घुटन में एक सच्चाई सबके सामने खुली सांस ले रही है वो ये है कि स्वच्छता एक आर्थिक-सामाजिक मामला है और इसे एमसीडी हमेशा अकेले नहीं संभाल सकती है. केंद्र और राज्य की सरकारों को एकजुट होकर इसे पूरी तरह खत्म करना होगा.
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