देश की मशहूर ट्रासजेंडर अप्सरा रेड्डी अब महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव बन गई हैं. अप्सरा काफी समय से राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में जानी जाती हैं. पेशे से पत्रकार अप्सरा ने ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड में पढ़ाई की है. पत्रकार के रूप में उन्होंने बीबीसी, द हिंदू, न्यू इंडियन एक्सप्रेस, डेक्कन क्रॉनिकल जैसे संथानों में काम किया है.
कांग्रेस ने ट्रांसजेंडर अप्सरा रेड्डी को अखिल भारतीय महिला कांग्रेस (एआईएमसी) का राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किया है. ये पहली बार है जब कांग्रेस ने किसी ट्रांसजेंडर को इतनी बड़ी जिम्मेदारी दी है.
कौन हैं अप्सरा रेड्डी?
मूलतः आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले से आने वाली अप्सरा रेड्डी की स्कूली पढ़ाई चेन्नई में हुई है. उनका जन्म का नाम अजय रेड्डी था लेकिन उनके शौक लड़कियों जैसे थे. लड़कियों की तरह चलना, बोलना और सजना संवरना अजय रेड्डी को काफी पसंद था. बचपन में बालों में फूल लगाना, मां की सैंडिल पहनना और मौका मिलते ही मां का मेकअप करने में अजय माहिर था. लेकिन तब ना अजय को ना ही उनके आस पास रहने वाले लोगों को ये समझ आता था. पहले इसे बचपना माना गया, लेकिन बाद में अजय को परिवार और समाज से विरोध झेलना पड़ा.
अजय से अप्सरा बनने का सफर
धीरे-धीरे अजय को समझ आ गया कि वो बाकियों से अलग है लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. अजय ने 13-14 उम्र में पहली बार गूगल पर जेंडर परिवर्तन के बारे में रिसर्च किया. तब उसे पता चला कि उसके जैसे कई लोग दुनिया में जो शरीर से आदमी और मन से औरत हैं. पर उस समय अजय को अपने माता पिता से ज्यादा समर्थन नहीं मिला. पढ़ने में अव्वल अजय को उनके स्कूल में बच्चे बहुत परेशान करते थे लेकिन उनका ज्यादा ध्यान पढ़ाई में लगता था.
Apsara Reddy has been appointed the first transgender National General Secretary of @MahilaCongress by Congress President @RahulGandhi pic.twitter.com/qDTZSgaoMH
— Congress (@INCIndia) January 8, 2019
जब उनका दाखिला ऑस्ट्रेलिया की मोनाश यूनिवर्सिटी में हुआ तब उनको ऐसे कई दोस्त मिले जो उनकी स्थिति को देखकर मजाक नहीं उड़ाते थे. ऑस्ट्रेलिया में अजय ने पहली बार जेंडर ट्रांसप्लांट की सोची. आस्ट्रेलिया में अजय जैसिन्टा से मिले. जैसिन्टा की कहानी भी अजय के जीवन की तरह थी. जैसिन्टा ने अजय को जेंडर काउंसिलर के पास जाने के लिए प्रेरित किया. अजय ने करीब साल भर काउंसिलिंग की और जेंडर बदलवाने का मन बनाया.
अजय ने पहले ऑस्ट्रेलिया में और बाद में लंदन में काउंसिलिंग और हारमोन की दवाई ली. बकौल अप्सरा बाहर के देशों में ये दवाई तभी दी जाती है जब वहां पर डाक्टर को ये भरोसा हो जाए कि व्यक्ति मन से तैयार है. लेकिन काउंसिलिंग और दवाई के दौर में भी अजय को समय लग रहा था.
आस्ट्रेलिया और लंदन में काम करने के साथ-साथ अजय ने अपने जैसे लोगों को लेकर बात करनी शुरु की. और धीरे-धीरे वहां पर उन्हें नई पहचान मिली. अलग अलग मीडिया संस्थानों में काम करने के फायदा ये मिला कि वो अपने विचार सबके सामने खुल कर रखने लगीं. हिंदुस्तान आकर अजय ने पहले इंडियन एक्सप्रेस और बाद में डेक्कन क्रॉनिकल में नौकरी की. वहां पर उन्हें अपने बॉस का सहयोग तो मिला लेकिन उनके साथ काम करने वाले लोगों उन्हें अजीब नजरों से देखते थे. सामाजिक रूप से उन्हें बहुत पसंद नहीं किया जाता था. लेकिन यहां पर भी पत्रकारिता के जरिए उन्हें स्वीकृति मिलने लगी.
और फिर उन्होंने थाइलैंड में अपना ऑपरेशन कराया. उस दौरान उनके माता पिता उनके साथ थे. हालांकि मां का साथ था लेकिन उनके पिता इसके लिए राजी नही थे. वो उन्हें अस्पताल में लगातार परेशान करते रहे. हालांकि ऑपरेशन के बाद जब अप्सरा बन कर वापस आई तो भी समाज से स्वीकृति आसानी से नहीं मिली.
ट्रांसजेंडर कानून और समाज
अप्सरा का मानना है कि समाज ट्रांसजेडर की स्थिति को समझता नहीं है. अपने निजी अनुभव में उन्होंने बताया कि वो एक बार वो रात के समय कहीं जा रही थीं. एक पुलिस वाले ने रास्ते में उन्हें रोका. उन्होंने गाड़ी का शीशा नीचे किया तो पुलिस वाले ने देखा कि कार के अंदर जो औरत जैसी दिखती औरत बैठी है, वह पूरी तरह औरत भी नहीं है. जैसे ही पुलिस वाले को समझ आया कि वह ट्रांसजेंडर हैं, पुलिस वाले ने पूछा, 'कितना लोगी?' अप्सरा हैरान थीं. ऑडी में बैठी औरत को स्कूटर पर सवार एक पुलिस वाला पूछ रहा था कि तुम एक रात का कितना लेती हो!
ऐसा ही घटना उनके दफ्तर में हुई जब चुनाव के दौरान एक राजनेता ने उनसे खुल कर बोला कि उसका फॉर्महाउस है, वहां पर आ जाओ. अप्सरा का मानना है कि हिंदुस्तान में ट्रांसजेडर एक आम व्यक्ति के रूप में नहीं देखा जाता. हालांकि केन्द्र सरकार की तरफ से पहली बार थर्ड जेंडर के लिए कानून लाने की बात हो रही है लेकिन अप्सरा का मानना है कि उस कानून में बहुत समस्याएं है. सरकारी परिभाषा में अब भी पूरी समझ नहीं है कि ट्रांसजेंडर है कौन. अगर ट्रांसजेंडर की सही पहचान ही नहीं हो पा रही है तो उनके लिए कायदे-कानून कैसे बना दिए गए.
जैसे ट्रांसजेंडर बिल के प्रावधानों के मुताबिक हर जिले में एक स्क्रीनिंग कमेटी बनाई जाएगी जो यह तय करेगी कि कोई शख्स ट्रांसजेंडर है या नहीं. कमेटी में एक हेल्थ ऑफिसर होगा जो इसके लिए एक सर्टिफिकेट देगा.
सुप्रीम कोर्ट ने साल 2015 के अपने फैसले में कहा था कि हर व्यक्ति अपना जेंडर खुद निर्धारित कर सकता है. इसलिए ट्रांसजेंडर समुदाय के लोग और जेंडर एक्टिविस्ट इस बात को लेकर खफा हैं कि दूसरे लोगों का एक समूह किसी का जेंडर कैसे तय कर सकता है.
साथ ही किसी की शारीरिक बनावट या सेक्शुअल ऑर्गन से उसके ट्रांसजेंडर होने या न होने का पता चल जाए, ऐसा भी नहीं है. ऐसे में कमेटी अपना फैसला कैसे लेगी, इस पर सवालिया निशान हैं.
अप्सरा के मुताबिक सरकार ट्रांसजेंडरों के साथ होने वाली यौन हिंसाओं को गंभीरता से क्यों नहीं ले रही है? क्या हिंसा और शोषण उन्हें कम तकलीफ पहुंचाता है? ट्रांसजेंडरों के साथ बलात्कार और यौन उत्पीड़न जैसे मामलों के लिए कड़े कानून नहीं हैं. किसी महिला के साथ यौन उत्पीड़न की सजा सात साल से लेकर उम्रकैद तक है जबकि ट्रांसजेंडर के साथ यौन उत्पीड़न की सजा छह महीने से दो साल तक है.
साथ ही 'फैमिली ऑफ चॉइस' के मुद्दे पर भी सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं. ट्रांसजेंडर बच्चों और किशोरों को अपने परिवार में तरह-तरह की शारीरिक और मानसिक हिंसा का सामना करना पड़ता है. इसलिए वो कई बार अपना घर-परिवार छोड़कर कहीं और चले जाते हैं. नाबालिग ट्रांसजेंडर अपनी मर्जी से जिन परिवार को चुनते हैं उसे 'फैमिली ऑफ चॉइस' कहा जाता है.
बिल के प्रावधान के मुताबिक नाबालिग ट्रांसजेंडर को उस परिवार में रहना होगा जिसमें उसने जन्म लिया है. उन्हें पनाह देने वाली संस्थाओं और लोगों को भी विधेयक में अपराधी ठहराया गया है.
अप्सरा ने ऐसे कई मुद्दों पर विरोध जताया. साथ में ट्रांसजेंडर समुदाय को भी जिम्मेदार माना. उनका मानना है कि कानून और समाज में बदलाव के साथ-साथ सबसे जरूरी है कि ये समुदाय अपने हक के लिए लड़े. यानी ऐसे काम ले जिसमें उन्हें पारंपरिक रूप से अलग पहचान मिले. अभी तक ट्रांसजेंडर समुदाय या तो नाच गाना करके पैसे कमाता है या फिर भीख मांग कर. कोई और काम नहीं मिलता तो ये समुदाय वेश्यावृति की तरफ ज्यादा जाता है. इसलिए जरूरी है कि इस समुदाय बाकी लोगों की तरह काम में लगाया जाए.
अप्सरा का राजनीतिक सफर
अप्सरा ने अपना राजनीतिक जीवन बीजेपी के साथ शुरू किया लेकिन बाद में वो अन्नाद्रमुक से जुड़ीं और वहां पर राष्ट्रीय प्रवक्ता की भूमिका में थीं. जयललिता की मृत्यु के बाद उन्होंने पार्टी छोड़ दी. तमिलनाडु में देश का पहला ट्रांसजेंडर वेलफेयर बोर्ड बनाया गया था. अप्सरा का मानना है कि ट्रांसजेंडर को न्याय तभी मिलेगा जब राजनैतिक तौर पर उन्हें आवाज मिलेगी और तभी संपूर्ण लैंगिक न्याय मिलेगा.
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