पीडीपी-बीजेपी गठबंधन का मामला अगस्त तक खिंच जाने की उम्मीद की जा रही थी. यानी अमरनाथ यात्रा के खत्म होने (इस साल 26 अगस्त को यह यात्रा खत्म हो रही है) तक दोनों का साथ चल जाएगा, ऐसा अनुमान था. हालांकि, भारतीय जनता पार्टी ने पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को अचंभित कर दिया. बीजेपी ने महबूबा को न तो पहले इस्तीफा देने और न ही चुनाव की सिफारिश करने का मौका दिया. इस तरह की दोनों संभावनाओं के कारण उन्हें राजनीतिक जमीन पर थोड़ी इज्जत और गुंजाइश बचाने में मदद मिलती.
मौजूदा राजनीतिक हालात की बात की जाए, तो बीजेपी के साथ मतभेद और टकराव के बावजूद उसके साथ गठबंधन में बने रहने के नकारात्मक असर का सामना पीडीपी को करना पड़ेगा. कश्मीर घाटी में बीजेपी-पीडीपी का गठबंधन काफी बदनाम रहा है और राज्य के अन्य हिस्सों में भी कमोबेश इसी तरह का माहौल है.
अब चूंकि दोनों के बीच अलगाव ज्यादातर टीकाकारों और विश्लेषकों के अनुमान से काफी पहले हो गया है, लिहाजा अमरनाथ यात्रा को लेकर खतरा बढ़ जाएगा. अमरनाथ यात्रा 28 जून से शुरू हो रही है. सेना अग्रणी भूमिका में होगी और उसे सख्त उपाय आजमाने के लिए खुली छूट मिल सकती है. राष्ट्रपति शासन का दौर होगा और शायद उसे भी भी बढ़ाया जाएगा. कांग्रेस नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने साफ तौर पर कह दिया है कि पीडीपी के साथ हाथ मिलाने का कोई सवाल नहीं है.
ऐसे में एकमात्र संभावना जो बचती है, वह यह कि नेशनल कॉन्फ्रेंस उन दोनों पार्टियों में से किसी एक से हाथ मिलाए, जो आज अलग हुई हैं. केंद्र सरकार के संभावित इनकार और राज्य में जमीनी स्तर पर एक-दूसरे के खिलाफ राजनीतिक कटुता के मद्देनजर दो क्षेत्रीय पार्टियों के एक साथ आने की संभावना नहीं के बराबर है.
फोकस में नेशनल कॉन्फ्रेंस
नेशनल कॉन्फ्रेंस के दो प्रवक्ताओं ने शुरू में किसी तरह की राय देने से मना कर दिया. पार्टी के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला राज्यपाल से मिलने राजभवन गए. जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल एन एन वोहरा अपना दूसरा कार्यकाल पूरा करने से ठीक एक सप्ताह पीछे हैं. उनका दूसरा कार्यकाल 26 जून को खत्म हो रहा है. चूंकि वह कश्मीर घाटी और जम्मू दोनों जगहों पर काफी लोकप्रिय हैं और उन्होंने काफी दक्षता के साथ काम किया है, लिहाजा केंद्र सरकार की तरफ से संकेत मिल रहे हैं कि वह इस पद पर आगे भी बने रहेंगे.
इस सरकार के गिरने के साथ अब राज्यपाल के कार्यालय पर बड़ी जिम्मेदारी होगी और केंद्र सरकार के लिए किसी लंबे अनुभव वाले शख्स पर भरोसा करना बेहतर होगा. बहरहाल, जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के लिए एक और शख्स के नाम को लेकर अटकलें चल रही हैं. आईबी के पूर्व प्रमुख दिनेश्वर शर्मा के नाम को लेकर इस बाबत अटकलें लगाई जा रही हैं. उन्हें पिछले साल अक्टूबर में कश्मीर में बातचीत के लिए केंद्र सरकार का प्रतिनिधि नियुक्त किया गया था. कुछ लोगों का मानना था कि अलग-अलग कश्मीरी प्रतिनिधियों के साथ उनकी बातचीत उन्हें राजभवन ले जाने से पहले की तैयारी है. शर्मा पिछले कुछ दिनों से कश्मीर में हैं.
मुश्किल सैन्य चुनौती
सुरक्षा बलों के लिए आने वाले वक्त में कड़ी चुनौती होगी. पिछले कुछ हफ्तों में दक्षिणी कश्मीर में आतंकवादियों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. इस बीच, बड़ी संख्या में विदेशी आतंकवादी (मुख्य तौर पर पाकिस्तान से आए हुए) कश्मीर घाटी के विभिन्न हिस्सों में छिपकर बैठे हैं. खास तौर पर उत्तरी कश्मीर में इन आतंकवादियों के छिपे होने की खबर है.
भारतीय जनता पार्टी के महासचिव राम माधव ने नई दिल्ली में पीडीपी की अगुवाई वाली जम्मू-कश्मीर की सरकार से अपनी पार्टी द्वारा समर्थन वापस लेने का ऐलान किया. उनका यह भी कहना था कि 'राइजिंग कश्मीर' अखबार के संपादक शुजात बुखारी की मुख्य शहर में हत्या सुरक्षा चूक का मामला है.
इसका यह भी संकेत हो सकता है कि पुलिस फोर्स में भी फेरबदल हो सकता है. हालांकि, इस तथ्य को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि आईजी पाणि और डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस (डीजीपी) एस. पी. वैद्य ने काफी बेहतर तरीके से अपनी जिम्मेदारी निभाई है और इसके लिए उन्हें सम्मान-तारीफ भी हासिल हुआ है.
आतंकवाद के खिलाफ सख्ती से निपटने के लिए निश्चित तौर पर सेना को खुली छूट दी जाएगी. हालांकि, यह मामला लंबा और जटिल साबित हो सकता है, क्योंकि न सिर्फ आतंकवादियों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है, बल्कि उनके हथियार, उन्हें आगे बढ़ाने को लेकर माहौल, उनका तालमेल और प्रशिक्षण, तमाम चीजें ज्यादा भयंकर हो चुकी हैं.
नियंत्रण रेखा पर गोलाबारी और पाकिस्तानी सीमा की तरफ से इसकी तैयारी बड़े खेल की तरफ इशारा करती है, जो अगले कुछ हफ्तों में सामने आ सकता है. इस बीच, चीन, पाकिस्तान और अन्य देशों की तरफ से उठाए गए कूटनीतिक कदमों से घरेलू नीति-निर्माताओं के लिए विकल्प सीमित हो जाएंगे. चीन ने बीते सोमवार को भारत, पाकिस्तान और चीन के नेताओं की त्रिपक्षीय शिखर वार्ता का प्रस्ताव किया.
चीन के राजदूत का कहना था कि भारत-चीन के रिश्तों में एक और डोकलाम को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है. उनका इशारा जम्मू-कश्मीर में सैन्य विवाद की आशंका की तरफ था.
बहरहाल भारत ने चीन के उपरोक्त प्रस्ताव को खारिज कर दिया, लेकिन चीन-पाकिस्तान की धुरी वास्तविकता है जो सैन्य, भूराजनीतिक और कूटनीति मोर्चों पर विभिन्न रूप में दिखेगी. इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्यायुक्त की कश्मीर को लेकर कुछ दिनों पहले आई रिपोर्ट भारत के लिए बड़ी चुनौती है.
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