उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनकी पार्टी बीजेपी ने राज्य के किसानों का 36,359 करोड़ रुपयों की कर्ज माफी कर बड़ी राजनीतिक बाजी मारी है. मंगलवार को राज्य कैबिनेट की पहली बैठक के बाद इसका एलान किया गया. ये सियासी दांव के तौर पर तो बहुत अच्छा है, मगर अर्थशास्त्र के नजरिए से बेहद घातक कदम है. इससे बैंकिंग सेक्टर पर भारी बोझ पड़ेगा.
आदित्यनाथ सरकार ने किसानों के लिए जिस पैकेज का एलान किया है, उसमें प्रदेश के 2.15 करोड़ किसानों के 36,359 करोड़ का कर्ज माफ किया गया है. इसमें से 30,729 करोड़ का कर्ज एक लाख रुपए तक का है. बाकी के 5,630 करोड़ रुपए वो हैं जो बैंकों के खाते में एनपीए के तौर पर दर्ज हैं. किसानों की कर्ज माफी का वादा खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान किया था.
माफी के इंतजार में कर्ज नहीं चुकाएंगे
यूपी सरकार के इस कदम का असर क्या होगा? तस्वीर कुछ इस तरह हो सकती है. जिन लोगों ने बैंकों से कर्ज लिए हैं, वो उसे चुकाएंगे नहीं क्योंकि उन्हें उम्मीद जग गई है कि आगे चलकर उनके कर्ज भी माफ हो सकते हैं. बैंकों ने इस वक्त उत्तर प्रदेश में 86,214.20 करोड़ रुपए के कर्ज यूपी के छोटे किसानों को दिए हुए हैं. इसका औसत 1.34 लाख प्रति किसान बैठता है.
इस तरह की कर्ज माफी से बैंकों के कृषि ऋण देने की व्यवस्था पर और बोझ बढ़ेगा. जिसके बाद बैंक उन लोगों को कर्ज देने से कतराएंगे, जो पुराना कर्ज नहीं चुका रहे हैं. बहुत से बैंकों के लिए किसानों को दिया गया कर्ज बड़ा सिरदर्द है.
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एक सीनियर बैंक अधिकारी कहते हैं कि 2008 में यूपीए सरकार ने किसानों के 70 हजार करोड़ के कर्ज माफ किए थे. इसी तरह 2014 में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्य की सरकारों ने किसानों के कर्ज माफ किए थे. इसका बैंकिंग पर बहुत बुरा असर देखने को मिला. बैंकों को अपना हिसाब-किताब साफ करने में बरसों लग जाते हैं. कर्ज लेने वाले और बैंक के बीच भरोसा भी इससे कमजोर होता है.
बैंक के सीनियर अधिकारी कहते हैं कि कृषि ऋण के नाम पर लिए जाने वाले हर लोन को खेती में ही इस्तेमाल नहीं किया जाता. चूंकि कृषि ऋण सस्ता होता है, तो इसके नाम पर कर्ज लेकर लोग उसका दूसरा इस्तेमाल भी करते हैं. ऐसे लोन भी अगर एक लाख से कम के हैं तो उन्हें भी यूपी सरकार ने माफ कर दिया है.
किसान बॉन्ड जारी करेगी यूपी सरकार
इस कर्ज माफी के लिए यूपी सरकार को केंद्र से कोई मदद नहीं मिलेगी. इसलिए रकम का इंतजाम राज्य सरकार को खुद ही करना होगा, ताकि वो बैंकों को ये रकम चुका सके. आदित्यनाथ सरकार ने कहा है कि वो पैसे जुटाने के लिए किसान बॉन्ड जारी करेगी. पुराने तजुर्बे बताते हैं कि इस तरह से जुटाई गई रकम बैंक तक पहुंचने में बहुत वक्त लेती है. इससे बैंकों का बोझ बढ़ता ही है.
स्टेट बैंक की हालिया रिसर्च में इस बारे में चेतावनी दी गई है. रिपोर्ट के मुताबिक बैंकों पर इस कर्ज माफी से 27,420 करोड़ का बोझ पड़ेगा. यूपी सरकार का 2017 के वित्त वर्ष में सालाना राजस्व 3 लाख 20 हजार 244 करोड़ रूपया था. इसमें से अगर वो 27,420 करोड़ रुपए कर्ज माफी पर खर्च करेगी, तो ये कुल राजस्व का 8 फीसद बैठता है. हालांकि ये शुरुआती अनुमान हैं. ये रकम बढ़ेगी, ये बात भी तय है. इससे राज्य की वित्तीय हालत पर भी बुरा असर पड़ेगा. यूपी सरकार को हालात से निपटने के लिए किसान बॉन्ड से बेहतर विकल्प तलाशने होंगे, तभी उसकी आमदनी बढ़ेगी और वो किसानों का कर्ज चुका सकेगी.
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उत्तर प्रदेश की माली हालत पहले से ही बेहद खराब है. राज्य का वित्तीय घाटा पिछले चार साल से लगातार बढ़ ही रहा है. इसके बाद अब किसानों की कर्ज माफी और दूसरे सियासी फैसलों, मसलन अवैध बूचड़खानों की बंदी का राज्य की आर्थिक हालत पर और भी बुरा असर पड़ेगा.
राज्य के जीडीपी का 3 फीसदी घाटा
स्टेट बैंक ने राज्य की आर्थिक हालत पर जो रिपोर्ट तैयार की है, उसके मुताबिक, 'राज्य का वित्तीय घाटा 415 सौ करोड़ रुपये का है, जो राज्य के जीडीपी का लगभग 3 फीसदी है. इसके बाद सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करने से इस पर और बोझ बढ़ेगा, फिर अब किसानों की कर्ज माफी का दबाव भी राज्य के खजाने पर पड़ेगा. हो सकता है कि दूसरे राज्य भी यूपी की राह पर चलने की कोशिश करें'.
उत्तर प्रदेश सरकार के एलान के बाद पंजाब और तमिलनाडु में इसकी मांग हो सकती है. मद्रास हाई कोर्ट ने पहले ही तमिलनाडु सरकार से किसानों के कर्ज माफ करने को कहा है. अदालत ने को-ऑपरेटिव सोसाइटी और बैंकों को निर्देश दिया है कि वो किसानों से कर्ज न वसूलें. अदालत ने ये भी कहा कि किसानों की कर्ज माफी से जो बोझ पड़ेगा वो केंद्र सरकार को भी साझा करना चाहिए. यानी कर्ज के मामले पर अनुशासन को अदालत ने भी उठाकर फेंक ही दिया है.
कर्ज माफी हमेशा ही खराब नहीं होती. बेहद बुरे आर्थिक हालात में कई बार कर्ज माफी जरूरी भी हो जाती है. जैसे कुदरती आफत के दौरान अगर फसलों को भारी नुकसान हो तो कर्ज माफी से किसानों को बड़ी राहत मिलती है. मगर इसे चुनाव जीतने के हथकंडे के तौर पर नहीं इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
कर्ज माफी का विरोध करते रहे हैं बैंक
यही वजह है कि रिजर्व बैंक और दूसरे बैंक कर्ज माफी का विरोध करते रहे हैं. पिछले महीने ही स्टेट बैंक की प्रमुख अरुंधती भट्टाचार्य ने कर्ज माफी को लेकर चेतावनी दी थी. उन्होंने कहा था कि ऐसे कदम से लोग कर्ज चुकाने से कतराएंगे. भट्टाचार्य ने कहा कि कर्ज माफ करने से एक बार तो सरकार किसानों की तरफ से पैसे भर देती है. मगर उसके बाद जब किसान कर्ज लेते हैं तो वो अगले चुनाव का इंतजार करते हैं, इस उम्मीद में कि शायद उनका कर्ज माफ हो जाए. अरुंधती भट्टाचार्य का कहना बिल्कुल सही है.
2014 में रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने सवाल उठाया था कि कर्ज माफी के ऐसे फैसले कितने कारगर रहे हैं? तमाम रिसर्च ये कहते हैं कि कर्ज माफी बुरी तरह नाकाम रही है. ऐसे फैसलों के बाद किसानों को कर्ज मिलने में भी दिक्कत होती है.
बैंकों से कर्ज नहीं मिलता तो किसान साहूकारों से पैसे उधार लेते हैं. इस पर उन्हें ब्याज के तौर पर भारी रकम चुकानी पड़ती है. उनका तनाव भी बढ़ता है और आर्थिक बोझ भी लेकिन किसान इस खतरे को भांप नहीं पाते. उन्हें तो मुफ्त में मिलने वाले पैसों का लालच ही ज्यादा दिखता है.
ऐसे हालात में जो लोग वक्त पर पैसे चुका देते हैं, वो भी बैंकों को पैसा नहीं लौटाते. जब आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में किसानों के कर्ज माफ हुए थे, तो क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने इस फैसले का बैंकिंग व्यवस्था पर बुरा असर पड़ने की चेतावनी दी थी.
कर्ज माफी से सियासी फायदा
इंडिया रेटिंग्स ने कहा था कि, 'कर्ज माफी की ऐसी योजनाओं से सियासी फायदा होता है. इसलिए दूसरे राज्य भी इसकी नकल करेंगे. जिन राज्यों में चुनाव होने वाले हैं, उन पर इसका ज्यादा दबाव होगा'.
ऐसे फैसलों के वक्त अक्सर एक सवाल पूछा जाता है. जब बड़े उद्योगपतियों के कर्ज माफ किए जा सकते हैं, तो किसानों के क्यों नहीं? लेकिन एक गलती को दूसरी गलती के लिए जायज नहीं ठहराया जा सकता. अगर कारोबारियों ने बैंकों को बेवकूफ बनाया है और बैंक के अफसर इस धोखाधड़ी में शामिल रहे हैं, तो इसकी पड़ताल होनी चाहिए. पैसे वसूले जाने चाहिए. कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए. ये तो नहीं किया जा सकता कि वो गलती दोहराई जाए.
इस बात का पता लगाने की जरूरत है कि किसानों को कर्ज माफी की जरूरत क्यों है? साफ है कि पैसे की कमी ही इसकी वजह नहीं. खेती और इससे जुड़े हुए सेक्टर को बैंकों ने सबसे ज्यादा कर्ज बांटे हुए हैं. इसकी बड़ी वजह ये भी है कि हर साल केंद्रीय बजट में बैंकों के लिए किसानों को कर्ज बांटने के टारगेट तय किए जाते हैं. इसके बाद किसानों के कर्ज पर ब्याज भी कम होता है और कई बार ब्याज भी माफ कर दिया जाता है.
उपज की सही कीमत मिले
अगर किसानों की मदद करनी है तो ऐसे तरीके अपनाए जाने चाहिए जिससे उन्हें नुकसान न हो. सरकार को ये कोशिश करनी चाहिए कि किसानों को उनकी उपज की सही कीमत मिले. बाजार तक उनकी पहुंच हो. वो दलालों के चक्कर में न फंसें.
कर्ज माफ करने के बजाय सरकार उन्हें मुफ्त में खाद, बीज और खेती में इस्तेमाल होने वाली मशीनें मुहैया कराएं. नाबार्ड जैसी संस्थाओं के जरिए उन्हें सस्ती दरों पर कर्ज भी मुहैया कराया जाना चाहिए. कर्ज माफी किसानों की दिक्कतों का कोई हल नहीं.
36 हजार करोड़ का कर्ज माफ कर के आदित्यनाथ ने राजनीतिक तौर पर बाजी भले ही मार ली हो, मगर अर्थव्यवस्था के लिए ये तगड़ा झटका है.
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