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सिर्फ रियायतों के बूते नहीं होगी कश्मीरी पंडितों की 'घर वापसी'

कश्मीरी पंडितों के परिवारों ने अपने गृहनगरों में लौटने को लेकर ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई है

Updated On: Jan 28, 2017 07:56 AM IST

Ishfaq Naseem

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सिर्फ रियायतों के बूते नहीं होगी कश्मीरी पंडितों की 'घर वापसी'

जगन नाथ खार की उम्र 80 साल है. वह पहले कश्मीरी पंडित हैं जो कि घाटी में वापस लौटे हैं और मुस्लिमों के बीच अपने गृहनगर अनंतनाग के मत्तन में रहते हैं.
8 साल पहले वह और उनकी पत्नी वापस कश्मीर लौट आए. 1990 के दशक की शुरुआत में घाटी में जब आतंकवाद ने दस्तक दी तब वे जम्मू पलायन कर गए थे.
लेकिन, पिछले साल हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान मुजफ्फर वानी की मौत के बाद से कश्मीर में शुरू हुए विरोध-प्रदर्शनों के बाद खार के घर पर पत्थरबाजी हुई और उन्हें जम्मू भागना पड़ा. खार अब अपनी बेटी के साथ जम्मू में ही रहते हैं. उनकी योजना कश्मीर में तभी वापस लौटने की है जब वहां हालात सुधर जाएं.
2008 में ही सरकार ने किया था मुआवजे का एलान
2008 में तब के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कश्मीर से पलायन करने वालों के घाटी में पुनर्वास के लिए 1,618 करोड़ रुपये के पैकेज का एलान किया था.
इसके बाद खार मत्तन में अपने घर वापस लौट आए. सरकार के पैकेज के तहत खार को मत्तन में अपने टूटे घर की मरम्मत के लिए 7.5 लाख रुपए मिले. खार तब से श्रीनगर ही रह रहे थे. पिछले साल घाटी में फिर से शुरू हुए विरोध-प्रदर्शनों के दौर के चलते उन्हें सितंबर में जम्मू वापस आना पड़ा.
सिर्फ दो परिवारों की ही हुई है घर वापसी
खार के परिवार को मिलाकर अब तक महज दो परिवार ही अपने कश्मीर घाटी में घरों में वापस लौटे हैं. हालांकि, एक और परिवार के कश्मीर में वापस बसने के लिए मुआवजे का मामला सरकार के पास है.
पिछले 8 साल में 5,600 से ज्यादा परिवारों ने सरकार के पास कश्मीर लौटने के आवेदन दिए हैं. लेकिन, केवल दो परिवार ही वहां वापस बस पाए हैं.
एक उच्चपदस्थ सरकारी अफसर ने बताया कि कश्मीर वापस लौटने के लिए तैयार कश्मीरी पंडितों के परिवारों ने ज्यादा मुआवजे की मांग की है. उन्होंने कहा कि गुजरे सालों के दौरान कश्मीर में सुरक्षा के हालात बिगड़े ही हैं.
हालांकि, कश्मीरी पंडितों के परिवारों ने अपने गृहनगरों में लौटने को लेकर ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई है, लेकिन करीब 1,500 युवा कश्मीरी पंडित कश्मीर में काम कर रहे हैं. वे अपने साथ अपने परिवारों को भी घाटी ले आए हैं. इनमें से ज्यादातर परिवार हाई-सिक्यॉरिटी ट्रांजिट घरों में रह रहे हैं. लेकिन, कुछ ऐसे भी हैं जो कि किराए के घरों में रह रहे हैं.
यह संख्या कश्मीरी पंडितों की उस आबादी के मुकाबले न के बराबर है जो कि 1990 के दशक में कश्मीर छोड़कर देश के दूसरे हिस्सों में बस गई है. होम मिनिस्ट्री के आंकड़ों के मुताबिक, मौजूदा वक्त में सरकार के पास 60,452 कश्मीरी पंडितों के परिवार रजिस्टर्ड हैं. इनमें से 38,119 परिवार जम्मू में, 19,338 परिवार दिल्ली में और 1,995 दूसरे राज्यों में रह रहे हैं.
पुनर्वास के लिए और अधिक मुआवजे की जरूरत 
ज्यादा मुआवजे की मांग को देखते हुए राज्य सरकार ने गृह मंत्रालय से कहा है कि वह इस रकम को 7.5 लाख रुपये से बढ़ाकर 20 लाख रुपये कर दे ताकि लोग अपने घरों को दोबारा बना सकें. लेकिन, इसे अभी तक मंजूरी नहीं मिल सकी है.
kashmir woman
राहत आयुक्त वाई पी सुमन ने कहा कि कश्मीर से पलायन कर गए लोगों की वापसी के लिए अलग-अलग संभावनाओं पर उच्च अधिकारी विचार कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘फिलहाल केवल दो परिवार वापस आए हैं.’
कम मुआवजे के अलावा राज्य में जारी आतंकवाद की वजह से भी लोग वादी में वापस लौटने से कतरा रहे हैं. हालांकि, कश्मीरी राजनेताओं समेत पृथकतावादियों ने भी कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी का स्वागत किया है, लेकिन इनके वापस लौटने के तरीके पर काफी विरोध हो रहा है.
हिंदुओं की अलग कॉलोनियों का विरोध
पृथकतावादियों ने कश्मीरी हिंदुओं की अलग कॉलोनियां बनाए जाने का विरोध किया है. इनका तर्क है कि इससे हिंदू और मुस्लिम एक-दूसरे के खिलाफ खड़े हो जाएंगे. अब तक सरकार कश्मीरी पंडितों की धीरे-धीरे घाटी में वापसी को बढ़ावा दे रही है.
पंडितों को अलग कॉलोनियों में बसाए जाने के प्रस्ताव ने भी कश्मीर में बुरहान की मौत के बाद शुरू हुए 6 महीने लंबे विरोध-प्रदर्शन की आग में घी डाला. इस पॉलिसी में 4,500 युवाओं को नौकरियां देने की बात कही गई है.
साथ ही पलायन करने वाले युवाओं को कम ब्याज दरों पर लोन देने की भी बात है ताकि वे घाटी में अपनी औद्योगिक इकाइयां लगा सकें. इस जरिए से 9,000 नौकरियां पैदा करने की योजना है.
बुरहान की मौत के बाद बिगड़े हालात से हिंदुओं में डर
शुरुआत में कश्मीरी पंडित युवाओं ने मुस्लिमों के साथ किराए के घरों में रहना शुरू भी किया, लेकिन गुजरे कुछ महीनों में फैली अराजकता के चलते कई ने काम-धंधा छोड़ दिया और जम्मू लौट गए. कई तो बेहद सुरक्षित ट्रांजिट घरों में रहने चले गए हैं.

बुरहान की मौत के विरोध में कशमीर में प्रदर्शन (REUTERS)

बुरहान की मौत के बाद, कशमीर में हो रहा विरोध प्रदर्शन (REUTERS)

40 साल के राकेश पंडिता को दिसंबर 2010 में बारामुला में शिक्षक की नौकरी मिली. पंडिता बताते हैं कि कश्मीरी पंडितों के लिए अपने होमटाउन लौटना काफी मुश्किल है.
पंडिता ने कहा, ‘कश्मीर में नौकरी मिलने के बाद से मैं बारामुला के ट्रांजिट कैंप में रह रहा हूं, लेकिन मैं मानता हूं कि हमारे लिए अपने होमटाउन लौटना मुश्किल है. हमने बारामुला के वीरवान में अपनी कुछ जमीन बेच दी है और हमारा घर खंडहर पड़ा हुआ है. हमने अधिकारियों को इस बारे में लिखा, लेकिन वे मेरी बहन की बारामुला में जमीन पर हुए अतिक्रमण को हटा नहीं पाए हैं.’
दूसरे परिवार की अलग कहानी
खार और दूसरे कश्मीरी पंडित - 70 साल के दुर्गानाथ टिक्कू के बीच में एक फर्क है. टिक्कू श्रीनगर के बाग-ए-माहताब इलाके में लौटे हैं. वह कहते हैं कि कश्मीर में मुस्लिमों ने उनका समर्थन किया है.
Kashmir Border
टिक्कू के मुताबिक, ‘मैं यहां अपने मुस्लिम पड़ोसियों की मदद और सपोर्ट से ही रह पा रहा हूं. मेरी पत्नी को गाल ब्लैडर की बीमारी है और हर कोई उनकी सेहत के बारे में पूछने आता है. कश्मीरी मुसलमान हमारे परिवार के सदस्यों की तरह हैं, लेकिन सरकार का रिस्पॉन्स बेहद निराशाजनक है. सरकार ने हमें बुरे हालात में छोड़ रखा है. मुझे बिजली का कनेक्शन नहीं मिला और मैं अभी तक राशन कार्ड भी नहीं पा सका हूं.’
टिक्कू अकाउंटेंट-जनरल (एजी) दफ्तर में वेल्फेयर ऑफिसर के पद से रिटायर हुए हैं. पिछले साल विरोध-प्रदर्शन जब चरम पर था, उनके घर के बाहर रेलवे ब्रिज को ब्लॉक कर दिया गया था. युवा आजादी के और बुरहान को शहीद बताने वाले नारे लगा रहे थे.
हालांकि, टिक्कू बताते हैं कि वह उस वक्त गुड़गांव में अपने बेटे के पास थे क्योंकि उनकी पत्नी का वहां इलाज चल रहा था. वह कहते हैं, ‘लेकिन, मेरे कश्मीरी दोस्त मेरी संपत्ति की हिफाजत कर रहे हैं. मैं अपनी गाड़ी भी श्रीनगर में छोड़कर आया हूं.’
भेदभाव के शिकार कश्मीरी पंडित
एक कश्मीरी युवा रूबानजी सप्रू ने कहा कि श्रीनगर में काम करने के दौरान उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ा.
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उन्होंने कहा, ‘हमने अनंतनाग में अपनी जमीनें बेच दीं. अब अपने परिवार के बिना श्रीनगर में शेखपुरा ट्रांजिट कैंप में रहना मुश्किल भरा है. ट्रांजिट कैंप में रहने में कई मुश्किलें हैं, मुझे एक अन्य कर्मचारी के साथ रहना पड़ रहा है.'
उनका कहना है, 'किसी इकनॉमिक पैकेज की बजाय सरकार ने कश्मीरी पंडितों को जॉब पैकेज ही रिहैबिलिटेशन पैकेज के तौर पर दे दिया है. वापस लौटे युवाओं को भेदभाव का शिकार होना पड़ता है.'
'हम जिला स्तर पर होने वाली सरकारी भर्तियों में नौकरियां नहीं पा सकते और हमें नौकरी इसी शर्त पर दी जाती है कि हमें कश्मीर वापस लौटना पड़ेगा. यह भेदभाव है.’

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