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मध्य प्रदेश में चुनाव सिर पर आ गया और कांग्रेस CM कैंडिडेट में उलझी है

राज्य के ज्यादतर छोटे कार्यकर्ताओं की मांग सिंधिया को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करने की है.

Updated On: Jul 05, 2018 07:03 PM IST

Dinesh Gupta
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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मध्य प्रदेश में चुनाव सिर पर आ गया और कांग्रेस CM कैंडिडेट में उलझी है

मध्यप्रदेश में विधानसभा के आम चुनाव होने की घोषणा में सौ से भी कम दिन बाकी हैं. लगातार पंद्रह साल से सत्ता से बाहर कांग्रेस अब भी मुख्यमंत्री पद के चेहरे में उलझी हुई है. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव एवं राज्य के प्रभारी दीपक बाबरिया अपने बयानों के जरिए चेहरे की लड़ाई को और बढ़ा रहे हैं. बाबरिया अपने आपको महत्वपूर्ण दिखाने के लिए कभी मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करते हैं तो कभी उपमुख्यमंत्री का चेहरा भी घोषित कर देते हैं. बाबरिया के मुताबिक राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी तो मुख्यमंत्री कमलनाथ अथवा ज्योतिरादित्य सिंधिया मुख्यमंत्री बन सकते हैं.

अभी मैदान में नहीं दिख रही कांग्रेस

इस बार चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी की सरकार के खिलाफ नाराजगी कहीं-कहीं देखने को मिल रही है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी घोषणाओं के जरिए हर वर्ग को साधने की कोशिश में लगे हुए हैं. राज्य में विधानसभा की कुल 230 सीटें हैं. इनमें अनुसूचित जाति की 35 और जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 47 है. भारतीय जनता पार्टी ने अपने नाराज कार्यकर्ताओं को मनाने के लिए दिग्गज नेताओं को जिलेवार जिम्मेदारी सौंप दी हैं.

पार्टी के संगठन महामंत्री रामलाल भी प्रदेशभर का दौरा कर कार्यकर्ताओं को चुनाव के लिए तैयार कर रहे हैं. पार्टी वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव के जरिए वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव की जमीन तैयार कर रही है. कांग्रेस के दिग्गज नेताओं को उनके प्रभाव क्षेत्र में ही घेरने की रणनीति पर भी काम हो रहा है. दूसरी और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस अपने अंदरूनी मतभेदों को ही नहीं सुलझा पा रही है. प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कमलनाथ दो माह बाद भी प्रदेश कार्यसमिति की घोषणा नहीं कर पाए हैं. बीस जिलों के अध्यक्ष जरूर बदल दिए हैं.

कमलनाथ के सामने सबसे बड़ी चुनौती गांव-गांव में कांग्रेस का संगठन खड़ा करने की है. पंद्रह साल सरकार से बाहर रहने के कारण कई विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस के पास वजनदार चेहरे भी नहीं हैं. मैदानी स्तर पर संगठन कमजोर होने के कारण प्रचार अभियान भी शुरू नहीं कर पा रहे हैं.

KAMAL nath

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव प्रचार अभियान समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया है. पिछले माह उन्होंने मालवा अंचल के तीन जिले उज्जैन, इंदौर एवं धार में सभाएं की थीं. इसके बाद से वे भी हवा का रुख भांपने की कोशिश कर रहे हैं. राज्य में सिंधिया अकेले कांग्रेस ऐसे नेता हैं, जिनकी सभाओं में भीड़ आ जाती है.

सिंधिया का चेहरा भारतीय जनता पार्टी की चिंता भी बढ़ा देता है. कमलनाथ ने अब तक प्रदेश के किसी भी अंचल का कोई दौरा नहीं किया है. उनका अधिकांश समय भोपाल और दिल्ली में गुजर रहा है. प्रदेश कांगे्रस कमेटी के अध्यक्ष के नाते कमलनाथ अपने आपको मुख्यमंत्री पद का सबसे मजबूत दावेदार भी मानते हैं. यही कारण है कि वे पार्टी को चुनाव के मुकाबले में खड़ा करने के लिए अपने आर्थिक संसाधन भी भरपूर लगा रहे हैं.

राहुल गांधी घोषित नहीं करना चाहते है मुख्यमंत्री का चेहरा

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष राहुल गांधी, कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया दोनों को ही बराबरी पर रखकर चल रहे हैं. दोनों ही मुख्यमंत्री बनने की इच्छा रखते हैं. कमलनाथ वर्ष 1993 में भी राज्य के मुख्यमंत्री बनना चाहते थे. लेकिन, उस वक्त तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहाराव ने उन्हें केन्द्र सरकार में ही बने रहने के लिए कहा था.

दिग्विजय सिंह राज्य के मुख्यमंत्री बन गए थे. दिग्विजय सिंह दस साल राज्य के मुख्यमंत्री रहे. वर्ष 2003 से कांग्रेस सत्ता से बाहर चल रही है. कमलनाथ ने इन पंद्रह सालों में कई बार राज्य कांग्रेस की कमान संभालने की इच्छा जाहिर की लेकिन पार्टी नेतृत्व तैयार नहीं हुआ.

पहली बार कमलाथ प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हुए हैं. बताया जाता है कि कमलनाथ के दबाव में ही राहुल गांधी ने राज्य में मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया है. पार्टी कमलनाथ को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर चुनाव में कोई खतरा नहीं उठाना चाहती है. पार्टी को अंदेशा है कि यदि एक चेहरे को आगे कर चुनाव लड़ा गया तो पार्टी की हार तय है.

राज्य में कांग्रेस कई गुटों में बटी हुई है. दिग्विजय सिंह और सुरेश पचौरी का भी अपना गुट है. राहुल गांधी ने पार्टी के हर बड़े नेता को अलग-अलग जिम्मेदारी देकर एकता की कोशिश जरूर की है लेकिन यह कोशिश सफल होती दिखाई नहीं दे रही है. पार्टी की पूरी राजनीति कमलनाथ और सिंधिया के इर्द-गिर्द सिमट गई है.

दीपक बाबरिया के बयानों से भी बढ़ रही है गुटबाजी

कांगे्रस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मोहन प्रकाश के स्थान पर दीपक बाबरिया को मध्यप्रदेश कांगे्रस का प्रभारी महासचिव बनाया. बाबरिया गुजरात मूल के हैं. गुजरात में जब विधानसभा चुनाव चल रहे थे, उस वक्त बाबरिया मध्यप्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन की इबारत लिख रहे थे. कमलनाथ को अरुण यादव के स्थान पर अध्यक्ष बनाया गया था. बाबरिया ने अरुण यादव को भी इस बात की भनक नहीं लगने दी थी कि पार्टी उन्हें अध्यक्ष पद से हटा रही है.

अरुण यादव को पद से हटने की सूचना कमलनाथ की नियुक्ति के साथ ही मिली थी. पार्टी द्वारा भरोसे में न लिए जाने से अरुण यादव नाराज हो गए. उनकी नाराजगी अभी भी बनी हुई है. दिग्विजय सिंह उन्हें लगातार मनाने में लगे हुए हैं.

इधर, दीपक बाबरिया राज्य भर में घूम रहे हैं. लगातार बैठकें भी कर रहे हैं. इन बैठकों में बाबरिया मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री का राग छेड़ कर नेताओं की महत्वाकांक्षाओं को जागृत करने का काम भी कर रहे हैं. अनुसूचित जाति मोर्चा की बैठक में उन्होंने ऐलान कर दिया कि प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष सुरेन्द्र चौधरी भी राज्य के उपमुख्यमंत्री बन सकते हैं. बाबरिया के इस ऐलान से कमलनाथ समर्थक नाराज हो गए.

राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री सज्जन वर्मा ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि बाबरिया की जुवां पर राहुल गांधी के स्वर होते हैं वे यह भी घोषित कर दें कि मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा? सज्जन वर्मा को अपने इस सवाल का जवाब भी जल्दी मिल गया. बाबरिया ने कहा कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनती है तो कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया में से कोई अध्यक्ष बन सकता है. बाबरिया के इस बयान के बाद राज्य कांगे्रस में चल रहे एकता के प्रयासों को जबरदस्त धक्का लगा है.

दिग्विजय ने कहा मेरी मर्जी है, मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहता

Digvijaya Singh

कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के अलावा मुख्यमंत्री पद के अन्य दावेदार प्रतिपक्ष के नेता अजय सिंह, पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुरेश पचौरी और अरुण यादव हैं. अरुण यादव पिछड़ा वर्ग का होने के कारण अपना दावा बनाकर रखे हुए हैं. जबकि अजय सिंह प्रतिपक्ष के नेता के कारण दावेदार हैं. सुरेश पचौरी चुनाव परिणाम का इंतजार कर रहे हैं. वर्तमान में वे कमलनाथ और सिंधिया के साथ मिलकर काम करहे हैं. पार्टी ने उन्हें चुनाव की रणनीति बनाने की जिम्मेदारी दी है.

पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने मुख्यमंत्री पद की दावेदारी से अपने आपको दूर रखा है. उन्होंने साफ तौर पर कहा कि यह मेरी मर्जी है कि मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहता. कांग्रेस पार्टी ने उन्हें विभिन्न गुटों के नेताओं के बीच समन्वय सथापित करने की जिम्मेदारी सौंपी है. दिग्विजय सिंह एक दर्जन से अधिक जिलों का दौरा कर चुके हैं. वे कांग्रेसियों को एक करने के लिए उन्हें अन्न-जल की कसम भी दिला रहे हैं. राज्य के ज्यादतर छोटे कार्यकर्ताओं की मांग सिंधिया को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करने की है.

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