सियासत विज्ञान से अधिक लाभ-हानि के गणितीय सूत्र पर चलती है इसीलिए सियासी गठबंधन में नेताओं की आपसी केमिस्ट्री से अधिक ठोस पॉलिटिक्स बॉन्ड मायने रखता है. बीते शुक्रवार को आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर अखिलेश यादव और मायावती की दिल्ली में मुलाकात हुई. एसपी-बीएसपी नेताओं के मुताबिक, दोनों दलों के बीच यूपी की 80 सीटों पर सीट बंटवारे को लेकर आम सहमति बन गई है.
फिलहाल गठबंधन की तस्वीर में कांग्रेस के लिए जगह तय नहीं हुई है. दिलचस्प बात ये है कि एसपी-बीएसपी गठबंधन के बीच एक बार फिर पूर्वांचल के अंसारी बंधुओं को लेकर पेंच फंस गया है. सूत्र बताते हैं कि अंसारी बंधुओं को लेकर अखिलेश-मायावती में अभी सहमति नहीं बन पाई है.
अंसारी बंधुओं के प्रति मायावती का सॉफ्ट कॉर्नर
बीएसपी प्रमुख मायावती का मुख्तार समेत अंसारी बंधुओं के प्रति सॉफ्ट कार्नर किसी से छिपा नहीं है, विशेषकर अफजाल, सिबगतुल्ला और अब्बास अंसारी तो मौजूदा दौर में बीएसपी की पूर्वांचल में रीढ़ की तरह हैं. अफजाल अंसारी तो पूर्वांचल में बीएसपी की मजबूत पहचान भी हैं लेकिन अफजाल अंसारी के छोटे भाई माफिया डॉन भाई मुख्तार अंसारी को लेकर एसपी-बीएसपी के बीच असमंजस है.
अंसारी बंधुओं को लेकर भले ही बीएसपी प्रमुख और नेताओं को कोई परहेज ना हो लेकिन समाजवादी पार्टी के नए दौर के नेता सहज नहीं हैं. गौरतलब है कि यूपी विधानसभा चुनाव से ठीक पहले समाजवादी कुनबे में शुरू हुई रार-तकरार के पीछे एक वजह अंसारी बंधु भी थे. कुनबे में रार के दौरान एकबार अंसारी बंधुओं को समाजवादी पार्टी में लिया गया फिर उन्हें पार्टी से बाहर निकाला गया.
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साथ ही विधानसभा चुनाव में अंसारी बंधुओं को हराने के लिए अखिलेश यादव की तरफ से हर फितरत आजमाई गई. नतीजा यह हुआ कि अंसारी बंधुओं के हाथ से उनकी पारंपरिक गाजीपुर की मुहम्मदाबाद विधानसभा सीट छीन गई. मुख्तार अंसारी को भी मऊ सदर सीट पर पटखनी देने की पूरी कोशिश हुई लेकिन मुख्तार अंसारी अपनी मऊ सदर सीट पर कब्जा बरकरार रखने में कामयाब रहे थे. तमाम जद्दोजेहद के बीच अंसारी बंधु मायावती के पलकों पर छा गए.
पूर्वांचल की जिम्मेदारी अंसारी बंधुओं के हाथों में
मायावती ने बतौर तोहफा अफजाल अंसारी और उनके भतीजे अब्बास अंसारी को पूर्वांचल में बड़ी जिम्मेदारी दी या ये कहें तो ज्यादा सटीक होगा कि पूर्वांचल में बीएसपी की बागडोर को अंसारी बंधुओं के हाथों में दे दिया. इस महागठबंधन की कसती गांठ के बीच पिछली बार का अंसारी बंधुओं के खिलाफ लगाए गए अखिलेश यादव का नो एंट्री का बोर्ड इस बार भी पीछा नहीं छोड़ रहा है. इसीलिए संख्या आधारित बंटवारे पर तो सहज सहमति बन जाने के बावजूद भी पूर्वांचल और अंसारी बंधुओं की सीटों को लेकर अभी सहमति नहीं बनी है.
अंसारी बंधु भी अखिलेश के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी से असहज हैं. असल में पिछले चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ बात बिगड़ जाने के बाद अंसारी बंधुओं के निशाने पर अखिलेश रहे. अफजाल अंसारी ने बात बिगड़ने के पीछे अखिलेश यादव को खुलकर जिम्मेदार बताया था. एसपी से दुत्कारे जाने के बाद थके-हारे अंसारी बंधुओं को मायावती ने हाथों-हाथ लिया. दरअसल पूर्वांचल में कमजोर होती बीएसपी की मजबूती के लिए मायावती को अंसारी बंधुओं का बेसब्री से इंतजार था. लिहाजा मायावती ने पूर्वांचल में उनके प्रभाव को देखते हुए दांव लगाया है, जो बहुत हद तक सफल भी रहा.
पूर्वांचल के 5 जिलों के अतिरिक्त सबसे अहम वाराणसी में भी अंसारी बंधुओं का प्रभाव किसी से छिपा नहीं है. मुख्तार अंसारी ने जेल में रहते हुए बीएसपी के टिकट पर वाराणसी से 2009 का लोकसभा चुनाव लड़ा और बीजेपी के कद्दावर नेता मुरली मनोहर जोशी को कड़ी टक्कर दी. मुरली मनोहर जोशी को महज 17, 211 वोटों से जीत मिली. जोशी के 30.52 फीसदी वोटों की तुलना में मुख्तार को 27.94 फीसदी वोट मिले थे. मुख्तार की वाराणसी में हार भले हो गई लेकिन पिछले चार चुनावों में उन्हें मऊ से विधानसभा का चुनाव निर्दल जीतने में कोई परेशानी नहीं हुई.
मुस्लिम वोटर बीएसपी की तुलना में एसपी के लिए ज्यादा सॉफ्ट
मायावती इस बात को साफ जानती हैं कि मुख्तार के वोटर को बाहुबली कहे जाने से कोई परहेज नहीं है क्योंकि पूर्वांचल के वोटों का एक बड़ा तबका उन्हें रॉबिन हुड के रूप में देखता है और वैसे ही उन्हें चुनावों में प्रोजेक्ट भी किया जाता है. इसके साथ ही यह भी समझना जरूरी है कि अब भी मुस्लिम वोटरों में बीएसपी की तुलना में समाजवादी पार्टी के प्रति झुकाव अधिक है.
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इसकी कई वजहें हैं, एक बड़ी वजह है मायावती का बीजेपी के साथ गठबंधन का इतिहास. मुस्लिम वोटरों में आज भी यह संदेह कायम है कि सीटों की कमी पड़ी तो मायावती फिर से बीजेपी का साथ जुड़ सकती हैं. ऐसा हुआ तो वो ठगे जाएंगे और इसीलिए वो इस स्थिति से बचने के लिए समाजवादी पार्टी को अपनी पहली प्राथमिकता में रखते हैं. अंसारी बंधुओं की वजह से यह संदेह बहुत हद तक कम हो जाता है.
पूर्वांचल की दर्जनों विधानसभा सीटों पर अंसारी बंधुओं की रणनीति मायने रखती है. पूर्ववर्ती चुनावों में भी वह उम्मीदवारों के चयन में अपना दखल देते रहे हैं और टैक्टिकल राजनीति का सहारा लेकर विरोधियों से हिसाब भी चुकता करते रहे हैं.
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अखिलेश यादव के रणनीतिकारों को लगता है कि अंसारी बंधुओं के साथ होने से 'काम बोलता है' के नारे को नुकसान पहुंच सकता है. अखिलेश यादव फिलहाल अंसारी बंधुओं को लेकर किंकर्तव्यविमूढ़ की दशा में हैं वो इस बात को भी समझने में जुटे हैं कि कहीं चाचा शिवपाल ही मुस्लिमपरस्ती दिखाकर समाजवादी मुस्लिम वोट बैंक को खिसका न दें. फिलहाल मायावती और अखिलेश में चुनावी गणित भले सध गई हो पर अंसारी बंधुओं की वजह से केमिस्ट्री में लोचा बरकरार है .मन मुताबिक इंप्रूवमेंट नहीं हो रहा है....!
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