लोकसभा चुनाव में अब कुछ ही महीने शेष बचे हैं. इसे लेकर तमाम राजनीतिक पार्टियों और गठबंधन और अपनी-अपनी तैयारियों में जुट गए हैं. एनडीटीवी के अनुसार ममता बनर्जी की कोलकाता में हुई रैली के जवाब में पटना में एनडीए की रैली होगी. इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान एक मंच पर दिखेंगे.
नीतीश ने रविवार को पटना में हुई पार्टी की बैठक में इस बात का ऐलान किया. नीतीश की इस घोषणा को विपक्षी पार्टियों के उभरते गठबंधन को जबाव देने की कोशिश के रूप में देखा रहा है. वहीं लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी भी अपने सहयोगियों के साथ खड़ा होकर राजनीतिक संदेश देना चाहती है.
दरअसल लंबे अंतराल के बाद ऐसा होगा जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार इक्टठे किसी रैली को संबोधित करेंगे. हालांकि इस रैली की तारीख तय नहीं है, लेकिन बीजेपी सूत्रों के अनुसार 24 फरवरी या 3 मार्च को यह कार्यक्रम हो सकता है.
बीजेपी और जेडीयू के बीच हाल ही में बिहार में लोकसभा की 17-17 सीटों पर चुनाव बढ़ने पर सहमति बनी थी.
नीतीश और मोदी का एक मंच पर साथ आना इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि वर्ष 2002 के गुजरात दंगों के बाद नीतीश ने बीजेपी लीडरशिप से स्पष्ट रूप से कहा था कि नरेंद्र मोदी को कैंपेन के लिए बिहार नहीं आना चाहिए. इसके बाद 2005 और 2010 विधानसभा चुनाव में मोदी प्रचार के लिए बिहार नहीं आए. मोदी 2009 के लोकसभा चुनाव का प्रचार करने भी बिहार नहीं गए थे.
नीतीश कुमार ने 2013 में BJP और NDA से तोड़ लिया था नाता
बता दें कि 2013 में नीतीश कुमार ने बीजेपी से नाता तोड़ लिया था. नीतीश ने तब कहा था कि बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया है, इसलिए वो उसके साथ अपना गठबंधन जारी नहीं रख सकते. इसके बाद दोनों पार्टियों ने 2014 का लोकसभा चुनाव अलग-अलग होकर लड़ा था.
इसके बाद 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार में जमकर जुबानी तीर चले थे. दोनों ने मंच से एक-दूसरे के खिलाफ खूब जहर उगला था. मोदी ने अपनी चुनावी रैली में नीतीश के डीएनए पर सवाल खड़े किए थे, जिसे लेकर खूब हो-हल्ला मचा था. नीतीश ने बाद में इसे बिहार की अस्मिता के साथ जोड़ दिया था.
विधानसभा चुनाव में मिली जीत के बाद आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस ने महागठबंधन कर बिहार में सरकार बनाई. हालांकि यह सरकार डेढ़ साल से कुछ अधिक समय तक ही चल सकी और जुलाई 2017 में नीतीश कुमार वापस एनडीए में लौट आए. उन्होंने लालू यादव और उनकी पार्टी पर काम नहीं करने देने का आरोप लगाया.
नीतीश कुमार ने मोदी सरकार के नवंबर, 2016 में देश में लागू किए नोटबंदी फैसले का समर्थन किया था. हालांकि, बाद में उन्होंने इसके लागू होने में आई खामियां को लेकर सरकार का विरोध किया था.
हालांकि एनडीए में दोबारा लौटने के बाद भी जेडीयू का बीजेपी के साथ कुछ मुद्दों पर विरोध बरकरार है. इनमें राम मंदिर मुद्दा और नागरिकता संशोधन विधेयक प्रमुख है. ज़ी न्यूज के मुताबिक जेडीयू ने इसी महीने खत्म हुए संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान राज्यसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक (एनआरसी बिल) का विरोध किया था.
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