मध्यप्रदेश में एट्रोसिटी एक्ट के खिलाफ चल रहे सवर्ण आंदोलन के बीच बहुजन समाज पार्टी ने राज्य की 22 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर कांग्रेस से गठबंधन की अटकलों पर विराम लगा दिया है. बीएसपी ने जिन विधानसभा सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा की है, उनमें कुछ कांग्रेस के कब्जे वाली सीटें हैं. कांग्रेस और बीएसपी के बीच गठबंधन न बन पाने को भारतीय जनता पार्टी की पहली रणनीतिक जीत मानी जा रही है. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के बजाए बीएसपी द्वारा अजीत जोगी की पार्टी से समझौता भी इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि बीजेपी समझौते को रोकने में पूरी तरह से सफल रही है. मायावती सम्मानजनक सीटें लेकर ही कांग्रेस से समझौता करने का एलान कर चुकी थीं. कांग्रेस अपनी शर्तों पर समझौता करना चाहती थी.
समझौते में सिर्फ तीस सीट देना चाहती थी कांग्रेस
मध्यप्रदेश में कांग्रेस और बीएसपी के बीच समझौते की संभावनाएं लगभग समाप्त हो गईं हैं, इस बात का संकेत जारी सूची से भी मिलता है. जारी सूची में बीएसपी ने उन स्थानों पर भी अपने उम्मीदवार घोषित किए हैं, जहां कि वर्तमान में कांग्रेस के विधायक हैं. कांग्रेस के कब्जे वाली ऐसी सीटों की संख्या कुल चार है. इनमें करैरा और चितरंगी को छोड़कर बाकी दो सीटें सामान्य सीटें हैं. करैरा की सीट अनुसूचित जाति तथा चितरंगी की सीट जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं. कांग्रेस के कब्जे वाली जिन सामान्य सीटों पर बीएसपी ने अपने उम्मीदवार घोषित किए हैं उनमें वर्तमान विधानसभा उपाध्यक्ष डॉ. राजेंद्र कुमार सिंह अमरपाटन से विधायक हैं. जबेरा से प्रताप सिंह विधायक हैं.
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कांग्रेस ने कुल तीस सीटें समझौते में देने की रणनीति बनाई थी. प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कमलनाथ इसी रणनीति पर मायावती और एसपी प्रमुख अखिलेश यादव से समझौते की बातचीत कर रहे थे. मायावती पचास से अधिक सीटों की मांग कर रहीं थीं. राज्य में बीएसपी के वर्तमान में कुल चार विधायक हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी को लगभग सात प्रतिशत वोट ही मिले थे. बहुजन समाज पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष प्रदीप अहिरवार कहते हैं कि पार्टी ने तय किया है कि राज्य की सभी 230 सीटों पर उम्मीदवार उतारे जाएंगे. समझौते के सवाल पर भी अहिरवार यही बात दोहराते रहे कि हम सभी सीटों पर उम्मीदवार जल्द घोषित करेंगे.
पिछले विधानसभा चुनाव में बीएसपी ने 227 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे. इनमें 194 उम्मीदवार अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए थे. लगभग दर्जन भर सीटें ऐसी थीं जहां बीएसपी उम्मीदवार दूसरे और तीसरे नंबर पर रहा था. जहां बीएसपी तीसरे नंबर पर थी उनमें अधिकांश पर बीजेपी को लाभ हुआ था. कांग्रेस इसी अंक गणित के आधार पर मायावती के लिए सिर्फ दर्जन भर सीटें ही छोड़ना चाहती थी. समाजवादी पार्टी के लिए भी इतनी ही सीटें कांग्रेस ने तय कर रखी थीं. गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के लिए पांच-छह सीटें कांग्रेस ने चिन्हित की हैं. कांग्रेस ज्यादा सीटें देकर वोटरों के बीच यह संदेश नहीं देना चाहती थी कि वह अपने दम पर सरकार नहीं बना सकती.
सवर्ण आंदोलन भी समझौता न हो पाने की वजह
राज्य में इन दिनों एट्रोसिटी एक्ट के खिलाफ सवर्ण सड़कों पर उतरकर आंदोलन कर रहे हैं. सवर्णों की नाराजगी से बीजेपी को नुकसान होने की संभावना ज्यादा प्रकट की जा रही है. लेकिन, इस बात पर अभी भी संदेह है कि सवर्णों का वोट कांग्रेस के पक्ष में जाएगा. राज्य में कोई ऐसा तीसरा दल नहीं है जो अपने दम पर सरकार बनाने की स्थिति में हो. कांग्रेस के रणनीतिकारों का यह भी मानना रहा है कि मौजूदा हालात में बीएसपी से समझौता न करने से ही सवर्ण मतदाता कांग्रेस के पक्ष में आ सकता है. राज्य में अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित कुल सीटों की संख्या 35 है. इनमें से सिर्फ चार सीटें कांग्रेस के पास हैं.
बीजेपी के पास 28 सीटें हैं. इन सीटों पर सवर्ण, कांग्रेस और बीजेपी में से जिस भी दल के पक्ष में मतदान करेंगे,उसे लाभ हो सकता है. अनुसूचित जाति वर्ग के वोटर को लेकर यह मान्यता है कि वह मायावती के साथ ही रहता है. विधानसभा के पिछले तीन चुनाव में बीएसपी की मौजूदगी का लाभ बीजेपी को मिलता रहा है. बीजेपी के रणनीतिकार लगातार कोशिश कर रहे थे कि कांग्रेस और बीएसपी का समझौता न हो. बीजेपी की कोशिश सफल होती दिखाई दे रही है. बीएसपी की पहली लिस्ट जारी होने के बाद बीजेपी ने सवर्ण वोटरों की नाराजगी दूर करने की कोशिशें तेज कर दी हैं.
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राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने साफ शब्दों में कहा कि सरकार ऐसे निर्देश जारी करेगी, जिससे एट्रोसिटी एक्ट में गिरफ्तारी जांच के बाद ही हो? बीजेपी ने अपने ताकतवर ब्राहण नेताओं को भी सवर्णों को मनाने के लिए सक्रिय कर दिया है. इनमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे एवं मुरैना से सांसद अनूप मिश्रा प्रमुख हैं. बीजेपी चुनाव में स्वर्गीय वाजपेयी के नाम का उपयोग भी लंबे समय बाद कर रही है.
आदिवासी सीटों पर भी कांग्रेस को चोट पहुंचाने की रणनीति
बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवारों की पहली सूची में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित पांच सीटें भी हैं. ये चितरंगी, धोनी, जैतपुर, बांधवगढ़ और सिहोरा हैं. इन सीटों पर बीएसपी का उम्मीदवार होने का सीधा नुकसान कांग्रेस को ही होना है. राज्य के आदिवासी वोटरों पर बीएसपी का कोई खास असर नहीं है. बीएसपी ने क्षेत्र के जातिगत समीकरणों के आधार पर उम्मीदवार घोषित किए हैँ. बीएसपी की पहली सूची में ग्वालियर-चंबल और रीवा-शहडोल संभाग के अलावा बुंदेलखंड की भी कुछ सीटें हैं.
अधिकांश सीटों पर उत्तरप्रदेश की राजनीति का असर देखा जाता है. मायावती ने रीवा-शहडोल संभाग में कुर्मी-पटेल और कोल वोटर को ध्यान में रखकर उम्मीदवार तय किए हैं. सामान्य सीटों पर पिछड़े वर्ग को ज्यादा महत्व दिया गया है. बीएसपी अपना जनाधार बढ़ाने के लिए राज्य में पिछले कुछ दिनों से पिछड़े वर्ग का आरक्षण बढ़ाने की मांग कर रही है. राज्य में आदिवासी और पिछड़ा वर्ग कभी भी अनुसूचित जाति वर्ग के साथ नहीं रहा है.
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