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कर्नाटक चुनाव : राजनीतिक पार्टियों के साथ-साथ चुनाव आयोग ने भी किए नए प्रयोग

कर्नाटक विधानसभा चुनावों में इस बार बनाए गए 450 'पिंक बूथ' और ईवीएम मशीनों पर आरोप लगाने से बचने के लिए कर तीसरी पीढ़ी की मशीनों का प्रयोग

Updated On: May 12, 2018 04:38 PM IST

Bhasha

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कर्नाटक चुनाव : राजनीतिक पार्टियों के साथ-साथ चुनाव आयोग ने भी किए नए प्रयोग

हर चुनाव में कुछ ना कुछ नए प्रयोग किए जाते हैं, तो कर्नाटक का विधानसभा चुनाव इन नए प्रयोगों से कैसे अछुता रह जाता. इस बार चुनाव आयोग ने नए प्रयोग किए हैं. चुनाव आयोग के प्रयोग में 'पिंक बूथ' समेत तीन नाम शामिल हैं. पहले बात करते हैं 'पिंक बूथ' की, जिनकी संख्या 450 है. ये पूरी तरह से महिला कर्मचारियों के द्वारा संचालित किए जा रहे हैं. यहां बूथ लेवल अधिकारी से लेकर उच्च अधिकारी भी महिलाएं हैं. यहां चुनाव की पूरी प्रक्रिया महिलाएं ही संभाल रही हैं. जिन्हें  'सखी' नाम दिया गया है.

दूसरा, चुनावों में ईवीएम के किसी भी विवाद से बचने के लिए चुनाव आयोग तीसरी पीढ़ी की वोटिंग मशीनों का प्रयोग कर रहा है. जिसे ‘एम 3 ईवीएम’ का नाम दिया गया है. आयोग के अनुसार इन मशीनों में किसी भी तरह की छेड़छाड़ नहीं की जा सकती. अगर कोई भी इसमें किसी भी तरह की छेड़छाड़ की कोशिश करता है तो ईवीएम मशीनें काम करना ही बंद कर देगीं.

आयोग ने इन मशीनों से ही बेंगलुरू की पांच विधानसभा सीटों राजाराजेश्वरी नगर, शिवाजीनगर, शांतिनगर, गांधीनगर और राजाजी नगर पर चुनाव करा रही है. जिसमे राजा राजेश्वरी सीट पर 28 मई को चुनाव कराया जाएगा. मुख्य निर्वाचन अधिकारी के कार्यालय के अनुसार इन ईवीएम मशीनों में बैट्री की स्थिति दिखेगी एवं डिजिटल प्रमाणन सहित अन्य विशेषताएं होंगी. मशीन में किसी तरह की खराबी होने पर मशीन वह भी बताएगी.

देश के सूचना प्रौद्योगिकी गढ़ बेंगलुरू में चुनाव अधिकारियों ने मतदान का प्रतिशत बढ़ाने के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए ऐसे कई पहल की हैं. जिनसे मतदान का प्रतिशत बढ़ाया जा सके. इस बार चुनाव अधिकारियों ने कम-से-कम मतदान का 75 प्रतिशत लक्ष्य रखा है.

तीसरा, चुनाव आयोग ने मैसुरू, चमराजनगर और उत्तर कन्नड़ जिलों में जातीय मतदान बूथ स्थापित किए हैं. चुनाव आयोग की कोशिश है कि चुनाव प्रक्रिया से दूर रहने वाले आदिवासी जनजाति के लोंगो को भी इन चुनावों शामिल किया जाए. इसके लिए आदिवासी जनजातीय इलाकों के बूथों को आदिवासी टच दिया गया है. जो आदिवासी जन जीवन की शैली से मिलते जुलते हैं.

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