कश्मीर के अलगाववादी नेता गौतम नवलखा के समर्थन में उठ खड़े हुए हैं. गौतम नवलखा पत्रकार और मानवाधिकारवादी कार्यकर्ता हैं. भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा के मामले में नवलखा के निवास पर पड़े छापे और इसके बाद हुई गिरफ्तारी को इन अलगाववादी नेताओं ने ‘ज्यादती में उठाया गया कदम’ करार देते हुए कहा है कि कश्मीर की ‘आजादी’ के संघर्ष के समर्थन में गौतम नवलखा और उपन्यासकार अरुंधति रॉय ने जो भूमिका निभाई है उसकी सराहना की जानी चाहिए.
गौतम नवलखा कश्मीर में सरकार के सुरक्षाबलों के हाथों होने वाले मानवाधिकार उल्लंघन की बात उठाते रहे हैं. उन्होंने अलगाववादियों द्वारा आयोजित सम्मेलनों में भी शिरकत की है. वहीं अरुंधति रॉय बीते वक्त में कश्मीर में सुरक्षाबलों की मौजूदगी को ‘फौजी कब्जे के जरिए प्रशासन चलाने’ की कवायद बता चुकी हैं. उन्होंने कश्मीर की ‘आजादी’ की पैरोकारी करते हुए 2008 में कहा था कि 'भारत को कश्मीर से उसी तरह आजादी की जरूरत है जैसे कि कश्मीर को भारत से आजादी की जरूरत है.'
हुर्रियत (एम) के अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारुख का कहना है कि 'जो लोग कश्मीर और पूर्वोत्तर में हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन या फौज की ज्यादती का मसला उठाते हैं या सुरक्षा बलों के स्पेशल पावर एक्ट (एएफएसपीए) के खिलाफ बोलते हैं उनकी आवाज को दबाया जा रहा है.'
'गौतम नवलखा और अरुंधति रॉय कश्मीर के लिए सक्रिय रहे हैं'
अलगाववादियों ने कहा है कि अरुंधति रॉय और गौतम नवलखा कश्मीर में सक्रिय रहे हैं और नवलखा ने मानवाधिकार उल्लंघन के खिलाफ आवाज उठाने के अलावा सैयद अली शाह गिलानी की अगुवाई वाले हुर्रियत कांफ्रेंस के सम्मेलनों में भी भाग लिया है.
मीरवाइज ने कहा है कि 'गौतम नवलखा और अरुंधति रॉय जैसे लोग कश्मीर में बहुत सक्रिय रहे हैं और उनको निशाना बनाया जा रहा है. यहां तक कि जो भारतीय नागरिक फौज या एएफएसपीए के खिलाफ बोलते हैं उन्हें दक्षिणपंथी जमात के लोग राष्ट्रविरोधी करार देते हैं. भारत के विद्वानों, बुद्धिजीवियों और पढ़े-लिखे लोगों को आवाज उठाने की जरूरत है. वे भले ही कश्मीर के पक्ष में ना बोलें लेकिन उन्हें अपने लोगों के हक में बोलना चाहिए.'
जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के एक धड़े के अध्यक्ष जावेद अहमद मीर ने कहा है कि 'मानवाधिकारों के कार्यकर्ता नवलखा पर छापा मारकर सुरक्षाबलों ने ज्यादती से काम लिया है. अरुंधति और नवलखा दोनों ने हमारे मकसद को अपना समर्थन दिया है. इन लोगों ने दिल्ली में चले हमारे भूख-हड़ताल को भी समर्थन दिया था.'
हुर्रियत(जी) के प्रवक्ता गुलाम अहमद गुलजार ने कहा है कि 'साल 2008 में जब अरुंधति रॉय कश्मीर आयी थीं तो उन्होंने देखा कि श्रीनगर के टूरिस्ट रिशेप्शन सेंटर(टीआरसी) पर लाखों लोग आजादी के पक्ष में नारे लगा रहे हैं. उन्होंने खुद ही देखा था कि लोग आजादी की मांग कर रहे हैं. उनके खिलाफ एक मुकदमा दर्ज हुआ और हमलोगों ने कश्मीर के हक में अरुंधति रॉय जैसे लोगों के समर्थन का हमेशा स्वागत किया है.' गुलाम अहमद गुलजार ने यह भी कहा कि गौतम नवलखा ‘हमेशा कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन के सवाल पर बोलते रहे हैं और हम अपने सम्मेलनों में नवलखा को बुला चुके हैं.'
'मोदी सरकार की फासीवादी नीति की झलक'
अलगाववादियों ने कहा है कि नवलखा की गिरफ्तारी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘फासीवादी’ नीति की झलक मिलती है और प्रधानमंत्री ने कश्मीर को लेकर ‘सख्त फौजी रवैया’ अख्तियार किया है.
मीरवाइज का कहना था कि मसले का ‘सबसे दुर्भाग्य भरा पहलू यह है कि इन सारी बातों में राज्यसत्ता बड़ी शिद्दत से जुड़ी हुई है जिससे साफ जाहिर हो जाता है कि कैसे हक की बात कहने वाले लोगों को एक किनारे किया जा रहा है. बदकिस्मती की बात है कि भारत के लिए यह एक निर्णायक घड़ी है लेकिन ऐसे वक्त में ज्यादातर लोगों ने चुप्पी साध रखी है’. मीरवाइज के मुताबिक, 'दक्षिणपंथी समूहों का असर इतना तगड़ा है कि जो लोग वंचितों और पीड़ितों की बात सधी-संतुलित आवाज में उठा रहे हैं उनकी सुनी ही नहीं जा रही.’
मीर का कहना था कि ‘नवलखा की गिरफ्तारी से सरकार की फासिस्ट नीति उजागर हो गई है.’ मीरवाइज ने यह भी कहा कि कश्मीर को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीति में ‘फौजी नजरिया’ अपनाया गया है. उन्होंने कहा कि इस नीति में कोई राजनीतिक रवैया नहीं बल्कि सिर्फ फौजी रवैया अख्तियार किया गया है. अफ्स्पा, घेराबंदी और तलाशी अभियान बदस्तूर जारी है. कश्मीर को लेकर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कई सकारात्मक बयान दिए हैं लेकिन उन बयानों का कोई माकूल जवाब नहीं दिया गया.’
मीरवाइज का कहना था कि 'कश्मीर में बातचीत शुरू करने में नाकाम रहने की सूरत में बीजेपी सरकार सूबे को लेकर एक सख्त और अड़ियल रवैया अपनाने के पक्ष में है.'
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