कुमार विश्वास ने अरुण जेटली के नाम माफीनामा भेजकर उनसे माफी मांग ली है. मगर इससे उनके और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बीच मतभेद खुलकर सामने आ गई है. सोमवार को कुमार विश्वास के लिखे माफी से भरे खत को जेटली के वकीलों ने स्वीकार कर लिया और लंबे समय से चले आ रहे मानहानि मामले का अंत हो गया.
पिछले दिनों अरविंद केजरीवाल और 4 अन्य अभियुक्तों के मानहानि केस में माफी मांग लेने के बाद कुमार विश्वास इस मामले में अकेले रह गए थे. इसलिए उन्होंने इसे अपनी भूल मानते हुए माफी मांग लेना उचित समझा. अरविंद केजरीवाल ने पूर्व में अरुण जेटली पर डीडीसीए के अध्यक्ष रहते हुए भारी अनियमितता और भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था. जिसके बाद जेटली ने उनपर और आप के अन्य नेताओं के खिलाफ 10 करोड़ रुपए का मानहानि केस दायर किया था.
'कवि' कुमार ने 4 पन्नों के अपने खत में केजरीवाल पर जमकर प्रहार किया. उन्होंने बीते वर्षों में केजरीवाल के एक-एक झूठ का विस्तार से पर्दाफाश करते हुए लिखा कि 'अरविंद आदतन झूठे हैं, फरेबी हैं और कायर नेता हैं. पार्टी कार्यकर्ता होने के नाते मैंने सिर्फ अरविंद की बात दोहराई थी.' उन्होंने लिखा कि परिवर्तन की आशा से मैंने भी वर्ष 2010 में अपने दो पुराने मित्रों (अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया) के साथ देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन की भूमिका तैयार की जो बाद में 'आम आदमी पार्टी' नाम से राजनीतिक पार्टी बन गई.
हर दल की तरह नेता चुनने की परंपरा के तहत हमने भी अरविंद केजरीवाल को अपने दल का सर्वोच्च नेता चुना था. अरविंद अक्सर कुछ कागज जमा कर के हम सब को और बाद में हमारे माध्यम से कार्यकर्ताओं और जनता को, वो कागज कमोवेश हर दल के नेता के भ्रष्टाचार के सबूत कह कर दिखाते रहते थे. हर दल के कार्यकर्ता की तरह हम सबने भी उनकी बातों पर सदा आंख मूंद कर भरोसा किया था.
कुमार विश्वास ने केजरीवाल को पार्टी कार्यकर्ताओं और जनता का भरोसा तोड़ने वाला बताया. उन्होंने लिखा, राजनीतिक दलों की परंपराओं के अनुसार हम सबने भी अपने नेता के हर कथन पर बिना शंका किए उसके सच-झूठ परखे बिना भरोसा किया और उसे दोहराया.
कुमार के अनुसार केजरीवाल सत्तालोलुप हैं और इसे हासिल करने के लिए उन्हें झूठ बोलने या किसी पर भी आरोप लगाने से गुरेज नहीं है. उन्होंने लिखा कि केजरीवाल ने सबसे माफी भी एक सोची-समझी रणनीति के तहत मांगी है. क्योंकि कानूनी जानकारों ने उन्हें बताया कि उनके लगाए गए आरोप यदि झूठे साबित होते हैं तो उन्हें सांकेतिक तौर पर जेल जाना पड़ सकता है.
इस स्थिति में मुख्यमंत्री पद उन्हें छोड़ना होगा और संभव है कि मनीष सिसोदिया सीएम बन जाएं. कुमार विश्वास ने लिखा कि केजरीवाल का मानना है कि जेल से छूटने के बाद मनीष दोबारा उन्हें मुख्यमंत्री की गद्दी नहीं सौंपेंगे. यही वजह है कि वो एक-एक कर सबसे माफी मांग रहे हैं.
कुमार ने खत में लिखा कि अरविंद का थूक कर बार-बार चाटना और 'कुर्सी के पिस्सू' में बदलने का चौंकाने वाला रूपांतरण था. यह देखकर मुझे और आप के कार्यकर्ताओं को काफी निराशा हुई.
कुमार ने यह भी लिखा कि हमारे नेता ने मान लिया कि वो सस्ती लोकप्रियता और राजनीतिक फायदे के लिए अनर्गल झूठ बोलने वाला आदतन झूठा है तो मैंने ऐसे झूठे इंसान द्वारा फैलाए गए प्रपंच से पिंड छुड़ाने का फैसला लिया और आपको यह माफी भरा खत लिखा! कुमार विश्वास ने कहा कि केजरीवाल की हरकतों से अकारण लज्जित होने के बाद वो यह जानना चाहते हैं कि उन्होंने 'तथाकथित-सबूत' का सफेद झूठ क्यों रचा?
कुमार ने कहा कि सत्ता हासिल करने के बाद अरविंद केजरीवाल तानाशाह हो गए हैं. मानहानि केस का जिक्र करते हुए उन्होंने लिखा, मैंने अरविंद से संवाद की अनेकों कोशिश की लेकिन यह सफल नहीं हो सकीं. वो पीएसी की बैठक नहीं कराते, मेरा फोन भी नहीं उठाते, और अपने घर आए हर राजनीतिक मेहमान की वीडियो रिकॉर्डिंग करवाते हैं. इस केस के न तो वो 'तथाकथित-सबूत' देने को तैयार हैं और न ही मिलकर यह बताने को तैयार हैं कि उन्हें आरोप लगाने वाले तथाकथित सबूतों का कागजी पुलिंदा थमाकर बचकर निकलने वाले वो कौन लोग हैं?
कुमार ने पत्र में लिखा, मैंने तो आपसे माफी मांग ली लेकिन उन सब लाखों साथी कार्यकर्ताओं से क्षमा कौन मांगेगा जिन्होंने एक सत्तालोलुप कायर झूठे के कहे पर अपना-अपना परिवार-करियर-सपने सबकुछ दांव पर लगा दिया और उनके पीछे-पीछे चल दिए? उन बच्चों से कौन माफी मांगेगा जिन्होंने एक कायर झूठे के कहने को सच समझ कर आप सभी के खिलाफ सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किया, पुलिस की लाठियां खाईं, लोगों के मजाक के पात्र बने, करियर के शुरुआती दौर में अपने खिलाफ केस दर्ज करवाए और आज भी अदालतों के चक्कर काट रहे हैं?
उन्होंने कहा कि अरविंद एंड गैंग चंद सत्ता-सुख और खुशी में मगन है और रहेगा, मैं अब सामाजिक और साहित्यिक रूप से और अधिक स्वीकार्य होकर अपने कार्यक्रमों में व्यस्त हो जाऊंगा. मगर देश के बाहर और भीतर, सहमत और असहमत उन करोड़ों भारतवासियों से माफी कौन मांगेगा, जिनके अंदर आंदोलन से 'कुछ तो बदलेगा' की उम्मीद पैदा हुई थी?
कुमार विश्वास ने इस लंबे माफीनामे का अंत चंद पंक्तियों के साथ की... इन लाइनों में आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल पर से भरोसा टूटने की उनकी व्यथा झलकती है.
'पराये आंसुओं से आंख को नम कर रहा हूं मैं, भरोसा आजकल खुद पर भी कुछ कम कर रहा हूं मैं, बड़ी मुश्किल से जागी थी जमाने की निगाहों में, उसी उम्मीद के मरने का मातम कर रहा हूं मैं!'
केजरीवाल और कुमार में अब नहीं रहा 'विश्वास'
अरविंद केजरीवाल और कुमार विश्वास एक जमाने में गहरे दोस्त हुआ करते थे. 2011 में अन्ना आंदोलन को दोनों ने समझदारी और सूझबूझ से नतीजे तक पहुंचाया था. इसके बाद उन्होंने बड़ी मेहनत और सबको साथ लेकर दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनाने में कामयाबी पाई थी. सबकुछ ठीक चल रहा था मगर चंद वर्ष पहले दोनों के बीच भरोसे की यह दीवार दरकने लगी और उसमें खाई पैदा हो गई.
सितंबर 2016 की आधी रात को सेना ने सरहद पार (एलओसी) पार जाकर सर्जिकल स्ट्राइक करते हुए आतंकी कैंपों को अपना निशाना बनाया था. कुमार विश्वास ने इसके लिए सेना और सरकार की तारीफ की थी. जबकि केजरीवाल ने सियासी फायदे के लिए इस पर सवाल उठाया और सर्जिकल स्ट्राइक के सबूतों की मांग की. इस मुद्दे पर एक ही दल में दो बड़े लीडरों के बीच. समझा जा रहा है कि यहीं से दोनों के बीच विचारों के मतभेद की शुरुआत हुई.
इस साल जब पार्टी की ओर से 3 लोगों को राज्यसभा भेजने की बारी आई तो सबको लग रहा था कि केजरीवाल अपने पुराने साथी को संसद के उच्च सदन में जरूर भेजेंगे. लेकिन जब नाम घोषित हुए तो सब हैरान रह गए. उसमें कुमार विश्वास का नाम नहीं था. कुमार विश्वास ने अपमान का कड़वा घूंट पी लिया लेकिन बगावत करना जरूरी नहीं समझा. इसके बाद उन्हें राजस्थान के आप प्रभारी पद से भी हटा दिया गया. इसके पीछे कमजोर तर्क दिया गया कि चूंकि वो राजस्थान से नहीं आते इसलिए उनकी जगह किसी स्थानीय को यह जिम्मेदारी सौंपी गई है.
इनसे यह स्पष्ट हो चुका था कि आंदोलन के दिनों के साथियों के बीच अब दोस्ती जैसी बात रही नहीं. उनकी अब आपस में नहीं बनती बल्कि दोनों के विचारों में भी अब मेल नहीं है.
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