पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान होने के साथ ही सियासी सरगर्मी तेज हो गई है. मध्यप्रदेश, राजस्थान, मिजोरम और तेलंगाना में एक चरण में चुनाव होगा, जबकि नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ में दो चरणों में मतदान कराया जाएगा.
चुनाव आयोग की घोषणा के मुताबिक, छत्तीसगढ़ में 12 और 20 नवंबर को विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होगा. राज्य की कुल 90 सीटों में से नक्सल प्रभावित 12 सीटों के लिए पहले चरण में 12 नवंबर को मतदान होगा, जबकि, बाकी 72 सीटों पर दूसरे चरण में 20 नवंबर को मतदान कराया जाएगा.
मध्यप्रदेश और मिजोरम में एक ही चरण में मतदान 28 नवंबर को जबकि राजस्थान और तेलंगाना में मतदान 7 दिसंबर को एक ही चरण में कराया जाएगा. पांचों राज्यों में वोटों की गिनती एक साथ 11 दिसंबर को होगी. बीजेपी और कांग्रेस के लिहाज से मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान काफी महत्वपूर्ण हो गया है, क्योंकि इन तीनों ही राज्यों में बीजेपी सत्ता में है और कांग्रेस तीनों ही राज्यों में उसे सत्ता से दूर करने की कोशिश में है.
छत्तीसगढ़ में बेहतर हालत में रमन सिंह
बात अगर छत्तीसगढ़ की करें तो यहां रमन सिंह पिछले पंद्रह सालों से राज्य की कमान संभाल रहे हैं. बीजेपी लगातार तीन बार जीत हासिल कर रही है. इस बार भी बीजेपी का ही पलड़ा भारी लग रहा है. बीजेपी की तरफ से एक बार फिर से रमन सिंह का ही चेहरा सामने है जबकि कांग्रेस की तरफ से कोई बड़ा चेहरा सामने नहीं दिख रहा है.
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अजीत जोगी के कांग्रेस से अलग होने के बाद से ही कांग्रेसी खेमे में एक शून्य दिख रहा है, जिसकी भरपाई नहीं की जा सकी है. इसके अलावा रमन सिंह का नक्सल प्रभावित क्षेत्रों और बाकी इलाकों में भी विकास का काम दिख रहा है. 15 सालों से सत्ता में रहने के बावजूद रमन सिंह के खिलाफ राज्य में एंटीइंकंबेंसी फैक्टर नहीं दिख रहा है.
उधर, बीएसपी सुप्रीमो मायावती के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के साथ हाथ मिलाने से एक तीसरी ताकत खड़ी हो गई है. अजीत जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस और बीएसपी के गठबंधन के चलते इस बार कई सीटों पर सियासी गुणा-गणित बिगड़ सकता है. पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच महज एक से डेढ़ फीसदी वोटों का अंतर रहा था. पिछली बार 90 में से 49 सीटों पर बीजेपी और जबकि कांग्रेस 39 सीटों पर जीत पायी थी. अब राज्य में तीसरी ताकत बनने से कांग्रेस को संभावित नुकसान और बीजेपी को संभावित फायदे के कयास लगाए जा रहे हैं.
मध्यप्रदेश में शिवराज को ‘सपाक्स’ से खतरा !
मध्यप्रदेश की बात करें तो यहां कुल 230 सीटों पर बीजेपी ने पिछली बार एकतरफा जीत दर्ज की थी. उस वक्त राज्य में 230 सीटों में से बीजेपी ने 165 जबकि कांग्रेस ने 58 सीटों पर जीत दर्ज की थी. बीएसपी को भी 6 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे और उसके खाते में 4 सीटें भी आई थी.
मध्यप्रदेश में भी बीजेपी पिछले 15 सालों से सत्ता में है जबकि शिवराज सिंह चौहान भी लगभग 12 साल से मुख्यमंत्री रहे हैं. शिवराज सिंह चौहान की छवि की बदौलत बीजेपी पहले चुनावों में बेहतर करती रही है. लेकिन, इस बार विधानसभा चुनाव में उसे कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. 15 सालों की एंटीइंबेंसी का असर दिख रहा है.
इसके बाद एससी-एसटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए संसद से कानून पारित कराने के मुद्दे को लेकर सवर्णों में नाराजगी देखने को मिल रही है. सवर्ण समाज बीजेपी के साथ लगातार जुड़ा रहा है, लेकिन, इस मुद्दे पर उसकी नाराजगी ने बीजेपी की चिंता बढ़ा दी है. प्रमोशन में आरक्षण और एससी-एसटी एक्ट के मुद्दे पर सवर्ण समाज के साथ-साथ पिछड़े तबके के भीतर भी प्रदेश में नाराजगी है.
सवर्ण और पिछड़े समुदाय के लोगों ने मिलकर ‘सपाक्स’ संगठन बनाकर विरोध का स्वर बुलंद किया था. अब सपाक्स ने मध्यप्रदेश की सभी 230 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया है. सपाक्स की चुनावी रणनीति वोटकटवा की भूमिका में उसे सामने ला सकती है. लेकिन, सपाक्स के विरोध ने बीजेपी को ज्यादा परेशान कर दिया है.
उधर, कांग्रेस की कोशिश इस बार राज्य में बीजेपी को उखाड़ फेंकने की है. कांग्रेस को उम्मीद 15 साल के शासन के बाद सत्ता विरोधी रुझान और सपाक्स से ज्यादा है. हालाकि कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को इस बार चुनावों में किनारे कर दिया है. कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया ही इस वक्त कांग्रेस के चेहरे के तौर पर देखे जा रहे हैं.
लेकिन, सबकी नजरें इस बार राहुल गांधी पर हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अब शिवभक्त के बाद रामभक्त के तौर पर नजर आ रहे हैं. मध्यप्रदेश में राहुल सॉफ्ट हिंदुत्व के जरिए बीजेपी को घेरने की तैयारी में हैं.
लेकिन, कांग्रेस के लिए बीएसपी के साथ चुनावी गठबंधन नहीं होना कई जगहों पर मुश्किल में डाल सकता है. मायावती ने कांग्रेस पर उपेक्षा का आरोप लगाकर अलग चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है.
राजस्थान में वसुंधरा के खिलाफ नाराजगी
राजस्थान में बीजेपी के लिए मुश्किलें सबसे ज्यादा हैं. राजस्थान में बीजेपी पांच साल से ही सत्ता में है. लेकिन, वहां स्थानीय मुद्दों को लेकर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ माहौल दिख रहा है. पिछली बार राज्य की 200 सीटों में से बीजेपी को 162 जबकि कांग्रेस को महज 21 सीटें ही मिल पाई थीं. लेकिन, इस बार बीजेपी के लिए मुश्किलें ज्यादा हैं.
अजमेर और अलवर लोकसभा के उपचुनाव में कांग्रेस की बड़ी जीत ने साफ कर दिया है कि 21 सीटों पर सिमटने वाली कांग्रेस ने काफी हद तक अपने-आप को उस दौर से उबार लिया है. वसुंधरा के खिलाफ नाराजगी का फायदा कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उठाकर संगठन को फिर से पटरी पर ला दिया है.
यह अलग बात है कि अगले मुख्यमंत्री के मुद्दे को लेकर अनुभवी गहलोत और युवा पायलट के बीच अंदर खाने खींचतान भी खूब है. फिर भी कांग्रेस राजस्थान में बीजेपी के मुकाबले थोड़ी बेहतर हालत में दिख रही है.
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हालांकि बीजेपी को भी इस बात का एहसास है. यही वजह है कि वसुंधरा राजे के भरोसे ही राजस्थान छोड़ने के बाद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कमान अपने हाथों में ले ली है. अमित शाह लगातार संगठन को चुस्त-दुरुस्त कर चुनाव में पार्टी के बेहतर प्रदर्शन सुनिश्चित करने के लिए राज्य के दौरे पर हैं. राजस्थान में डैमेज कंट्रोल करने की पूरी कवायद बीजेपी कर रही है.
विधानसभा चुनाव का लोकसभा चुनाव पर भी पड़ेगा असर?
दरअसल, पिछली बार मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी बीजेपी की इतनी बड़ी जीत में स्थानीय नेतृत्व के काम और मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में उनकी सरकारों के काम के अलावा मोदी लहर का भी असर था.
उस वक्त देश भर में नरेंद्र मोदी को लेकर लोकप्रियता चरम पर थी. मोदी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनने के बाद मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्सीगढ़ में भी एक संदेश गया कि मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए जरूरी है कि राज्य में चार से पांच महीने पहले होने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बड़ी जीत दिलाई जाए. उसका असर भी हुआ जिसके चलते बीजेपी के पक्ष में विधानसभा चुनाव में इतना बड़ा आंकड़ा दिखाई दे रहा था. इसके बाद लोकसभा चुनाव में भी यही हुआ.
लेकिन, पांच साल बाद इस बार विधानसभा चुनाव में बीजेपी को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. कांग्रेस उलटफेर की उम्मीद लगाए बैठी है. लेकिन, अमित शाह की रणनीति फिर से इन सभी राज्यों में सरकार बनाने की है क्योंकि विधानसभा चुनाव परिणाम का असर अगले साल लोकसभा चुनाव परिणाम पर भी पड़ेगा.
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