मध्य प्रदेश का विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री पद के चेहरे के बगैर चुनाव लड़ रही कांग्रेस, क्या पूर्व केंद्रीय मंत्री कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया को विधानसभा चुनाव में उतारने जा रही है? राज्य की राजनीति में यह सवाल बहुत तेजी से महत्वपूर्ण होता जा रहा है. कांग्रेस के कार्यकर्ता और नेता यह मानते हैं कि पार्टी के बड़े नेताओं को यदि चुनाव मैदान में उतारा जाए तो पार्टी की सरकार में वापसी हो सकती है.
कमलनाथ-सिंधिया ने की है केंद्र की राजनीति
मध्य प्रदेश कांग्रेस में आधा दर्जन से अधिक कद्दावर नेता हैं. अधिकांश नेता राज्य की दिन प्रतिदिन की राजनीति में लगातार सक्रिय दिखाई देते हैं. लेकिन, पूर्व केंद्रीय मंत्री कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अब तक सिर्फ लोकसभा का चुनाव ही लड़ा है. दोनों ही नेताओं की इच्छा कभी विधानसभा का चुनाव लड़ कर राज्य की सक्रिय राजनीति करने की नहीं रही है. कमलनाथ वर्ष 1980 से मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं. उन्होंने कभी भी राज्य की राजनीति में सक्रिय रहने की इच्छा नहीं दिखाई. चार माह पूर्व पहली बार वे मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के तौर पर राज्य की राजनीति में सक्रिय हुए हैं. कमलनाथ हमेशा ही कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में रहे हैं. उनकी पहचान किंग मेकर की रही है.
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अर्जुन सिंह से लेकर दिग्विजय सिंह तक उन्होंने मुख्यमंत्री के चयन में जरूर सक्रिय भूमिका निभाई. इसी तरह पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी डेढ़ दशक से अधिक की राजनीति में कभी भी विधानसभा का चुनाव नहीं लड़े हैं. सिंधिया ने पिछले चार लोकसभा चुनाव गुना-शिवपुरी सीट से लड़े हैं. सिंधिया ने लोकसभा का पहला उपचुनाव वर्ष 2002 में पिता माधवराव सिंधिया की विमान दुर्घटना में हुई मौत के बाद रिक्त हुई सीट पर लड़ा था. वर्ष 2003 में कांग्रेस राज्य की सत्ता से बाहर हो गई थी. वर्ष 2004 में केंद्र की सरकार में कांग्रेस की वापसी हुई. इस वापसी के बाद कांग्रेस के अधिकांश नेता राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय हो गए.
दिग्विजय ने नहीं लड़ा है वर्ष 2003 के बाद विधानसभा का चुनाव
मध्य प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के अलावा दिग्विजय सिंह, सुरेश पचौरी, प्रतिपक्ष के नेता अजय सिंह और पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव का भी प्रभाव है. सुरेश पचौरी ने भी हमेशा ही राज्यसभा को प्राथमिकता दी है. भोपाल से लोकसभा का चुनाव हार जाने के बाद वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में पहली बार भोजपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा. रायसेन जिले की इस सीट पर पचौरी, सुरेंद्र पटवा से पराजित हो गए थे.
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भी वर्ष 2003 के बाद विधानसभा का या लोकसभा का कोई चुनाव नहीं लड़ा है. वर्ष 2003 में कांग्रेस की सत्ता जाने के बाद से ही दिग्विजय सिंह ने अपनी राजनीति का केंद्र दिल्ली को बना लिया. वर्ष 2013 में दिग्विजय सिंह की विधानसभा सीट राघोगढ़ से उनके पुत्र जयवर्धन सिंह ने विधानसभा का चुनाव जीता.
दिग्विजय सिंह ने अपने आप को चुनाव लड़ने की राजनीति से अलग कर रखा है. कांग्रेस भी अब दिग्विजय सिंह को विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ना चाहती है. संभावना इस बात की व्यक्त की जा रही है कि कांग्रेस लोकसभा चुनाव में राजगढ़ सीट से उन्हें मैदान में उतार सकती है. दिग्विजय सिंह वर्तमान में राज्यसभा के सदस्य हैं.
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राज्य कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद को लेकर चल रही अंदरुनी खींचतान में सुरेश पचौरी खामोशी से एक बार फिर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं. वैसे तो पचौरी लोकसभा का चुनाव होशंगाबाद संसदीय सीट से लड़ना चाहते हैं. परिस्थितियां अनुकूल लगी तो वे एक बार फिर भोजपुर से या किसी अन्य सुरक्षित सीट से विधानसभा का चुनाव भी लड़ सकते हैं. प्रतिपक्ष के नेता अजय सिंह अपनी परंपरागत सीट चुरहट से ही चुनाव लड़ेंगे. अजय सिंह एक बार लोकसभा का चुनाव हार चुके हैं, उनकी कोई दिलचस्पी राष्ट्रीय राजनीति में नहीं है. राज्य में मुख्यमंत्री पद के दावेदार अजय सिंह भी हैं.
प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव पद से हटाए जाने के बाद से नाराज चल रहे हैं. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव और प्रदेश के प्रभारी दीपक बाबरिया उन्हें मनाने की असफल कोशिश भी कर चुके हैं. अरुण यादव वर्ष 2014 का लोकसभा चुनाव खंडवा से हार गए थे. अरुण यादव ने वर्ष 2009 का एकमात्र लोकसभा चुनाव अब तक जीता है. अरुण यादव के भाई सचिन यादव कांग्रेस से विधायक हैं.
मुख्यमंत्री बनना है तो लड़ना होगा विधानसभा का चुनाव
राज्य में यदि कांग्रेस सत्ता में आती है तो मुख्यमंत्री पद के पहले दावेदार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कमलनाथ होंगे. कमलनाथ ने चुनाव संचालन के सारे सूत्र अपने हाथ में ले रखें हैं. पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनाव प्रचार अभियान समिति के प्रमुख हैं. कमलनाथ सभी बड़े नेताओं को साधना के लिए उनके समर्थकों को मनचाहे पद भी दे रहे हैं. कमलनाथ विधानसभा का चुनाव लड़ने पर अभी भी मौन साधे हुए हैं. कमलनाथ छिंदवाड़ा जिले की किसी सुरक्षित सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ सकते हैं. संभावना यह भी प्रकट की जा रही है की कमलनाथ विधानसभा चुनाव में अपने पुत्र नकुल नाथ को डमी के तौर पर उपयोग कर सकते हैं.
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वहीं दूसरी ओर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने यह स्पष्ट संकेत दिए हैं कि पार्टी यदि उन्हें विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए कहती है तो वह इसके लिए तैयार हैं. सिंधिया का प्रभाव ग्वालियर-चंबल संभाग की 34 सीटों के अलावा मालवा, मध्य भारत की दर्जन भर से अधिक सीटों पर है. राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि यदि कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया को विधानसभा चुनाव में उतारा जाता है तो महाकौशल और मध्य भारत क्षेत्र में कांग्रेस को बड़ा फायदा मिल सकता है.
सिंधिया को उज्जैन उत्तर की विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतारे जाने की अटकलें लगाई जा रहीं हैं. उज्जैन सिंधिया परिवार के प्रभाव वाला क्षेत्र माना जाता है. सिंधिया के चुनाव लड़ने का मनोवैज्ञनिक असर मतदाताओं पर पड़ेगा. सिंधिया और कमलनाथ दोनों ही चुनाव नहीं लड़ते हैं तो कांग्रेस को इन दोनों की अनुपस्थिति को लेकर उठने वाले सवालों का जवाब देना मुश्किल होगा. भारतीय जनता पार्टी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान यह प्रचारित कर सकते हैं कि हार के डर से कांग्रेस के बड़े नेता चुनाव मैदान से भाग रहे हैं.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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