आज जब ममता बनर्जी के नीतीश कुमार के लिए तेवर देखे तो एक पुराना गाना याद आ गया.
फिल्म का नाम था लीडर जो 1964 में आई थी. शकील बदांयूनी के लिखे इस गाने के बोल थे
'हमीं से मोहब्बत हमीं से लड़ाई
अरे मार डाला दुहाई दुहाई'
नौशाद के संगीत से सजे इस गाने को कभी मौक़ा लगे तो सुनिएगा. वैसे गाना सुनना हो तो यहाँ क्लिक कर सकते हैं.खैर, अभी बात मुद्दे की. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लगभग गद्दार कह डाला. सीधे तौर पर नहीं तो घुमा-फिरा कर ही सही. वजह साफ है, नीतीश कुमार ने नोटबंदी पर ममता का साथ नहीं दिया.
उनके बिहार आने पर मान-मनौव्वल का कोई उपक्रम नहीं किया. लिहाजा ममता नाराज हो गईं. लालू यादव और उनके परिवार से मिलीं, विपक्षी एकता की दुहाई दी. राबड़ी देवी को गले लगाया और अंतत: गद्दार को सबक सिखाने का ऐलान कर डाला.
ये फसाना पुराना है
नीतीश और ममता की राजनीतिक मोहब्बत और लड़ाई नई नहीं है. याद कीजिए तहलका कांड, जिसमें जया जेटली को पार्टी के लिए पैसे लेते दिखाया गया था. बंगारू लक्ष्मण और जया जेटली सब पर एक साथ गाज गिरी.
ममता बनर्जी तब वाजपेयी सरकार में थी. एनडीए की एक अभिन्न मित्रदल. ममता अचानक नाराज हो गईं और तत्कालीन रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडीज का इस्तीफा मांग डाला.
वाजपेयी सरकार की जान सांसत में थी. अंतत: न सिर्फ फर्नांडीज, बल्कि नीतीश कुमार और दिग्विजय सिंह ने भी मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे डाला.
कृष्ण मेनन मार्ग स्थित फर्नांडीस के घर पर नीतीश कुमार पत्रकारों से मुखातिब हुए. किसी ने सवाल पूछा ‘क्या ममता के इस्तीफा मांगने का यह असर है?.’ तमतमाये नीतीश कुमार बोले ‘छोड़िए ममता फमता.’
जाहिर है नीतीश कुमार ने कई साल ममता से बात नहीं की.
समयकाल बदला तो हाल भी बदला
राजनीति का अजब मिजाज है. कोई भी स्थायी भाव नहीं होता. न शत्रु का और न मित्र का. मनमोहन सिंह सरकार के दूसरे चरण में ममता रेल मंत्री बनीं, नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री. बिहार में रेलवे के कुछ प्रोजेक्ट्स पर बात होनी थी. लिहाजा नीतीश कुमार रेल भवन पहुंचे. उनकी आगवानी के लिए गुलदस्ता लिए स्वयं मौजूद थीं ममता बनर्जी.
यह दोस्ती परवान चढ़ी जब ममता आखिरकार नीतीश कुमार की राजनीति पर नरम दिखाई दीं.
दोस्ती बढ़ती गई, जैसे-जैसे नीतीश कुमार ने एक उग्र मोदी-विरोधी लाइन ली. 2013 के आसपास तो नीतीश और ममता की मित्रता और प्रगाढ़ हो गई.
2014 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद नीतीश को ममता का सहारा मिला. ममता से लगभग आए दिन संपर्क रहा.
राजनीतिक समीकरण नए ढंग से बनने लगे और आते-आते 2015 विधानसभा चुनाव में ममता नीतीश कुमार की विश्वस्त सहयोगी हो गईं. उनके शपथ समारोह में ममता ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया.
न दोस्ती लंबी न दुश्मनी
इसी बीच इस राजनीतिक मोहब्बत की दास्तान को ग्रहण लगने लगा. जीएसटी बिल पर नीतीश कुमार का समर्थन अप्रत्याशित था. उसी तरह सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी पर नीतीश कुमार का सरकार को साथ ममता से दूरी बढ़ाता रहा.
महीनों का दबा गुस्सा आखिरकार फूट गया, जब ममता पटना पहुंची. उनके बने-बनाए खेल पर नीतीश कुमार ने पानी फेर दिया. लालू,राबड़ी और उनके बेटे भी ममता के नोटबंदी विरोध में शामिल नहीं हुए.
आखिरकार बेवफाई का इल्जाम अपरोक्ष रूप से लगा डाला. एलान कर दिया कि गद्दार को सजा मिलेगी.
पर क्या इस राजनीतिक प्रेम का पटाक्षेप हो गया है? याद रखिए राजनीति में कोई सतत दुश्मन और दोस्त नहीं होता. लिहाजा पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त!
हंदवाड़ा में भी आतंकियों के साथ एक एनकाउंटर चल रहा है. बताया जा रहा है कि यहां के यारू इलाके में जवानों ने दो आतंकियों को घेर रखा है
कांग्रेस में शामिल हो कर अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत करने जा रहीं फिल्म अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर का कहना है कि वह ग्लैमर के कारण नहीं बल्कि विचारधारा के कारण कांग्रेस में आई हैं
पीएम के संबोधन पर राहुल गांधी ने उनपर कुछ इसतरह तंज कसा.
मलाइका अरोड़ा दूसरी बार शादी करने जा रही हैं
संयुक्त निदेशक स्तर के एक अधिकारी को जरूरी दस्तावेजों के साथ बुधवार लंदन रवाना होने का काम सौंपा गया है.