महाराष्ट्र की पालघर और भंडारा-गोंदिया लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे आने में अब बस कुछ ही घंटे बचे हैं. जानकारों का मानना है कि इन दोनों सीटों के नतीजे ही 2019 के लोकसभा चुनावों में बनने वाले गठबंधन और बीजेपी के सामने आने वाली चुनौतियों की झलक दिखा देंगे. पालघर सीट बीजेपी सांसद चिंतामन वनगापर के निधन से खाली हुई थी और यहां बीजेपी की सहयोगी शिवसेना ही उससे टक्कर ले रही है. उधर भंडार-गोंदिया में बीजेपी के सामने मजबूत एनसीपी है. यहां कांग्रेस ने अपनी दावेदारी छोड़ते हुए एनसीपी के मधुकर कुकड़े को टिकट दिया है.
पालघर में बीजेपी की इज्ज़त दांव पर
पालघर महाराष्ट्र बीजेपी के लिए कितना अहम चुनाव है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सीएम देवेंद्र फड़नवीस ने खुद पालघर में अपना चुनावी कैंप बनाया हुआ था. बीजेपी के लिए ये सीट अहम इसलिए भी है क्योंकि विधानसभा में उसकी सहयोगी शिवसेना ही यहां उसके खिलाफ मैदान में है. इस लड़ाई में बीजेपी को और बड़ा झटका तब लगा जब चिंतामन वनगा के परिवार ने उसका साथ छोड़कर शिवसेना का दामन थाम लिया. शिवसेना ने वनगा के बेटे श्रीनिवास को ही इस सीट से उम्मीदवार बनाकर मैदान में उतारा है.
उधर बीजेपी ने भी कांग्रेस से टूटकर आए इलाके के कद्दावर आदिवासी नेता राजेंद्र गावित को टिकट देकर लड़ाई को और रोचक बना दिया. हालांकि इस चुनाव का एक तीसरा पक्ष बहुजन विकास आघाडी पार्टी भी है. वसई-विरार और पालघर में सक्रिय बहुजन विकास आघाडी ने भी इन उपचुनावों में बलिराम जाधव को मैदान में उतारा है. कांग्रेस-एनसीपी ने इस सीट पर दामू शिघडा को टिकट दिया है. शिवसेना और बहुजन विकास आघाडी दोनों ही पार्टियां विधानसभा में फड़नवीस सरकार का समर्थन कर रही हैं. 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को करीब 53% वोट मिले थे जबकि दूसरे नंबर पर रही बीवीए को 29% वोटों से संतोष करना पड़ा था.
सीएम खुद तो पालघर में रहे ही साथ ही उन्होंने अपनी कोर टीम को भी पालघर में उतार दिया. इस टीम में में राज्यमंत्री रवींद्र चव्हाण को पालघर चुनाव का प्रभारी बनाया गया. इसके अलावा विधायक मंगलप्रभात लोढ़ा, योगेश सागर, प्रवीण दरेकर, मनीषा चौधरी, संजय केलकर, नरेंद्र मेहता, पास्कल धनारे के नेतृत्व में अलग-अलग टीम बनाकर उन्हें अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों की जिम्मेदारी सौंपी गई है. इनके अलावा बोरीवली के सांसद गोपाल शेट्टी, भिवंडी के सांसद कपिल पाटील और आदिवासी विकास मंत्री विष्णु सावरा को भी विशेष जिम्मेदारियां दी गई हैं. हर विधायक के नेतृत्व में पार्टी ने अपने तीन-तीन सक्रिय कार्यकर्ताओं को चुनाव प्रचार और चुनाव प्रबंधन में लगाया गया. बड़े नेताओं की बात करें तो योगी आदित्यनाथ, स्मृति ईरानी ने भी डहाणु, मनवेल पाड़ा और विरार में जनसभाएं की. इसके अलावा पालघर के आदिवासियों के बीच काम कर रहे और काम कर चुके राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 12-15 प्रचारक और उनके स्वंयसेवकों की टीम ने समानांतर रूप से बीजेपी के पक्ष में काम किया.
क्या है पालघर का गणित
पालघर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में 6 विधानसभा क्षेत्र आते हैं. इनमें से डहाणू, पालघर, बोइसर, नालासोपारा और वसई में बड़ी संख्या में हिंदी भाषी मतदाता हैं. बीजेपी ने अपने चुनावी अभियान में इन मतदाताओं पर फोकस किया है. इन 6 विधानसभा सीटों में से दो पर बीजेपी, एक पर शिवसेना और तीन पर बहुजन विकास आघाडी के विधायक हैं. इस हिसाब से देखा जाए, तो बहुजन विकास आघाडी की ताकत ज्यादा है, हालांकि बहुजन विकास आघाडी को लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र क्षेत्रीय पार्टी होने का नुकसान हो सकता है. बता दें कि पालघर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आनेवाले कई विधानसभा क्षेत्र पहले उत्तर मुंबई लोकसभा क्षेत्र के हिस्सा रहे हैं और इस सीट से पहले बीजेपी के राम नाईक पांच चुनाव जीते हैं. राम नाईक फिलहाल उत्तरप्रदेश के राज्यपाल हैं.
पालघर लोकसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या 15-16 लाख के करीब है. इनमें से करीब 25 फीसदी मतदाता हिंदी भाषी हैं. इनमें उत्तरप्रदेश, बिहार, राजस्थान और गुजरात के लोग शामिल हैं. राजस्थानी और गुजराती मूल के मतदाता मुख्य रूप से व्यापारी हैं और उत्तर प्रदेश और बिहार के बहुसंख्य मतदाता श्रमिक वर्ग के हैं. मुख्यमंत्री फड़नवीस ने बीजेपी के इस परंपरागत वोटबैंक के लिए उत्तर भारतीयों में लोकप्रिय मुंबई बीजेपी के महामंत्री अमरजीत मिश्र को बोइसर को विशेष जिम्मेदारी दी और योगी आदित्यनाथ को भी प्रचार के लिए बुलाया. उत्तरप्रदेश और बिहारी समाज को बीजेपी के पाले में लाने का काम मुंबई बीजेपी के प्रदेश महामंत्री अमरजीत मिश्र के जिम्मे था. उन्होंने नालासोपारा विरार में भोजपुरी फिल्मों के अभिनेता और दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी का रोड शो करवाया बाद में उन्होंने सभा भी की.
बाहरी बनाम स्थानीय की लड़ाई
बीजेपी ने भले ही कांग्रेस नेता राजेंद्र गावित को तोड़कर अपना उम्मीदवार बनाने का दांव खेला है, लेकिन इसके साथ ही पालघर में बाहरी बनाम स्थानीय का मुद्दा गरमाने लगा है. राजेंद्र गावित उत्तर महाराष्ट्र के आदिवासी बहुल जिले नांदुरबार के हैं, जबकि शिवसेना उम्मीदवार श्रीनिवास वनगा स्थानीय हैं. वनगा परिवार पालघर का सम्मानित परिवार भी माना जाता है, ऐसे में उनका जनाधार भी मजबूत है. साथ ही सांसद की मृत्यु से सहानुभूति वोट की संख्या भी बढ़ेगी. पालघर परंपरागत रूप से बीजेपी की सीट रही है और कांग्रेस का भी यहां अपना जनाधार है. स्थानीय स्तर बहुजन विकास आघाडी की भी पकड़ है, लेकिन शिवसेना का कोई मजबूत जनाधार नहीं है.
वोटिंग परसेंट ने बढ़ा दी बीजेपी की चिंता
पालघर लोकसभा मतदान के विधानसभा क्षेत्रवार आकंड़ों पर नजर डाली जाए तो यहां के छह विधानसभा क्षेत्रों में सबसे ज्यादा मतदान विक्रमगढ़ में हुआ. यहां 62.64 प्रतिशत मतदान हुआ है. ये शिवसेना का गढ़ मन जाता है. बीजेपी की बात की जाए तो पार्टी ने नालासोपारा विधानसभा क्षेत्र में सबसे अधिक फोकस किया, लेकिन यहां सबसे कम मतदान हुआ. चुनाव आयोग के मुताबिक, इस इलाके में केवल 34.83 प्रतिशत मतदान हुआ है. जिस दूसरे सबसे बड़े विधनासभा क्षेत्र पालघर विधानसभा में भी 55.75 प्रतिशत मतदान हुआ. ये इलाका भी शिवसेना समर्थक माना जाता है. बीजेपी ने दूसरे इलाकों की तुलना में सबसे ज्यादा जोर वसई विधानसभा क्षेत्र में लगाया था लेकिन यहां भी मतदान 48.40 प्रतिशत रहा. जबकि दो अन्य विधानसभा क्षेत्र जहां बीजेपी और शिवसेना का प्रचार बराबर रहा वो सीटें हैं डहाणू और बोइसर. यहां मतदान क्रमश: 58.98 प्रतिशत और 55.75 प्रतिशत रहा.
जानकारों के मुताबिक बीजेपी और शिवसेना के लिए पालघर में सबसे बड़ी चुनौती बहुजन विकास आघाडी है. बहुजन विकास पार्टी के पास पालघर लोकसभा की 3 विधानसभा सीटें हैं. बलिराम जाधव जो कि उपचुनावों में भी उम्मीदवार हैं, साल 2009 में इस सीट पर कब्जा जमा चुके हैं. साल 2014 की मोदी लहर में वो हार गए थे लेकिन इस बार शिवसेना- बीजेपी अलग हैं. ऐसे में दोनों पार्टियों के लिए यह छोटी पार्टी बड़ी चुनौती है. बहुजन विकास आघाडी के नेता हितेंद्र ठाकुर मतदान से पहले ही दावा कर चुके हैं कि यदि इस क्षेत्र में अगर 45-48 प्रतिशत मतदान हुआ, तो वे यहां से बीजेपी को लीड नहीं लेने देंगे. अगर विक्रम ठीक कह रहे हैं तो बीजेपी के सामने तीसरे नंबर की पार्टी बनने का खतरा भी बना हुआ है.
क्या भंडारा-गोंदिया में कांग्रेस की कुर्बानी रंग लाएगी?
बीजेपी की चुनौती से निपटने के लिए कांग्रेस और एनसीपी एक बार फिर से साथ हैं. महाराष्ट्र की गोंदिया-भंडारा सीट बीजेपी के नाना पटोले के इस्तीफे के बाद खाली हुई है. पटोले ने पीएम मोदी से खुलकर नाराजगी जाहिर की थी और कांग्रेस में शामिल हो गए थे. ये सीट एनसीपी के पास रही है और पटोले के होने के बावजूद भी कांग्रेस ने सीट पर अपना दावा नहीं किया. यहां मुकाबला एनसीपी उम्मीदवार मधुकर कुकड़े और बीजेपी के हेमंत पटले के बीच है. भंडारा गोंदिया के 49 मतदान केन्द्रों पर दोबारा वोटिंग कराई गई है. 28 मई को हुए मतदान के वक़्त यहां की 19% वोटिंग मशीनें ख़राब पाई गईं थीं.
दरअसल, कांग्रेस को आशंका है कि यदि उसने अपने नेता नाना पटोले को इस सीट से चुनाव में उतारा तो एनसीपी के कार्यकर्ताओं का एक धड़ा सहयोग नहीं करता. यही नहीं चर्चा एनसीपी कार्यकर्ताओं द्वारा बीजेपी का सहयोग करने की भी आशंका थी. माना जा रहा है कि इससे बचने के लिए ही कांग्रेस ने इस सीट पर अपना दावा छोड़ दिया. पटोले ने बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर एनसीपी के दिग्गज नेता प्रफुल्ल पटेल को इस लोकसभा सीट पर 2014 के चुनाव में हराया था. इन चुनावों में बीजेपी को करीब 50% वोट मिले थे जबकि एनसीपी के हिस्से सिर्फ 38% वोट आए थे.
एनसीपी प्रत्याशी मधुकर कुकड़े चुनाव लड़ रहे हैं, जो कुनबी समाज से आते हैं. इस सीट पर सबसे ज्यादा कुनबी समाज के मतदाता हैं और नाना पटोले भी कुनबी समाज से आते हैं. पर अब उनके बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में आने के बाद कहा जा रहा है कि कुनबी समाज एक बार फिर एनसीपी का साथ दे सकता है. उधर अपने ही सांसद के आरोपों को झेल चुकी बीजेपी ने गोंदिया-भंडारा में पूरी सतर्कता बरतते हुए अपने पूर्व विधायक हेमंत पटोले को मैदान में उतारा है. हेमंत पटले पोआर समाज से आते हैं और इस लोकसभा क्षेत्र में पोआर समाज का अच्छा दबदबा है. पटले ने भी पूरा चुनाव प्रचार पीएम मोदी और देवेंद्र फड़नवीस के विकास कार्यों पर फोकस रखा.
चुनाव का बहिष्कार का होगा असर
बता दें कि भंडारा गोंदिया लोकसभा सीट के करीब दर्जन भर गांव के लोगों ने इस चुनाव का बहिष्कार भी किया है. स्थानीय संगठन 'बावनथडी प्रकल्प संघर्ष समिति' के तहत ग्रामीणों ने पूर्व में ग्रामसभा की बैठक में पारित प्रस्ताव में कहा था कि यदि उनकी मांग पूरी नहीं होती तो वे क्षेत्र में सभी चुनावों का बहिष्कार करेंगे. उपचुनाव का बहिष्कार करने वाले गांवों में गणेशपुर, पवनारखारी, गोबारवाही, येडारबुकी, सुंदरतोला, सितासावंगी, खैरतोला, गुड्रू और धामलेवाड़ा आदि शामिल हैं. समिति के उपाध्यक्ष शरद खोबारगाड़े ने बताया कि 12 गांवों की कुल जनसंख्या करीब 30 हजार है. ये गांव सिंचाई और पीने के लिए प्रयुक्त होने वाले पानी की समुचित आपूर्ति न होने की समस्या का सामना कर रहा है.
(न्यूज 18 के लिए अमित फ्रांसिस की रिपोर्ट)
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