संसद के मॉनसून सत्र के पहले दिन संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार ने लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन को संबोधित करते हुए उनसे अनुरोध किया, ‘आप विपक्षी दलों के अविश्वास प्रस्ताव को मंजूर कर लीजिए. कई विपक्षी पार्टियों ने सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव मूव किया है. अब दूध का दूध और पानी का पानी साफ हो जाएगा.’
अनंत कुमार के इस अनुरोध पर लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने कहा कि हमने अविश्वास प्रस्ताव मंजूर कर लिया है. अब इसी हफ्ते शुक्रवार यानी 20 अगस्त को अविश्वास प्रस्ताव पर बहस और मतदान होगा.
सरकार के खिलाफ आठ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था. जिसमें पहला प्रस्ताव टीडीपी सांसद के. श्रीनिवास की तरफ से लाया गया था. इसके अलावा टीडीपी के ही टी नरसिम्हन, एनसीपी के तारिक अनवर, सीपीएम के मो. सलीम, कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे और के सी बेनुगोपाल और आरएसपी के एऩ के प्रेमचंद्रन की तरफ से भी अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था.
स्पीकर ने सबसे पहला अविश्वास प्रस्ताव मंजूर किया है. यानी चर्चा की शुरुआत आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य के दर्जे के मुद्दे पर होगी. अविश्वास प्रस्ताव मंजूर किए जाने और सरकार की तरफ से इसके लिए दो-दो हाथ करने की तैयारी ने मॉनसून सत्र को गरमा दिया है. वर्षाकालीन सत्र में पहले से ही कई ऐसे मुद्दे हैं जिन मुद्दों पर सरकार और विपक्ष में तकरार शुरू हो गई है. अब अविश्वास प्रस्ताव मंजूर होने के बाद लोकसभा में बहस और चर्चा के दौरान एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला और तेज होने वाला है.
संसद का पिछला सत्र भी हंगामे की भेंट चढ़ गया था. पिछले सत्र के दौरान टीडीपी ने आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर खूब हंगामा किया था. पार्टी की तरफ से अविश्वास प्रस्ताव भी लाया गया था. लेकिन, एआईएडीएमके समेत कई दूसरे दलों के हंगामे के चलते ना ही संसद की कार्यवाही चल पाई और ना ही अविश्वास प्रस्ताव पर बहस ही हो पाई.
हालांकि उस वक्त विपक्ष की तरफ से सरकार पर जानबूझकर संसद में हंगामे को शह देने का आरोप भी लगाया गया.
टीडीपी की तरफ से अविश्वास प्रस्ताव लाने के बाद कांग्रेस ने भी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था. कांग्रेस को लगा कि टीडीपी आंध्र प्रदेश के मुद्दे पर सियासी फायदा उठा सकती है, तो उसने और भी कई मुद्दों को लेकर सरकार के खिलाफ एक और अविश्वास प्रस्ताव ला दिया था.
लेकिन, यह बात पिछले सत्र की है. नए सत्र के पहले ही दिन सरकार के अनुरोध और स्पीकर की हामी के बाद अविश्वास प्रस्ताव पर बहस की जमीन तैयार हो गई है.
कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी मॉनसून सत्र के पहले ही दिन सरकार के खिलाफ हमला बोलते हुए कहा,‘देश भर में इस सरकार के नेतृत्व में किसान आत्महत्या कर रहे हैं और हर दिन महिलाओं से रेप हो रहा है, हम आपके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश कर रहे हैं.’
कांग्रेस के तेवर से साफ है कि देश भर में किसानों की आत्महत्या का मुद्दा हो या महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा या फिर मॉब लिंचिंग का मुद्दा इन सबी मुद्दों पर वो सरकार को घेरने की तैयारी में है. इस कोशिश में कांग्रेस अकेले नहीं है. उसके साथ सभी विपक्षी दल भी हैं. मॉनसून सत्र के पहले ही दिन मॉब लिंचिंग के मुद्दे पर हो-हंगामा भी हुआ, इस पर सरकार को घेरा भी गया.
रांची में स्वामी अग्निवेश के साथ मारपीट का आरोप बीजेपी युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं पर लगा है. वो भी ठीक उसी दिन जिस दिन सुप्रीम कोर्ट ने मॉब लिंचिंग के मुद्दे पर कड़ा तेवर दिखाया है. ऐसे में इस मुद्दे को उठाकर विपक्ष सरकार को कठघरे में खड़ा करने की तैयारी में है.
विपक्ष की तरफ से महंगाई, बेरोजगारी समेत साढ़े चार साल की मोदी सरकार की नाकामियों को लेकर सरकार को घेरने की कोशिश हो रही है. विपक्ष लगातार यह आरोप लगा रहा है कि पिछले साढे चार साल के कार्यकाल में सरकार ने कुछ नहीं किया. बस दावा भर किया जा रहा है.
अब लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान विपक्ष की कोशिश इन सभी मुद्दों पर सरकार को घेरने की होगी. खासतौर से इस बात पर सबकी नजर टिकी होगी कि अगर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी चर्चा में शामिल होते हैं तो सरकार के खिलाफ उनका क्या तेवर रहता है.
आखिर क्यों सरकार अविश्वास प्रस्ताव पर हुई राजी
दरअसल, देश भर में सरकार के खिलाफ विपक्षी दलों की तरफ से हमले जारी हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर लेफ्ट, टीएमसी, एसपी और बीएसपी सबकी तरफ से सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला जा रहा है. सरकार पर हर मुद्दे पर विफल रहने का आरोप भी लग रहा है.
ऐसे में सरकार के खिलाफ एक माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है. लेकिन, सरकार को लगता है कि सदन में अविश्वास प्रस्ताव पर बहस होती है तो उस दौरान वह अपनी बात सदन के माध्यम से देश के लोगों तक पहुंचा सकती है. खासतौर से सरकार अपनी उपलब्धियों के अलावा विपक्षी दलों के आरोपों पर एक-एक कर जवाब दे सकेगी. सरकार के रणनीतिकारों को लगता है कि इससे सरकार के पक्ष में माहौल बनाने में मदद मिलेगी. उन्हें लगता है कि सदन में बहुमत साबित करने के बाद बढ़े मनोबल के साथ सरकार फिर से विपक्ष पर हमला भी बोलेगी और लोकसभा चुनाव को लेकर अपनी तैयारी को नए तरीके से धार दे पाएगी.
एनडीए से टीडीपी अलग हो चुकी है. शिवसेना सरकार में शामिल होते हुए भी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है. ऐसे में बीजेपी को अपनी सहयोगी शिवसेना को अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग के दौरान साधना होगा. हो सकता है कि शिवसेना सदन में वोटिंग के वक्त हिस्सा ही ना ले. फिर भी सरकार के लिए परेशानी की बात नहीं है. उसे भी पता है कि उसके पास अपने बलबूते ही बहुमत है. एआईएडीएम उसके खिलाफ नहीं जा सकती. लिहाजा वो सदन में बहुमत साबित करने को लेकर आश्वस्त है.
यही भरोसा संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार की बातों से झलक रहा है जब वो दूध का दूध और पानी का पानी सामने आने की बात कर रहे हैं.
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