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करतारपुर साहिब पर केंद्र ने दिखाई हरी झंडी तो सिद्धू ने सुषमा स्वराज को खत लिखकर किया आभार व्यक्त

सिद्धू ने अपने खत में लिखा, 'बतौर एक सिख और पंजाब के लोगों के लिए प्रतिबद्ध होने के नाते मैं आपका बहुत आभारी हूं कि गुरु नानक देव जी के 550वीं जयंती पर भारत सरकार ने करतारपुर साहिब कॉरिडोर को हरी झंडी दिखा दी है

Updated On: Nov 23, 2018 07:04 PM IST

FP Staff

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करतारपुर साहिब पर केंद्र ने दिखाई हरी झंडी तो सिद्धू ने सुषमा स्वराज को खत लिखकर किया आभार व्यक्त

पंजाब मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने करतारपुर मामले में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को खत लिखकर शुक्रिया कहा है. सिद्धू ने अपने खत में लिखा, 'बतौर एक सिख और पंजाब के लोगों के लिए प्रतिबद्ध होने के नाते मैं आपका बहुत आभारी हूं कि गुरु नानक देव जी के 550वीं जयंती पर भारत सरकार ने करतारपुर साहिब कॉरिडोर को हरी झंडी दिखा दी है.'

सिद्धू ने पाकिस्तान और बारत दोनों ही सरकारों को आभार व्यक्त करते हुए कहा है कि भारत सरकार औपचारिक तौर पर पाकिस्तान सरकार से वीसा संबंधित चीजों को लेकर लिखे, ताकि कॉरिडोर के पूरा होते ही श्रद्धालुओं को वहां जाने में कोई दिक्कत का सामना ना करना पड़े.

दरअसल गुरु नानक जयंती से एक दिन पहले केंद्र सरकार ने सिख श्रद्धालुओं को बड़ा तोहफा दिया है. सरकार ने सिखों के लिए करतारपुर कॉरिडोर के निर्माण को मंजूरी दे दी है. इस फैसले के तहत पंजाब के गुरदासपुर जिले में स्थित डेरा बाबा नानक से इंटरनेशनल बॉर्डर तक श्री करतारपुर साहिब कॉरिडोर का निर्माण किया जाएगा. इसमें श्रद्धालुओं के लिए सभी तरह की आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी.

सिखों के लिए केंद्र सरकार के इस फैसले को ऐतिहासिक फैसले के तौर पर देखा जा रहा है. लेकिन क्या आपको पता है कि करतारपुर साहिब सिखों के लिए इतना खास क्यों हैं?

क्यों खास है करतारपुर साहिब गुरुद्वारा?

दरअसल सिख इस जगह को काफी पवित्र मानते हैं. करतारपुर साहिब, गुरु नानक का निवास स्थान था. गुरु नानक ने अपनी जिंदगी के आखिरी 17 साल 5 महीने 9 दिन यहीं गुजारे थे. उनका सारा परिवार यहीं आकर बस गया था. उनके माता-पिता और उनका देहांत भी यहीं पर हुआ था. इस लिहाज से यह पवित्र स्थल सिखों के मन से जुड़ा धार्मिक स्थान है.

इसके बाद इसी स्थान पर गुरु नानक देव की याद में गुरुद्वारा बना दिया गया, जिसे करतारपुर साहिब के नाम से जाना जाता है. यह पाकिस्‍तान के नारोवाल जिले में है जो पंजाब मे आता है. यह जगह लाहौर से 120 किलोमीटर दूर है. जहां पर आज गुरुद्वारा है.

गुरुनानक ने रावी नदी के किनारे एक नगर बसाया और यहां खेती कर उन्होंने 'नाम जपो, किरत करो और वंड छको' (नाम जपें, मेहनत करें और बांट कर खाएं) का उपदेश दिया था. इतिहास के अनुसार गुरुनानक देव की तरफ से भाई लहणा जी को गुरु गद्दी भी इसी स्थान पर सौंपी गई थी. जिन्हें दूसरे गुरु अंगद देव के नाम से जाना जाता है और आखिर में गुरुनानक देव ने यहीं पर समाधि ली थी.

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