पुडुचेरी में उपराज्यपाल किरण बेदी को एक विधायक को बताए बिना उनके चुनाव क्षेत्र में सभा करना भारी पड़ गया. अब सब पार्टियां मिल कर उन्हें हटाने की मांग कर रही हैं और इस सिलसिले में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के पास एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजने का फैसला हुआ है.
यह फैसला मंगलवार को हुई एक सर्वदलीय बैठक में लिया गया जिसका एकमात्र एजेंडा उपराज्यपाल के कामकाज के तौर-तरीके पर चर्चा करना था.
मुख्यमंत्री के संसदीय सचिव के लक्ष्मीनारायण का कहना है, 'पुदुचेरी में लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार के पास पूरे अधिकार हैं लेकिन उपराज्यपाल सरकार के कामकाज में बाधा डाल रही हैं.'
क्या है विवाद
इस पूरे फसाद की शुरुआत पिछले हफ्ते उस वक्त हुई जब म्यूनिसिपैलिटी कमिश्नर आर चंदिराशेखरन ने कथित रूप से मुदालियारपेट में एक सार्वजनिक बैठक बुलाई. इस बैठक का मकसद क्षेत्र में नागरिक मुद्दों की चर्चा करना था.
लक्ष्मीनारायण कहते हैं, 'यह बैठक स्थानीय विधायक ए भास्कर की जानकारी के बिना बुलाई गई जिन्हें बाद में इस बैठक के बारे में पता चला तो उन्होंने चंदिराशेखरन से पूछा कि उन्हें क्यों नहीं बुलाया गया.'
इसके बाद चंदिराशेखरन ने विधायक के खिलाफ पुलिस में एक शिकायत दर्ज करा दी. आरोप है कि यह शिकायत उपराज्यपाल के कहने पर दर्ज कराई गई और इसमें भास्कर पर चंदिराशेखरन को धमकाने के आरोप लगाए गए हैं.
विधानसभा के सत्र में भी इस बैठक का मुद्दा उठा. विधानसभा अध्यक्ष वी वैथिलिंगम ने कहा कि जब तक चंदिराशेखरन विशेषाधिकार समिति के सामने पेश होकर अपने कदम को उचित न ठहरा दें तब तक म्युनसिपैलिटी कमिश्नर के तौर पर उनकी नियुक्ति पर रोक लगा देनी चाहिए.
इसी के साथ मुख्य सचिव ने एक अंतरिम कमिश्नर की नियुक्ति कर दी. लक्ष्मीनारायण बताते हैं, 'अगर सरकारी कर्मचारी को कोई निर्वाचित अधिकारी धमकी देता है तो उसे अपने वरिष्ठ अधिकारी से अनुमति लेनी पड़ती है और पुलिस में शिकायत दर्ज कराने से पहले उन्हें मुख्य सचिव की अनुमति लेनी चाहिए थी.'
वे आगे कहते हैं- 'स्पीकर ने उस अधिकारी का तबादला नहीं किया है और न ही मुख्य सचिव ने उसकी जगह ली है. विशेषाधिकार समिति की बैठक होने तक यह एक अस्थायी व्यवस्था थी.'
सदन की अवमानना
सोमवार को जब प्रभारी कमिश्नर अपनी ड्यूटी पर पहुंचे तो उन्हें पता चला कि चंदिराशेखर भी ड्यूटी पर पहुंचे हुए हैं. इस बीच उपराज्यपाल ने अपने सचिव के हस्ताक्षर वाला एक नोट भेजा जिसमें मुख्य सचिव के फैसले को पलट दिया गया था. नोट में मुख्य सचिव से जवाब भी मांगा गया था.
इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष ने आदेश दिया जिसके तहत चंदिराशेखरन और उपराज्पाल के सचिव थेइवा नीथी दास सदन की अवमानना के घेरे में आ गए. विशेषाधिकार समिति ने दोनों को बुलाया है और अवमानना का नोटिस भी भेजा गया है.
मंगलवार को सर्वदलीय बैठक बुलाई गई जिसमें उपराज्यपाल के तौर-तरीकों पर चर्चा हुई. बैठक के बाद मुख्य विपक्षी पार्टी ऑल इंडिया एनआर कांग्रेस के प्रतिनिधि टीपीआर सेलवम ने पत्रकारों को बताया, 'यह पहला मौका नहीं है जब उपराज्यपाल ने एक चुनी हुई सरकार के फैसले को पलटा है. हम विधानसभा और उसके सदस्यों की शक्तियों और विशेषाधिकारों की रक्षा करना चाहते हैं.'
इसके बाद लगभग 21 पार्टियों ने बैठक के प्रस्ताव को मंजूर किया लेकिन बीजेपी और पीएमके बैठक में मौजूद नहीं थीं.
टकराते रहे हैं सींग
वरिष्ठ पत्रकार आर राजेशखर कहते हैं कि यह पहला मौका नहीं है जब उपराज्पाल और चुनी हुई सरकार के बीच समस्याएं पैदा हुई है. 2016 में जब से नई सरकार ने सत्ता संभाली है तभी से दोनों के बीच किसी न किसी मुद्दे पर विवाद होता रहा है.
राजेशखर कहते हैं, 'इसी साल की शुरुआत में मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल के बीच एक अफसर के निलंबन को लेकर विवाद हुआ था. अफसर पर आरोप था कि उसने राजनिवास से चलने वाले एक व्हाट्सएप ग्रुप पर एक आपत्तिजनक वीडियो भेजा था. तब से हालात खराब ही हुए हैं.'
बात इतनी बढ़ गई कि मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल दोनों ने दिल्ली का दौरा किया और उपराज्यपाल ने जनता के नाम लिखे एक पत्र में कहा कि वह साल 2018 में इस्तीफा दे देंगी.
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राजशेखर के मुताबिक तब से फाइलों के आवागमन और हार्बर से जुड़े कॉन्ट्रैक्ट्स को लेकर विवाद होते रहे हैं. वह कहते हैं (मुख्यमंत्री) नारायणसामी विभिन्न वकीलों और सलाहकारों से मशविरा करते रहे हैं ताकि जान सकें कि पुदुचेरी की चुनी हुई सरकार से जुड़ी कितनी ताकतें उन्हें प्राप्त हैं.
वैसे, इस मामले में उपराज्यपाल ने खुद सचिव के आदेश को रद्द करने वाले नोट पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं बल्कि उन्होंने अपने सचिव के हस्ताक्षर करवाए हैं.
पलटवार
लक्ष्मीनारायण कहते हैं, 'उपराज्यपाल अपने आदेश ट्विटर, व्हाट्सएप और अन्य सोशल मीडिया माध्यमों के जरिए जारी करती रही हैं. अभी तक कई फाइलें मंजूरी के लिए पड़ी हुई हैं और कुछ अधिकरियों को उन्होंने इतनी ताकत दे दी है कि वे कोई कदम उठाते समय अपने वरिष्ठों से सलाह मशविरा करने की जरूरत भी नहीं समझते हैं.'
उनके मुताबिक, 'उपराज्यपाल और चुनी हुई सरकार के कामकाज के बीच एक स्पष्ट रेखा होनी चाहिए.'
उधर किरण बेदी ने ट्विटर पर ही पलटवार किया है. पांच अप्रैल को किए एक ट्वीट में वह लिखती हैं, 'मुख्य सचिव के गैर-जिम्मेदाराना और अपरिपक्व व्यवहार से पुदुचेरी के शासन में भारी रोष और दरार आई है.'
एक अन्य ट्वीट में उन्होंने कहा, 'बार-बार मैं स्पष्ट तौर पर इस बात को देख रही हूं कि क्यों भारत कमजोर है जबकि जनसंख्या से हिसाब से वह फायदे में है. यह प्रशासन का दोष है. ऊपर बैठे हुए लोग ही सही नहीं हैं.'
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