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मंत्री जी! ज़बान संभाल के...यह राजनीति है, कहीं चूक ना हो जाए

अलफोंस काबिल अफसर रहे हैं और मंत्री के रूप में उनकी छवि भी अच्छी है, पर उन्हें समझना होगा कि राजनीति में साफगोई की सीमाएं हैं

Updated On: Sep 18, 2017 03:56 PM IST

Pramod Joshi

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मंत्री जी! ज़बान संभाल के...यह राजनीति है, कहीं चूक ना हो जाए

पेट्रोल की बढ़ती कीमतों को लेकर सरकार पहले से विरोधी दलों की मार झेल रही थी कि पर्यटन राज्यमंत्री केजे अल्फोंस के बयान ने आग में घी डाल दिया है. ब्यूरोक्रेट से राजनेता बने अल्फोंस शब्दबाण के महत्व को समझ नहीं पाए.

वे कहते कि पेट्रोल के खरीदार अर्थव्यवस्था के मददगार बनें तो उस बात को दूसरे अंदाज में लिया जाता, पर उन्होंने कहा, 'पेट्रोल खरीदने वाले भूखे नहीं मर रहे हैं.' केवल लहजे के कारण उन्होंने बात बिगाड़ ली.

बयान देना भी कला है

कीमतों को सही ठहराने के पीछे उनकी मंशा कितनी भी सही क्यों न हो, इस तंज को पसंद नहीं किया जाएगा. अलफोंस काबिल अफसर रहे हैं और मंत्री के रूप में उनकी छवि भी अच्छी है, पर उन्हें समझना होगा कि राजनीति में साफगोई की सीमाएं हैं.

कुछ दिन पहले ही बीफ को लेकर उन्होंने ऐसा ही एक बयान दिया था, जिसे लेकर सोशल मीडिया में हलचल मची रही. उन्होंने कहा था, 'विदेशी पर्यटक भारत आना चाहते हैं तो वे अपने देश में ही बीफ खाकर आएं.'

मंत्री का पदभार ग्रहण करने के कुछ दिन बाद ही उन्होंने कहा कि केरल में बीफ का उपभोग जारी रहेगा. इन दोनों बातों का भी बतंगड़ बन गया.

मध्यवर्ग की बढ़ती बेचैनी 

petrol and diesel

इधर आर्थिक संवृद्धि दर की दर में गिरावट, नोटबंदी के विपरीत असर और अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहले के मुकाबले पेट्रोल की कीमतें कम होने बावजूद भारत में उनके बढ़ने के कारणों को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं.

देशभर में 16 जून से तेल की कीमतों में हर रोज बदलाव की नई प्रणाली शुरू की गई है. तेल कंपनियां अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम में उतार चढ़ाव के हिसाब से रोज रात के 12 बजे रेट बदलने लगी हैं.

नई प्रणाली लागू होने के बाद पहले पखवाड़े में दाम कुछ कम हुए. उसके बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम बढ़े, जिसका असर भावों में नजर आने लगा है. सरकार इस व्यवस्था को बनाए रखना चाहती है.

समझाओ, तंज न मारो

व्यवस्था को रास्ते पर लाना उचित है. पर जनता को जानकारी देने की जिम्मेदारी भी उसपर है. वह उपभोक्ताओं को समझा नहीं पाई कि इसका लाभ क्या है. उल्टे मंत्री जी ने तंज मार दिया.

उपभोक्ता की वाजिब शिकायत है कि जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोलियम की कीमत आज से दुगनी थी, तब दाम आज से कम थे. आज ज्यादा क्यों हैं?

केंद्र और राज्य सरकारों ने पिछले कुछ वर्षों में अपने राजस्व को उन करों की मदद से बढ़ाया है, जो पेट्रोलियम उत्पादों पर लगता है. पेट्रोलियम मंत्री धमेंद्र प्रधान ने हाल में कहा कि रोजाना कीमत तय करने से तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में मामूली से मामूली बदलाव का भी लाभ डीलर और ग्राहक को मिलेगा.

देश में इस वक्त इंफ्रास्ट्रक्चर पर भारी निवेश हो रहा है. इस सेक्टर पर निजी पूंजी निवेश या तो है ही नहीं या बहुत कम है. जनता को यह बात मीठे तरीके से समझाई जानी चाहिए. उसे कड़वे तरीके से कहने पर नाराजगी बढ़ेगी.

सरकार में बढ़ते ब्यूरोक्रेट्स 

General VK Singh

मोदी मंत्रिपरिषद के हाल के विस्तार में ब्यूरोक्रेट्स को शामिल किए जाने पर प्रेक्षकों को आश्चर्य हुआ था. बड़ी संख्या में राजनेताओं के होने के बावजूद सरकार प्रशासनिक अधिकारियों पर भरोसा क्यों कर रही है? प्रधानमंत्री मोदी का कहना है कि अनुभव के कारण यह फैसला किया गया है.

ब्यूरोक्रेट्स की लिस्‍ट में पूर्व गृह सचिव आरके सिंह, सेवानिवृत्त राजनयिक हरदीप सिंह पुरी, मुंबई पुलिस के पूर्व कमिश्‍नर सत्यपाल सिंह, पूर्व सेनाध्यक्ष वीके सिंह, पूर्व सेनाधिकारी राज्यवर्धन सिंह राठौर, पूर्व प्रशासनिक अधिकारी अल्फोंस कन्ननाथनम और अर्जुन राम मेघवाल हैं.

बहुरंगी सरकार 

मंत्रिपरिषद में बीजेपी से जुड़े साधु-संत भी हैं. इस बहुरंगी संरचना को देखते हुए किसी कोने से किसी भी विवादास्पद बयान आने का अंदेशा हमेशा बना रहेगा.

खांटी राजनेता सोच-समझकर बयान देते हैं. विवादास्पद बयान भी जान-बूझकर दिए जाते हैं. उनका कोई न कोई लक्ष्य होता है. या तो किसी खास तबके से हमदर्दी हासिल करना या किसी को छेड़ना.

अलफोंस के बयान से किसी तबके की हमदर्दी हासिल नहीं होगी. उल्टे जनता की नाराजगी ही मिलेगी.

ब्यूरोक्रेट्स या साधु-संत

मोदी सरकार के मंत्रियों के विवादास्पद बयानों पर नजर डालें तो पाएंगे कि ज्यादातर बयान या तो पूर्व ब्यूरोक्रेट्स या सेनाधिकारियों के हैं या साधु-संतों के.

अक्तूबर 2015 में वीके सिंह ने हरियाणा में दो दलित बच्चों की हत्या के संदर्भ में कहा, ‘गलत बात…किसी ने कुत्ते को पत्थर मार दिया तो भी सरकार जिम्मेदार.' एक जगह उन्होंने पत्रकारों को 'प्रेस्टीट्यूट' घोषित किया.

जून 2015 में जब भारतीय सेना ने म्यांमार की सीमा पर उग्रवादियों के खिलाफ कर्रवाई की तो तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने कहा कि भारतीय सेना ने म्यांमार की सीमा में घुसकर उग्रवादियों को मारा है. बताते हैं कि गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने उन्हें बुलाकर समझाया कि ऐसी बयानबाज़ी से बचिए.

ऐसे ही गिरिराज सिंह, साक्षी महाराज, संगीत सोम और निरंजना ज्योति के बयान अलग-अलग कारणों से चर्चा के विषय बनते हैं.

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