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MP में 75 फीसदी वोटिंग- कांग्रेस के वनवास के खात्मे का इशारा या फिर शिवराज ने मौके पर चौका मारा?

मध्यप्रदेश में 75 फीसदी वोटिंग का मतलब कहीं ये तो नहीं कि तवे की रोटी अच्छे से पके, कच्ची न छूट जाए?

Updated On: Nov 29, 2018 05:32 PM IST

Kinshuk Praval Kinshuk Praval

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MP में 75 फीसदी वोटिंग- कांग्रेस के वनवास के खात्मे का इशारा या फिर शिवराज ने मौके पर चौका मारा?

मध्यप्रदेश में भारी मतदान हुआ. अबतक के आंकड़ों के मुताबिक मध्यप्रदेश में 75 फीसदी वोटिंग हुई है. ये आंकड़ा बढ़ भी सकता है. लेकिन ये पिछले 25 साल में अबतक का सबसे ज्यादा बढ़ा हुआ वोट प्रतिशत है. इतनी भारी वोटिंग से मध्यप्रदेश की सियासत में एक सस्पेंस गहरा गया है. ज्यादा मतदान को किस तरीके से देखें. क्या ये कांग्रेस के सत्ता के वनवास के खात्मे का इशारा है या फिर शिवराज ने मौके पर चौका मारा है?

पिछले 15 साल में जैसे जैसे वोटिंग प्रतिशत बढ़ा है उससे बीजेपी की सीटों की सख्या ही बढ़ी है उसे घाटा नहीं हुआ है. बीजेपी को ज्यादा मतदान की वजह से  साल 2003 में 173, 2008 में 143 और 2013 में 165 सीटें मिली थीं. लेकिन मध्यप्रदेश में बंपर वोटिंग से कांग्रेस उत्साह में है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ कह रहे हैं कि दो काम शांतिपूर्ण तरीके से निपट गए. एक तो चुनाव और दूसरा बीजेपी.

कमलनाथ के उत्साह के पीछे उनका राजनीतिक अनुभव है. ज्यादा वोटिंग को एंटी इंकंबेंसी यानी सत्ता विरोधी लहर के रूप में देखा जाता है. कमलनाथ को इस भारी मतदान में वही सत्ता विरोधी लहर दिखाई दे रही है कि जो कि साल 2003 में हाईटाइड बनकर उठी थी. तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के सत्ता के 10 साल से कुपित जनता ने 67.41 प्रतिशत वोटिंग की थी. ये साल 1998 के मुकाबले 7 फीसदी ज्यादा वोटिंग थी. बीजेपी ने भारी बहुमत से सरकार बनाई थी. उसी इतिहास को याद करके कांग्रेस इस बार के वोटिंग पैटर्न को भी शिवराज सरकार के 15 साल से जोड़ कर देख रही है.

Digvijay Singh

लेकिन शिवराज के 15 साल और दिग्विजय सिंह के 10 सालों की तुलना नहीं की जा सकती है. आज अगर शिवराज सरकार के खिलाफ मंदसौर के किसानों के आंदोलन को किसानों में आक्रोश के रूप में देखा जा रहा है तो ये भी नहीं भूलना चाहिए कि दिग्विजय के शासन में बैतूल में किसानों पर गोलियां चली थीं. आज अगर शिवराज सरकार पर विकास और बेरोजगारी को लेकर आरोप लगाए जा रहे हैं तो ये भी याद किया जाए कि दिग्विजय के शासन के दौर में शहरों में बिजली गायब रहती थी तो सड़कों की खस्ता हालत खेत-खलिहानों की याद दिलाती थी. दिग्विजय सिंह सरकार के वक्त मध्यप्रदेश सरकार पर खजाना खाली करने तक का आरोप लगा था. कम से कम 15 साल बाद मध्यप्रदेश के ऐसे हाल नहीं हैं.

दिग्विजय सिंह और शिवराज सिंह के दौर में प्रचार और शासन में बहुत फर्क है. दिग्विजय सिंह के सामने बीजेपी की फायरब्रांड नेता उमा भारती ने मोर्चा खोला था. उमा भारती को केंद्र से वाजपेयी और आडवाणी जैसे कद्दावर नेताओं से प्रचार का आशीर्वाद प्राप्त था. दिग्विजय सिंह के प्रति जनता की खुली नाराजगी ने लोगों को घरों से बाहर निकल कर वोट देने के लिए मजबूर किया था. लेकिन शिवराज सिंह चौहान के प्रति न तो ऐसी नाराजगी सूबे में दिखी और न ही कांग्रेस के पास उमा भारती जैसा फायर ब्रांड कोई नेता था जो लगातार मोर्चे पर डटा रहता.

मध्यप्रदेश कांग्रेस के भीतर कमलनाथ और ज्योतिरादित्य के बीच सामंजस्य बिठाने के पीछे महीनों की कवायद है. साथ ही दिग्विजय सिंह कैंप को भी एक तरफ रख कर चुनाव लड़ना बड़ी चुनौती थी. ऐसे में कांग्रेस के लिए 15 साल बाद हाथ आए मौके के बावजूद हालात एकदम मुफीद नहीं माने जा सकते हैं. कहीं न कहीं गुटबाजी अपना रंग दिखा सकती है. जबकि बीजेपी इस मजबूत स्थिति में है कि उस पर बागियों की बगावत से आंच नहीं आएगी. शिवराज सरकार के साथ बीजेपी का संगठन और आरएसस का काडर मजबूती से खड़ा है.

Shivraj Singh Chauhan's rally in Jabalpur Jabalpur: Madhya Pradesh Chief Minister Shivraj Singh Chauhan addresses a rally during his 'Jan Arashirvad Yatra' in Jabalpur, Thursday, Oct 25, 2018. (PTI Photo) (PTI10_25_2018_000119B)

मध्यप्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान ने स्टार प्रचार की भूमिका निभाई. उन्होंने दो महीने में डेढ़ सौ से ज्यादा जनसभाएं की. तो साथ ही पीएम मोदी की रैलियों ने शिवराज सरकार के पक्ष में माहौल बनाने का ही काम किया है. शिवराज सरकार पर लगे आरोपों को सामना करने के लिए मोदी सरकार की विकास की योजनाएं ढाल बनकर खड़ी रहीं. शिवराज सरकार आज बिजली,पानी, सिंचाई, सड़क और दूसरी तमाम लोक कल्याण योजनाओं के जरिए मध्यप्रदेश को बीमारू राज्य से विकसित राज्य में बदलने का श्रेय ले सकती है. ऐसे में ज्यादा वोटिंग को सत्ता विरोधी लहर के रूप में देखने में संशय होता है.

कांग्रेस की तरफ से ये कहा जा रहा है कि पंद्रह साल से शिवराज के शासन से जनता ऊब गई है और बदलाव चाहती है. लेकिन मध्यप्रदेश में 75 फीसदी वोटिंग का मतलब कहीं ये तो नहीं कि जनता चाहती है कि तवे की रोटी अच्छे से पके, कच्ची न छूट जाए?

धीमे मतदान ने अचानक पकड़ी तेजी

जब 28 नवंबर की सुबह मतदान शुरू हुआ तो कई जगहों से ईवीएम में खराबी की शिकायतें आने लगीं. तकरीबन 18 शहरों में 200 से ज्यादा केंद्रों पर ईवीएम और वीवीपैट मशीनों में खराबी की खबरें आईं. नतीजतन मतदान पर भी असर पड़ा. शुरुआत में वोटिंग की रफ्तार धीमी थी लेकिन शाम तक ये रिकॉर्ड बना गई. उससे पहले दिग्विजय सिंह ट्वीट कर ईवीएम के बदलने पर शंका जताते हुए कार्यकर्ताओं से बदली जाने वाली ईवीएम का नंबर लिखने को कह रहे थे तो नई लगाई गई ईवीएम से 50-100 वोट डालकर टेस्टिंग करने की सलाह दे रहे थे.

वो आरोप लगा रहे थे कि जहां-जहां कांग्रेस मजबूत हैं वहीं ईवीएम में खराबी आ रही है. जबकि मध्यप्रदेश में चुनाव प्रचार के मुखिया ज्योतिरादित्य सिंधिया ने दिग्विजय सिंह के ट्वीट से उलट कहा कि कांग्रेस पूरे राज्य में मजबूत है. वो दिग्विजय सिंह के दावे के खारिज कर रहे थे. यानी वोटिंग के दिन भी विचार आपस में मिल नहीं पा रहे थे.

 

एमपी में दिखा पश्चिमी यूपी की वोटिंग सा नजारा

लेकिन खराब ईवीएम की शिकायतों के बावजूद वोटिंग में इजाफे के पीछे क्या वजह है? ये वोटिंग पैटर्न यूपी में साल 2017 के विधानसभा चुनाव के पहले चरण की याद दिलाता है. उस वक्त पश्चिमी यूपी में भी दोपहर तक मतदान की रफ्तार सुस्त थी. लेकिन अचानक गति पकड़ी और पश्चिमी यूपी के शहरों में सबसे ज्यादा वोटिंग हुई. जाट बहुल इलाकों में हुई जबर्दस्त वोटिंग को मुजफ्फरनगर दंगा से जोड़कर देखा गया. ये माना गया कि ऐन मौके पर बीजेपी जाटों को मनाने और ध्रुवीकरण करने में कामयाब हो गई. मतदान केंद्रों पर देखते ही देखते भीड़ जुटना शुरू हो गई.

polling

क्या ध्रुवीकरण ने बदला खेल?

ऐसे में क्या मध्यप्रदेश में भी ज्यादा वोटिंग में कहीं न कहीं ध्रुवीकरण का अक्स दिखाई दे रहा है? क्या ये कांग्रेस नेता कमलनाथ के वायरल वीडियो का साइड-इफैक्ट है? दरअसल, कमलनाथ का एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें वो राज्य के 90 फीसदी मुसलमानों के वोटों की जरूरत पर बात करते दिखाई दे रहे हैं. बाद में बीजेपी ने भी लोगों से 90 फीसदी मतदान करने की अपील कर कमलनाथ को जवाब देने की कोशिश की. क्या कमलनाथ के वायरल वीडियो ने कांग्रेस के मुस्लिम परस्त चेहरे को राहुल गांधी की मंदिर-परिक्रमा के बावजूद उजागर करने का काम किया जिसके चलते मतदान केंद्रों पर ‘जाग’ उठा ‘हिंदू’? क्या बीजेपी के फायर ब्रांड नेता यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की राम के नाम पर अपील ने हिंदुत्व मन को घर से बाहर निकल कर वोट डालने पर मजबूर किया?

3 फीसदी ज्यादा वोटिंग कहीं 3 फीसदी स्विंग तो नहीं?

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को मध्यप्रदेश में सिर्फ 3 से 5 प्रतिशत वोट स्विंग की दरकार है. दरअसल, उन्हें चुनाव का गणित समझाने वालों ने ये बताया है कि साल 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस केवल 8 प्रतिशत वोटों की वजह से सत्ता से चूक गई थी. ऐसे में अगर इस बार 3 से 5 प्रतिशत भी स्विंग हो गया तो कांग्रेस की सरकार पक्की. साल 2013 में बीजेपी को 44.88 फीसदी और कांग्रेस को 36.38 प्रतिशत वोट मिले थे.

पिछले विधानसभा चुनावों के मुकाबले इस बार मतदान में 3 फीसदी की बढ़ोतरी कहीं वो ही स्विंग तो नहीं जिसकी राहुल को तलाश है.  वैसे भी राहुल सरकार बनने पर 10 दिनों में कर्जमाफी का ब्रह्मास्त्र चल चुके हैं.

Rahul Gandhi in Indore Indore: Congress President Rahul Gandhi enjoys snacks Madhya Pradesh Congress President Kamal Nath, State Election Campaign Committee Chairman Jyotiraditya Scindia and other leaders at a restaurant in Indore, Madhya Pradesh, Monday, Oct 29, 2018. (PTI Photo) (PTI10_30_2018_000065B) *** Local Caption ***

मध्यप्रदेश में बीजेपी को चौके की उम्मीद है तो राजस्थान को लेकर वो डबल टर्म का दावा कर रही है. अब 11 दिसंबर को ही पांच राज्यों की सियासी सूरत साफ होगी और तब ये भी साफ होगा कि सरकार बनाने के सर्वे कहां तक नतीजों के करीब पहुंचे. 75 प्रतिशत वोटिंग के बावजूद मामला 50-50 का है. कोई भी सौ प्रतिशत दावा करने की हालत में नहीं है. फिलहाल तवे पर चढ़ी रोटी को देखकर कहा नहीं जा सकता है कि वो जल रही है या फिर कच्ची है.

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