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जिस मैदान में ममता संग विपक्षी दलों ने भरी थी हुंकार, वहीं से चुनावी आगाज करेंगे वामपंथी

एक-एक कर उनके हाथों से राज्यों की सत्ता की कमान छूटते जा रही है ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वामदलों का डूबता सूरज लोकसभा चुनाव में उदय हो सकेगा?

Updated On: Feb 03, 2019 03:02 PM IST

FP Staff

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जिस मैदान में ममता संग विपक्षी दलों ने भरी थी हुंकार, वहीं से चुनावी आगाज करेंगे वामपंथी

कोलकाता में जिस मैदान पर लगभग दो सप्ताह पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने  एक विशाल विपक्षी एकता रैली आयोजित की थी, अब वहीं वाम मोर्चा ने 'लोक ब्रिगेड' की बैठक आयोजित की है. यहीं से लोकसभा चुनाव के लिए वाम दलों के अभियान की शुरुआत होगी.

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व नेता कन्हैया कुमार, जिन पर देशद्रोह का आरोप भी लगा है, रैली को संबोधित करने वाले थे. लेकिन अस्वस्थ होने के कारण वह इस रैली में हिस्सा नहीं ले पाएंगे. रिपोर्ट के मुताबिक इस रैली में भाग लेने के लिए पश्चिम बंगाल के लाखों वाम मोर्चा समर्थक आ रहे हैं.

रैली के प्रचार-प्रसार के लिए वामपंथियों ने बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया है. इस कार्यक्रम को संबोधित करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्जी की भारी मांग उठ रही थी. सीपीएम के सूत्रों ने बताया कि वह भी स्वस्थ्य नहीं हैं, लेकिन इस कार्यक्रम में भाग लेंगे. हालांकि पहले तय किया गया था कि उनका संदेश इस मंच से पढ़ा जाएगा.

क्या वामदलों का डूबता सूरज आगामी चुनावों में उदय हो पाएगा?

वाम दल राज्य के साथ-साथ केंद्र में भी सत्ता में वापसी करने की कोशिश कर रहे हैं, मालूम हो कि अभी वह सिर्फ केरल में ही सत्ता में हैं. केरल में सत्तारूढ़ सीपीआईएम नीत लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (LDF) ने पिछले साल दिसंबर में स्थानीय निकायों के उपचुनावों में 39 में से 21 सीटें हासिल की थीं.

हालांकि पिछले साल हुए चुनावों के दौरान वामपंथियों के हाथ से त्रिपुरा भी निकल गया था. बीजेपी ने 25 साल से राज्य की सत्ता में आसीन माणिक सरकार के शासन का खात्मा किया था. साथ ही वामदलों के उभरते नेता कन्हैया कुमार और अन्य पूर्व छात्र नेताओं पर फरवरी 2016 में संसद हमले के मास्टरमाइंड अफजल गुरु की फांसी के खिलाफ कॉलेज परिसर में एक कार्यक्रम आयोजित करने का आरोप है.

ऐसे में आगामी चुनावों में वामदलों की वापसी बिलकुल भी आसान नहीं होने वाली है. एक-एक कर उनके हाथों से राज्यों की सत्ता की कमान छूटते जा रही है ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वामदलों का डूबता सूरज लोकसभा चुनाव में उदय हो सकेगा?

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