नोटबंदी के बाद मायावती का मोदी सरकार पर हमला लगातार जारी है. भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ लड़ाई का बिगुल बजाने का दावा मोदी सरकार की तरफ से हो रहा है. लेकिन जुबानी जंग के जरिये मायावती लगातार इस अभियान पर ही सवाल खड़े करती रही हैं.
नोटबंदी के बाद 50 दिन की मियाद खत्म होने के महज चंद दिन पहले अब ये लड़ाई बड़ी जंग में तब्दील होने लगी है. बीएसपी के खाते में 100 करोड़ से ज्यादा रकम जमा होने के मुद्दे पर सियासत शुरू हो गई है.
खास तौर से बीएसपी सुप्रीमो मायावती के भाई के खाते में जमा रकम के मुद्दे पर बीजेपी सवाल खड़ा कर रही है तो पलटवार मायावती भी कर रही हैं.
मायावती का आरोप है कि बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी नहीं चाहते कि दिल्ली की सत्ता की चाबी एक दलित की बेटी के हाथ में हो.
मायावती ने बीजेपी को दलित विरोधी बताते हुए कहा कि आनेवाले विधानसभा चुनाव में यूपी की जनता इसका सबक जरूर सिखाएगी.
मायावती का दावा: जनता में होगी सहानुभूति
मायावती ने दावा किया कि उनके खिलाफ किया गया दुष्प्रचार इस बार भी उनके लिए जनता के मन में सहानुभूति पैदा करेगा और यूपी में 2007 की तरह इस बार भी बीएसपी की सरकार बनेगी.
तो बड़ा सवाल अब यह है कि क्या मायावती अपने ऊपर लगे आरोपों में जनता की सहानुभूति की गुंजाइश दिख रही है? क्या मायावती अपने कोर वोटर को यह समझाने में सफल रहेंगी कि उन्हें जान-बूझकर परेशान किया जा रहा है? या फिर मायावती के समर्थक इस मुद्दे पर उनका साथ छोड़ देंगे?
इतिहास को खंगालें तो इसके पहले भी मायावती के ऊपर ताज कोरिडोर से लेकर कई दूसरे मामलों में आरोप लगे. लेकिन मायावती की अपनी लोकप्रियता और उनके वोट-बैंक पर कोई खासा असर नहीं दिखा.
2014 की मोदी लहर को छोड़कर मायावती की जमीन मजबूत ही रही है. मायावती को दलित की नहीं दौलत की बेटी कहने वाले कहते रहे. लेकिन इससे मायावती के जनाधार पर कोई खास असर नहीं दिखा.
कमोबेश यही हाल बाकी नेताओं के साथ भी रहा है. चारा घोटाले में जेल जाने के बावजूद लालू यादव का जनाधार नहीं खिसका बल्कि लालू समर्थकों के मन में अपने नेता को लेकर सहानुभूति ही दिखने को मिली.
क्या मोदी के सामने चल पाएगा मायावती का दावा
यही हाल जयललिता के साथ भी हुआ था. तो क्या माना जाय कि बीएसपी इस बार भी वही दांव चल रही है. क्या नोटबंदी के बाद भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चलाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने माया का यह दांव टिक पाएगा?
बीजेपी और उसके सहयोगी तो फिलहाल इस मुहिम की हवा निकालने में लगे हैं. बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने आरोप लगाया कि मायावती दलितों के नाम पर अपने भ्रष्टाचार को छुपाना चाहती हैं. ऐसा कर मायावती दलितों का अपमान कर रही हैं.
बीजेपी ने अब अपने सहयोगियों को भी इस मुहिम में मायावती के सामने खड़ा कर दिया है. मायावती का जवाब देने के लिए सामने आए केन्द्रीय मंत्री और दलित नेता रामविलास पासवान. पासवान ने भी मायावती के दलित कार्ड की हवा निकालने की कोशिश की है.
लेकिन, सवाल अब यही है कि क्या बीजेपी इस मुहिम के द्वारा मायावती को परसेप्शन की लड़ाई में बैकफुट पर धकेल पाएगी.
लेकिन, इतना साफ हो गया है कि जो बीजेपी कुछ दिनों पहले तक यूपी की लड़ाई को बीजेपी बनाम एसपी बताने में लगी हुई थी. लेकिन अब ये लड़ाई बीजेपी बनाम बीएसपी भी बनने लगी है.
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