'मेरा करिश्मा बरकरार है, मेरी ईमानदारी पर जरा भी आंच नहीं आई और मेरा चेहरा अच्छाई की रोशनी में चमक रहा है.' विश्वास जानिए कि अपने बारे में ऐसी दावेदारी के लिए अरविंद केजरीवाल कोई भी नया सिद्धांत गढ़ सकते हैं.
उनका नया सिद्धांत यह है कि घूसखोरी, भाई-भतीजावाद, पक्षपात और गिरती हुई साख के आरोप को नकारने के लिए अगर आपके पास कोई ठोस तर्क नहीं है तो फिर पर्दे पर चल रही कहानी ही बदल डालिए.
कोशिश कीजिए कि टेलीविजन चैनल पर होने वाली बहसों का विषय बदल जाये, डिजिटल मीडिया का ध्यान किसी और जगह मुड़ जाय और अखबारों के पहले पन्ने की सुर्खियां कुछ और कहने लग जायें.
मंगलवार के दिन उन्होंने दिल्ली विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया, इरादा 'ईवीएम में हेराफेरी' का पर्दाफाश करने का था.
विधानसभा के स्पीकर ने कहा कि विशेष सत्र भारतीय लोकतंत्र के चाल-चरित्र पर चर्चा के लिए बुलायी गई है. इस चर्चा का रिश्ता देश के हर मतदाता से है.
लेकिन दिल्ली विधानसभा का यह विशेष सत्र लेक्चर और लेक्चर को सही साबित करने के लिए की जाने वाली 'जमूरेबाजी' का तमाशा निकला. मुख्य भूमिका विधायक सौरभ भारद्वाज ने निभायी.
मुख्यमंत्री केजरीवाल, उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और आम आदमी पार्टी के बाकी विधायक सौरभ भारद्वाज की कलाबाजी पर ताली बजाने वालों की भूमिका में थे. उनकी भाव-भंगिमा कुछ ऐसी थी मानो अभी-अभी कोई बड़ी लड़ाई जीती हो और जीत इतनी जोरदार है कि ठीक सदन के भीतर उसका जश्न मनाना जरूरी हो.
केजरीवाल को मीडिया ने भरपूर तवज्जो दिया. तकरीबन हर बड़े न्यूज चैनल ने सदन के विशेष सत्र की लाईव कवरेज की.
मुंह कब खोलेंगे केजरीवाल
मीडिया को उम्मीद थी कि केजरीवाल आखिरकार मुंह खोलेंगे, अपने ऊपर लगे भ्रष्टाचार के उस आरोप पर कुछ बोलेंगे जिसमें कहा गया है कि उन्होंने अपने एक मंत्री सत्येंद्र जैन से 2 करोड़ रूपये लिए हैं.
सत्येंद्र जैन ने उनके रिश्तेदार के लिए 50 करोड़ के एक फार्महाऊस का सौदा पटाया और इस मंत्री ने मुख्यमंत्री के रिश्तेदार का नाम 10 करोड़ का एक ऐसा बिल थमाया है जिसपर शक करने के पर्याप्त कारण हैं.
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लेकिन बहस के असल मुद्दे पर केजरीवाल ने मौन साधे रखा. भ्रष्टाचार के आरोप पर कुछ कहने की जगह उन्होंने दिल्ली विधानसभा का इस्तेमाल 'ईवीएम में हेराफेरी' की अपनी बहानेबाजी को आगे बढ़ाने में किया.
उन्होंने खुद एक शब्द नहीं कहा और संबोधन के लिए सत्र अलका लांबा और सौरभ भारद्वाज के हवाले कर दिया. अलका लांबा ने अपने भाषण में मुहावरे सुनाये और सौरभ भारद्वाज ने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई का प्रदर्शन करते हुए दिखाया कि ईवीएम में हेराफेरी कैसे की जाती है.
तकरीबन अचंभित कर देने वाले अंदाज में भारद्वाज एक हाथ में प्लेकार्ड और दूसरे हाथ में ईवीएम नुमा एक मशीन लेकर सदन में घुसे, उनके साथ एक कैमरापर्सन था जो भारद्वाज के इशारे पर कैमरे का फोकस बड़ी जतन से एक कोण से दूसरे कोण पर सेट कर रहा था.
भारद्वाज के इस पूरे मजमे के दौरान कैमरापर्सन कभी इस कोण तो कभी उस कोण से कैमरे का फोकस सेट करता रहा ताकि लोगों को टीवी सेटस् पर मजमा भरपूर नजर आये.
बहुमत का हथौड़ा
दिल्ली विधानसभा में केजरीवाल यह सब इसलिए कर सके क्योंकि उनके पास एक हथौड़ा-ठोंक बहुमत है 70 में 66 विधायक उनकी पार्टी के हैं.
बाकी बचे विपक्ष के चार विधायकों को वे स्पीकर के आदेश या फिर किसी दूसरे बहाने से मार्शल के हाथों जब चाहें तब सदन से बाहर का रास्ता दिखा सकते हैं. सदन की कार्रवाई में उनकी भागीदारी में अड़ंगा डाल सकते हैं उन्हें लंबे समय तक सदन में आने से रोक सकते हैं.
इस तरह दिल्ली विधानसभा का पूरा सदन गुरूजी की क्लासरूम में बदल सकता है जहां लोकतंत्र की दुहाई देकर विरोध की कोई बात कहने या फिर सवाल उठाने की कोई गुंजाइश ही नहीं बचती.
केजरीवाल के इस करतब से कुछ सवाल पैदा होते हैं- एक ऐसे वक्त में जब उनपर भ्रष्टाचार का आरोप लगा है केजरीवाल ने आनन-फानन में बुलाये गये एक विशेष सत्र में लेक्चर-डेमोट्रेशन (व्याख्यान और प्रदर्शन) का आयोजन क्यों किया?
चुनाव आयोग ने 2009 की तरह इस बार भी खुला चैलेंज दिया था कि जिसका मन हो वो आये और आकर साबित करे कि ईवीएम में छेड़छाड़ करके किसी एक पार्टी को फायदा पहुंचाया जा सकता है.
इस चुनौती के होते आखिर केजरीवाल ने विधानसभा का एक दिन का विशेष सत्र क्यों बुलाया. उन्होंने चुनाव आयोग की खुली चुनौती क्यों नहीं स्वीकार की?
चुनाव आयोग के अधिकारियों ने दिल्ली विधानसभा में दिखाए गए करतब से निकलते दावों को खारिज कर दिया है. चुनाव आयोग ने 12 मई को मुद्दे पर चर्चा के लिए सभी दलों की बैठक बुलायी है.
12 मई को होने वाली इस बैठक में उस तारीख की घोषणा हो सकती है जब कंप्यूटर के कामकाज से जुड़े तमाम पक्ष एक साथ बैठेंगे और हैकाथन कहलाने वाली इस बैठक में ईवीएम के तकनीकी पक्ष पर विचार करेंगे.
अगर आम आदमी पूरे अवाम या फिर चाहे जिसको ईवीएम में हेराफेरी की अपनी चिन्ता का विश्वास दिलाना चाहती थी तो उनके साथियों अलका लांबा और सौरभ भारद्वाज को चुनाव आयोग जाना चाहिए था.
उन्हें आयोग के अधिकारियों, विशेषज्ञों और बाकी दलों के प्रतिनिधियों के सामने दिखाना चाहिए था कि मशीन में गड़बड़ी कैसे की जा सकती है, ऐसे में उनके तमाम दावों को परखा जाता और प्रश्न उठाये जाते.
यह क्या बात हुई कि खुद की बनायी ईवीएमनुमा मशीन को लेकर बैठ गये और अपनों की महफिल में हेराफेरी की बात साबित करने लगे. आम आदमी पार्टी का मकसद हमेशा की तरह इस बार भी पुरानी टेक पर है.
उसे समस्या का समाधान निकालने या अपने दावे के पक्ष में ठोस दलील पेश करने में जरा भी रुचि नहीं बल्कि वह अपने काल्पनिक या वास्तविक दुश्मन से लड़ाई ठानकर अपने को सबसे ज्यादा पाक-साफ दिखाने की है, या फिर खुद को दूसरे का सताया हुआ साबित करके सहानुभूति बटोरने के फिराक में रहती है.
कपिल की प्रतिक्रिया
ईवीएम में हेराफेरी की गुंजाइश साबित करने के केजरीवाल के करतब पर सबसे दिलचस्प प्रतिक्रिया कपिल मिश्रा की तरफ से आयी जो कभी केजरीवाल के दोस्त थे और अब दुश्मन बने नजर आ रहे हैं.
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कपिल मिश्रा ने कहा कि, 'ईवीएम तो पहले ही की तरह काम कर रहा है, बस लोग आम आदमी पार्टी को वोट नहीं दे रहे. यह सब तमाशा बस यह जताने के लिए खड़ा किया गया है कि केजरीवाल अब भी चुनाव जीत सकते हैं. सच्चाई यह है कि लोग अब केजरीवाल के नाम पर वोट नहीं डाल रहे सो आम आदमी पार्टी लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर ही सवाल खड़े कर रही है.'
मिश्रा ने आगे कहा, 'केजरीवाल को अगर ईवीएम पर भरोसा नहीं है तो इसका मतलब हुआ कि 2015 का चुनाव एक नाटक था. ऐसे में तो आम आदमी पार्टी के 66 विधायकों को इस्तीफा दे देना चाहिए और चुनाव नये सिरे से करवाना चाहिए. या फिर अच्छा यही होगा कि केजरीवाल मेरे खिलाफ अपने पसंद की किसी भी सीट से चुनाव लड़ें और यह चुनाव बैलेट पेपर के जरिए हो.'
दिल्ली की केजरीवाल सरकार के इस पूर्व मंत्री ने कहा कि केजरीवाल अभी एकदम हर कुछ को नकार कर चलना चाहते हैं. वे सच्चाई का सामना नहीं करना चाहते हैं तो उन्होंने शुतुरमुर्ग बनने की ठान ली है.
जो कुछ कपिल मिश्रा ने कहा वही सब सौरभ भारद्वाज के भाषण के आखिर के शब्दों में आया लेकिन सुर थोड़ा बदला हुआ था.
ईवीएम में हेराफेरी के मसले पर सौरभ भारद्वाज ने अपने भाषण में कहा कि अपने-अपने, 'विधानसभाई क्षेत्रों में जाइए और ईवीएम में हेराफेरी की बात के सहारे कहानी खड़ी कीजिए. नगरनिगम के चुनावों में हार के बाद जो कार्यकर्ता अपने घरों में जा बैठे हैं वे ईवीएम में हेरफेर की कहानी को सुनकर उठ खड़े होंगे और मुद्दे पर लोगों के बीच चर्चा गर्म होगी.'
ऐसा लगता है कि विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर केजरीवाल जनता से ज्यादा अपने पार्टी के सदन के भीतर-बाहर के नेताओं को समझाना चाह रहे थे कि मैं अब भी वोट बटोर सकता हूं.
आम आदमी पार्टी के मुखिया और सूबे के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से बेहतर कौन जानता होगा कि सियासत में किसी पार्टी का नेता उसी वक्त तक उपयोगी माना जाता है जब तक उसका करिश्मा बरकरार हो और लोग उसके नाम पर वोट डालते हों.
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