लगातार 13 साल से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे शिवराज सिंह चौहान के लिए अपनी लंबी पारी मुसीबत बन गई है. पार्टी में उनके समकालीन और वरिष्ठ नेता टिकट वितरण में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं. पार्टी में टिकट वितरण से पहले विरोध और समर्थन की खुली मुहिम पहली बार देखने को मिल रही है. जनता की कथित नाराजगी के चलते मुख्यमंत्री चौहान को अपनी जन अशीर्वाद यात्रा भी रोकनी पड़ी है.
मौजूदा विधायकों के खिलाफ बीजेपी कार्यालय में हो रही है नारेबाजी
लगातार 15 साल की सत्ता में रहने के बाद भारतीय जनता पार्टी की चाल में भी बदलाव देखने को मिल रहा है. चुनाव के ठीक पहले गुटबाजी और नारेबाजी के जो नजारे कांग्रेस कार्यालय में देखने को मिलते थे अब वह बीजेपी कार्यालय में दिखाई दे रहे हैं. बड़े नेताओं के बीच की गुटबाजी से चुनावी माहौल न बिगड़े इस कारण ही कांग्रेस ने टिकट वितरण की कोई भी कवायद भोपाल में नहीं की. न तो प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने और न ही चुनाव समिति ने टिकट वितरण के अधिकार कांग्रेस अध्यक्ष को देने का कोई प्रस्ताव ही पारित किया.
कांग्रेस की राज्य स्तरीय चुनाव समिति भी नहीं बनाई गई. जबकि बीजेपी में उम्मीदवार चयन को लेकर विधानसभा क्षेत्रवार अपने स्थानीय नेताओं से राय-मशवरा किया जा रहा है. पिछले एक हफ्ते से बीजेपी के प्रदेश कार्यालय दीनदयाल परिसर में टिकट के दावेदारों के बीच खुली गुटबाजी देखी जा रही है.
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वरिष्ठ, कनिष्ठ हर नेता अपने जनाधार का प्रदर्शन समर्थकों के जरिए कर रहे हैं. उम्मीदवारों के चयन को लेकर सबसे ज्यादा समस्या उन स्थानों पर आ रही है जहां पार्टी के कद्दावर नेता हैं. बढ़ती उम्र के कारण मंत्रिमंडल से हटाए गए पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर और पूर्व मंत्री सरताज सिंह, टिकट काटने का खुला विरोध करते हुए दिखाई दे रहे हैं. पूर्व मंत्री सरताज सिंह ने कहा कि सत्तर साल से अधिक उम्र वालों को टिकट न देने का कोई फार्मूला न पहले था और न अब है.
उन्होंने कहा कि पार्टी के सर्वे में जीतने वाले उम्मीदवार के रूप में मेरा नाम आया है, मुझे टिकट मिलनी चाहिए. पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने अपनी बहू कृष्णा गौर का नाम आगे बढ़ाया है. पार्टी में टिकट लेकर चल रहे घमासान के बीच वरिष्ठ नेता रघुनदंन शर्मा ने कहा कि जो चार-पांच बार चुनाव जीत चुके हैं, उन्हें स्वेच्छा से टिकट का दावा छोड़ देना चाहिए. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल के कई सदस्यों का भी पार्टी में खुला विरोध हो रहा है. वन मंत्री डॉ. गौरीशंकर शेजवार का विरोध सांची विधानसभा क्षेत्र के कार्यकर्ता ही कर रहे हैं.
शेजवार पिछले चार दशक से इस क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं. शेजवार ने साल 1977 में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा था. पार्टी अब शेजवार के स्थान पर उनके परिवार के किसी सदस्य को टिकट देना चाहती है. इसका विरोध कार्यकर्ता कर रहे हैं. मुख्यमंत्री के सबसे करीबी माने जाने वाले उद्यानिकी मंत्री सूर्यप्रकाश मीणा को भी अपनी टिकट बचाने के लिए पार्टी मुख्यालय पर समर्थकों के साथ शक्ति प्रदर्शन करना पड़ा. सागर के विधायक शैलेंद्र जैन की टिकट काटने के लिए साधु-संतों ने भी बीजेपी कार्यालय में प्रदर्शन किया है.
13 साल में कई समकालीन नेताओं को घर बैठा चुके हैं शिवराज
शिवराज सिंह चौहान के लगातार मुख्यमंत्री के पद पर बने रहने से बीजेपी के कई कद्दावर नेता हासिए पर चले गए हैं. ये नेता इस बार के विधानसभा के चुनाव में अपने पुनर्वास की अंतिम कोशिश कर रहे हैं. ऐसे नेताओं में पूर्व मंत्री अजय विश्नोई, ढाल सिंह बिसेन, सांसद अनूप मिश्रा, पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा, राघवजी भाई कैलाश विजयवर्गीय का नाम प्रमुखता से लिया जाता है.
लक्ष्मीकांत शर्मा विधानसभा का पिछला चुनाव हार गए थे. वे व्यापमं घोटाले में जेल जा चुके हैं. वे अब पार्टी में अपनी वापसी का प्रयास कर रहे हैं. शर्मा का असर विदिशा संसदीय सीट पर है. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज इस सीट का प्रतिनिधित्व करती हैं. मुख्यमंत्री बनने से पहले शिवराज सिंह चौहान इसी सीट से चुनाव लड़ा करते थे. पूर्व वित्त मंत्री राघवजी भाई पर लगे अप्राकृतिक कृत्य के आरोप के बाद पार्टी ने पिछले चुनाव में उनका टिकट काट दिया था. राघव जी भाई और लक्ष्मीकांत शर्मा पूरे विदिशा जिले की राजनीति पर असर डालने की स्थिति में अभी भी हैं.
राघवजी भाई अपनी बेटी को टिकट दिलाने की कोशिश कर रहे हैं. सांसद अनूप मिश्रा को भी मुख्यमंत्री चौहान ने राज्य की राजनीति से बाहर कर दिया था. वे भी इस चुनाव में राज्य की राजनीति में वापस आने की कोशिश कर रहे हैं. मिश्रा, पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे हैं पिछले 13 सालों में प्रदेश बीजेपी की राजनीति पूरी तरह से शिवराज सिंह चौहान के इर्द गिर्द सिमटकर रह गई है. पार्टी में उनके कद का कोई नेता भी सामने नहीं है.
पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को भी शिवराज सिंह चौहान की राजनीति के कारण ही मंत्री पद छोड़ना पड़ा था. विजयवर्गीय पूरी तरह से राष्ट्रीय राजनीति में जाने के लिए अपने पुत्र को टिकट दिलाना चाहते हैं. विरोध मुख्यमंत्री चौहान की तरफ से ही हो रहा है. पंचायत और ग्रामीण विकास मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर उम्मीदवारों के चयन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं. इसके बाद भी वे अपने पुत्र के टिकट को लेकर आश्वस्त नहीं है. पूर्व मंत्री ढाल सिंह बिसेन, अपना अस्तित्व बचाने के लिए हाल ही में पार्टी में शामिल निर्दलीय विधायक मुनमुन राय को टिकट देने का विरोध कर रहे हैं. एक दौर में इन सभी नेताओं के नाम मुख्यमंत्री पद की दौड़ में सुनाई देते थे.
जन आशीर्वाद यात्रा को बीच में ही रोकना पड़ा है
पार्टी में टिकट को लेकर चल रही मारामारी के कारण मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को अपनी जन आशीर्वाद यात्रा को चुनाव प्रक्रिया के बीच में ही खत्म करना पड़ा है. मुख्यमंत्री चौहान जुलाई माह से ही जन आशीर्वाद यात्रा के जरिए चुनाव प्रचार कर रहे थे. अचार संहिता लगने के बाद यात्रा में अचानक भीड़ घट गई. भीड़ घटने की दो वजह सामने आई हैं.
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पहली वजह प्रशासन ने यात्रा से पूरी तरह से दूरी बना ली है. दूसरी वजह सवर्णों की नाराजगी का है. मुख्यमंत्री चौहान अपनी इस यात्रा के जरिए 187 विधानसभा सीटों पर प्रचार कर चुके हैं. मुख्यमंत्री की इस यात्रा के कारण उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया भी प्रभावित हो रही थीं. चुनाव से जुड़ी अन्य तैयारियों पर इसका असर पड़ रहा था. लिहाजा यात्रा को रोकने का फैसला लिया गया.
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