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मध्य प्रदेश चुनाव 2018: शिवराज का पीछा नहीं छोड़ेगा मंदसौर आंदोलन में मारे गए किसानों का भूत

जून 2018 में हुए मंदसौर आंदोलन के दौरान जिन 6 किसानों की मौत हुई थी, उनके गांव ने बीजेपी को वोट ना करने का फैसला किया है

Updated On: Nov 27, 2018 03:35 PM IST

Nitesh Ojha

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मध्य प्रदेश चुनाव 2018: शिवराज का पीछा नहीं छोड़ेगा मंदसौर आंदोलन में मारे गए किसानों का भूत

इसी साल जून महीने में मध्य प्रदेश के मंदसौर में किसानों ने खेती से जुड़ी समस्याओं के चलते प्रदर्शन किया था. इस प्रदर्शन में पुलिस की गोलीबारी में छह किसानों की मौत हो गई थी. ये सभी किसान मल्हारगढ़ विधानसभा के अलग-अलग गांवों के रहने वाले थे. उन्हीं में से एक किसान थे टकरावद गांव के पुनमचंद पाटीदार (बबलू).

बबलू की छह जून को पुलिस गोलीबारी में मौत हो गई थी. उनकी मृत्यु के बाद गांव के लोगों ने उनकी याद में गांव के बीचों-बीच एक प्रतिमा बनवाई है. बबलू की प्रतिमा के साथ ही पाटीदार बहुल इस गांव के लोगों ने सरदार वल्लभ भाई पटेल की मूर्ति भी स्थापित की है.

गांव वालों ने उठाया जैन आयोग पर सवाल

इस गांव में राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार के खिलाफ काफी गुस्सा हैं. मृत किसान बबलू के बड़े पापा बालाराम कहते हैं कि सरकार ने अभी तक हमारे साथ न्याय नहीं किया है. बालाराम किसान गोलीबारी कांड पर गठित किए गए जैन आयोग पर भी सवाल खड़े करते हैं.

बालाराम कहते हैं कि जैन आयोग का हम खंडन करते हैं. उन्होंने बताया कि वे खुद गवाही देने इंदौर और भोपाल तक गए थे. लेकिन उसकी जांच रिपोर्ट से वह सहमत नहीं हैं. उनका कहना है कि रिपोर्ट को प्रभावित करने के लिए उन लोगों का बयान दर्ज किया गया जिसका इस आंदोलन से संबंध ही नहीं था. जबकि कई प्रत्यक्षदर्शियों से तो बात ही नहीं की गई.

ऐसे ही एक प्रत्यक्षदर्शी और मृतक बबलू के दोस्त डॉक्टर कांतीलाल पाटीदार हैं. वह बताते हैं कि जब बबलू को गोली लगी तब वे उसके साथ ही थे. उन्हीं ने बबलू के घाव से निकल रहे खून को रोकने के लिए उसमें रूमाल ठूंसा था. डॉ कांतीलाल ही गाड़ी पर बिठा कर बबलू को अस्पताल ले कर गए थे. कांतीलाल भी जैन आयोग पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि प्रत्यक्षदर्शी होने के बावजूद किसी ने भी मुझसे संपर्क करने की कोशिश नहीं की.

बबलू क्या संघ से जुड़ा था?

इसी के साथ कांतीलाल कहते हैं कि वह बीजेपी के कार्यकर्ता रह चुके हैं. लेकिन सरकार का किसानों के प्रति ऐसे रवैये के कारण उनका विश्वास पार्टी से उठ गया है. कांतीलाल के मुताबिक बबलू राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का कार्यकर्ता था. वह सभाएं भी करता था. लेकिन उसकी मृत्यु के बाद एक भी कार्यकर्ता उनके घर नहीं आया. वहीं संघ के मुखिया मोहन भागवत ने भी एक शब्द तक नहीं कहा.

मृतक बबलू के बड़े पापा बालाराम पाटीदार और टकरावद गांव के लोग

मृतक बबलू के बड़े पापा बालाराम पाटीदार और टकरावद गांव के लोग

बबलू के आंदोलन में जाने के कारणों से संबंधित सवाल पर कांतीलाल बताते हैं कि बबलू की फसल के तीन चेक अटके हुए थे. नोटबंदी के कारण वह क्लियर नहीं हो पा रहे थे. इसी दरमियान उसकी मां का ऑपरेशन भी होना था. उसने बाजार से पैसा उठा कर अपनी मां का ऑपरेशन करवाया. पैसे की तंगी के कारण वह आंदोलन में शामिल हुआ और गोलीकांड का शिकार हो गया.

बबलू के साथ आंदोलन में गए हितेश पाटीदार का कहना है कि क्षेत्र के विधायक और बीजेपी नेता जगदीश देवड़ा एक बार भी उसकी बूढ़ी मां को देखने नहीं गए. मुआवजा तो मिल गया लेकिन इंसानियत भी तो कोई चीज होती है. उनके साथ खड़े और लोग कहते हैं कि रात 11 बजे जब सारा गांव सो जाता है तब प्रचार के लिए देवड़ा आए थे. दिन में आने की उनकी हिम्मत नहीं होती.

हालांकि गांव के लोग बताते हैं कि बबलू की मौत के बाद कांग्रेस के नेता कई बार उसकी मां से मिलने आए. लेकिन बीजेपी नेता तो सिर्फ मौत के समय ही आए थे.  गांववालों के मुताबिक मुआवजे के एक करोड़ रुपए तो मिल गए लेकिन किसानों की समस्या जस की तस है.

बीजेपी को नहीं देंगे वोट

बबलू के बड़े पापा बालाराम का कहना है कि गांव में रविवार को एक बैठक हुई थी. जिसमें यह निर्णय लिया गया कि गांव से बीजेपी को वोट नहीं दिया जाएगा बाकी किसी भी पार्टी को वोट देने के लिए लोग स्वतंत्र हैं. उन्होंने कहा कि किसानों की उस बैठक में लगभग सभी लोग इस बात से सहमत दिखे.

अब देखना यह होगा कि मल्हारगढ़ से लगातार दो बार से विधायक रहे जगदीश देवड़ा का चुनावी रथ इस बार टकरावद किसानों के विद्रोह के चलते रुकेगा या नहीं. और क्या किसान आंदोलन के जख्म राज्य से शिवराज सिंह चौहान सरकार को उखाड़ फेकेंगे या चुनावी वादों की आड़ में किसानों की शहादत का मुद्दा भी दब जाएगा. इसका निर्णय तो 11 दिसंबर को मतगणना के दिन ही होगा.

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